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प्रत्याशी की जीत जश्न से खुद को अलग रखें सिख, Sikhs should keep themselves away from celebrating the candidate's victory.


कल से काली पगड़ी और ओढ़नी पहने, गुरुवार को करें अरदास

जमशेदपुर। बारीडीह गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान एवं राष्ट्रीय सनातन सिख सभा संयोजक अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने श्री अकाल तख्त के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी रघुवीर सिंह एवं पांच प्यारों द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए सिखों से आग्रह किया है कि कल मंगलवार को मतगणना के बाद प्रत्याशियों के जीत के जश्ने से खुद को अलग रखें।



अधिवक्ता कुलविंदर सिंह के अनुसार 40 साल पहले 4 जून 1984 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के आदेश पर श्री दरबार साहब पर ब्लू स्टार ऑपरेशन शुरू किया था। श्री गुरु अर्जन देव जी का शहादत दिवस मनाने के लिए देशभर से हजारों सिख दरबार साहब स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे। तीसरे घल्लुघारे सैनिक कार्रवाई में हजारों बेगुनाह सिख श्रद्धालु मारे गए। इतना ही नहीं तोप के गले से सिखों की आध्यात्मिक धार्मिक शीर्ष सत्ता श्री अकाल तख्त साहिब को भी उड़ा दिया गया। श्री दरबार साहिब पर गोलियां चली। श्री गुरु ग्रंथ साहिब पर गोलियां दागी गईं।


कुलविंदर सिंह के अनुसार इस तीसरे सिख नरसंहार को याद करते हैं और सरकार की कार्रवाई को भारतीय लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ मानते हैं। जब पांच सिख साहिबान ने आदेश किया है कि सिख पुरुष काली पगड़ी एवं महिलाएं काली ओढ़नी धारण करें और उक्त नरसंहार पर आधारित कार्यक्रम गुरुद्वारे में आयोजित करें तथा 6 जून को सामूहिक अरदास में शामिल हों।


जब कौम इस काले दिवस को मना रहा है तो ऐसे में प्रत्याशियों की जीत पर जश्न मनाना ठीक नहीं है। कुलविंदर सिंह के अनुसार जीत के जश्न में शामिल होना अर्थात उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने धर्म, राष्ट्र, लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी है। कोई भी सिख किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित है। वह श्री अकाल तक से जारी आदेश पर पहरा दें और छह जून के बाद जश्न मनाने का कार्य करें।


पहला घल्लुघारा सन 1746 में हुआ था।सूबेदार याहिया खान और दीवान लखपत राय की संयुक्त ने गुरदासपुर में तकरीबन 7000 सिखों को शहीद किया था और 3 000 गिरफ्तार हुए थे,  उनका कत्लेआम लाहौर सड़क पर हुआ. दूसरा घल्लुघारा 5 फरवरी 1761 में अहमद शाह दुर्रानी और लाहौर तथा सरहिंद के सूबेदार की संयुक्त फौज ने किया था और इसमें तकरीबन 20 से 25 हजार सिख मारे गए थे। इतिहासकार इसकी संख्या 50 हजार तक भी बताते हैं.



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