जमशेदपुर। बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग ने तरंग माध्यम पर एक विशेष मासिक बैठक कर रामधारी सिंह दिनकर की जयन्ती मनाई। इस आभासीय बैठक मे सहयोग के अनेक सदस्य देश विदेश से जुड़े और दिनकर जी को अपने श्रद्धाभाव अर्पित किए किये। कार्यक्रम की शुरुआत सचिव श्रीमती विद्या तिवारी के स्वागत भाषण से हुआ। अपने समय के सूर्य दिनकर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने राष्ट्र कवि को आज भी प्रासंगिक बताया।
अनेक गणमान्य सदस्यों ने स्व रचित कविताओं का पाठ कर तालियाँ बटोरीं। नंदनी जी ने दिनकर के साथ पारिवारिक सबंध साझा करते हुए अपनी स्व रचित कविता सुनायी। सरिता सिंह ने सहयोग के प्रति अपने उद्गार व्यक्त किए और संस्था से जुड़े संस्मरण को साझा किया। निवेदिता गार्गी, शिप्रा सैनी, डॉ पुष्पा कुमारी ने दिनकर की कोमल भावनाओं को उद्धृत करते हुए उनकी रचना बालिका से वधू का पाठ किया। डॉ सूरीना भूलर ने पंजाबी में स्व रचित कविता सुना कर बहुत वाहवाही ली। अर्चना राय मुंबई से दिनकर की रश्मिरथी की पंक्तियां वर्षो तक वन में घूम घूम, बाधा विध्नों को चूम चूम ,,,,,, लेकर प्रस्तुत हुई।
आरती विपुल लंदन से अपनी नई रचना के साथ इस गोष्ठी में शामिल हुईं। पुष्पांजलि मिश्रा ने रश्मि रथी की दमदार प्रस्तुतिकरण से सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। डाॅ रागिनी भूषण, डाॅ आशा गुप्ता, डॉ कल्याणी कबीर, सुधा गोयल, कृष्णा सिन्हा, वीणा पांडेय, इंदिरा पांडेय, रीना वेदगिरी, सविता सिंह हर्षिता, निशीथ सिन्हा, रेणु बाला मिश्रा, ललन शर्मा, परवेज अख्तर, मामचंद अग्रवाल ने भी जुड़कर अपने संस्मरण साझा किए। भावेश कुमार ने तकनीकी सहयोग देकर कार्यक्रम की निर्विघ्न सम्पन्न किया। डाॅ मुदिता चन्द्रा अध्यक्ष बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग ने भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा दी। उन्होंने इस संस्था को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने के लिए सदस्यों को प्रेरित किया।
डाॅ जूही समर्पिता ने कार्यक्रम का संचालन किया। राजेन्द्र नगर पटना में रामधारी सिंह दिनकर का निवास 'उदयाचल ' उनके पड़ोस में था। उन्होंने राष्ट्र कवि के साथ आत्मीय अनुभव और पारिवारिक सम्बन्ध साझा किये । सहयोग द्वारा कथान्जली प्रकाशित हो चुकी है जिसका किंडल संस्करण भी उपलब्ध है। सहयोग का अगला प्रकाशन नौ रसों पर आधारित काव्य संग्रह होगा।
मिट्टी में थी यह आग कहां : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी की छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के ऐसे कवि थे जिनकी कविताओ में एक ओर ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति का तेज है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं और प्रेम की इतनी कोमल, गहरी अभिव्यक्ति जिसकी बारीकी पढ़ने वालों को सहसा स्तब्ध कर देती है। उन्होंने कुरुक्षेत्र, हुंकार,रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी काव्य रचनाओं में एक तरफ जहां सामाजिक-आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ कई पौराणिक पात्रों और घटनाओं को आधुनिक संदर्भ और प्रखर शब्द देकर हमारे समय की विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया तो दूसरी ओर 'उर्वशी' में स्वर्ग की परित्यक्ता एक अप्सरा की कहानी के बहाने मानवीय प्रेम, वासना और स्त्री-पुरुष संबंधों की बहुत गहरी पड़ताल की।
'कुरुक्षेत्र' और 'उर्वशी' उनके व्यक्तित्व के दो ध्रुव हैं जिनके अंतरसंघर्ष की बुनियाद पर उनका विराट काव्य संसार खड़ा है। दिनकर के बाद फिर किसी हिंदी कवि को वह स्वीकार्यता और लोकप्रियता नसीब नहीं हुई। कविताओं के अलावा अपनी कई कालजयी गद्य रचनाओं, ख़ासकर 'संस्कृति के चार अध्याय' में उन्होंने सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बीच भारत की एक राष्ट्र के रूप में बेहद तार्किक और सशक्त तस्वीर खींची है। आज स्वर्गीय दिनकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि।
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