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हाथियों के मूवमेंट की दिक्कतों को दूर करने के लिए सर्वे, Survey to remove problems of elephant movement,


गुवा। झारखण्ड की सारंडा वन प्रमंडल एवं ओडिशा की क्योंझर वन प्रमंडल के उच्च अधिकारियों का संयुक्त टीम ने 7 अगस्त को लगातार दूसरे दिन संयुक्त रुप से अंतरराज्जीय हाथी कारिडोर कारो- करमपदा का स्थलीय निरीक्षण किया। यह निरीक्षण सेवानिवृत्त आरसीसीएफ डा. अरुण कुमार मिश्रा एवं एवर ग्रीन फाउंडेशन के अलावे सारंडा वन प्रमंडल पदाधिकारी अभिरुप सिन्हा एवं संलग्न पदाधिकारी नितिश कुमार के नेतृत्व में किया जा रहा है। सारंडा वन प्रमंडल क्षेत्र अन्तर्गत सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु आवासीय व खदान क्षेत्रों से लेकर घाघरथी, झंडीबुरु, भनगांव आदि वैसे क्षेत्र जहाँ पिछले कुछ वर्षों से हाथियों की निरंतर गतिविधियां रह रही है का पैदल सर्वे किया गया। 



7 अगस्त को दोनों सीमावर्ती राज्यों के वन विभाग पदाधिकारियों का संयुक्त टीम ओडिशा के क्योंझर जिला स्थित सारंडा से सटे जंगल हिल्टौप, बोलानी खदान क्षेत्र, किरीबुरु-बडा़जामदा मुख्य मार्ग क्षेत्र के जंगलों जहां हाथी निरंतर आना जाना करते हैं का भौतिक निरीक्षण किया। इस दौरान सेवानिवृत्त आरसीसीएफ अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि झारखण्ड-ओडिशा इंटर स्टेट कारो-करमपदा जो हाथी अभ्यारण है उसका सर्वे किया जा रहा है। इससे पहले वर्ष 2010 में किया गया था, जिसका रिपोर्ट है। 


जांच में यह देखा जा रहा है कि हाथियों कि गतिविधियां किन क्षेत्रों में निरंतर हो रही है। उसका मूवमैंट में क्या दिक्कतें आ रही है। उन दिक्कतों को कैसे दूर करते हुये हाथी की गतिविधियां को आबादी वाले क्षेत्रों से थोडा़ इधर-उधर कैसे किया जा सकता है। हम लोग दोनों वन प्रमंडल आपस में हाथियों की गतिविधियां से जुड़ी डेटा व अन्य जानकारियां आपस में शेयर कर रहे हैं। हाथियों का प्रोटेक्शन आदि कार्य कैमरा ट्रैपिंग आदि के द्वारा किया जायेगा। सारंडा वन प्रमंडल के संलग्न पदाधिकारी नितिश कुमार ने बताया कि उक्त सर्वे में झारखण्ड-ओडिशा सीमा क्षेत्र स्थित कारो-करमपदा रूपी हाथियों का बडा़ कारिडोर की समीक्षा की जा रही है। 




इस सर्वे में पाया गया की कई वर्षों से उक्त कौरिडोर का इस्तेमाल हाथियों द्वारा निरंतर किया जा रहा है। इसके द्वारा पूर्व में निर्धारित कारिडोर के अलावे भी अन्य मार्गों का भी इस्तेमाल हाथियों द्वारा किया जा रहा है। जिसको लेकर उक्त नये कारिडोर को भी विशेष प्लान बनाकर उसे विकसित करने की योजना बनाने का निर्णय लिया गया। साथ में यह भी पाया गया की पूर्व में पहचान किये गये हाथियों के कौरिडोर में उनके विचरण आदि में कई अवरोध है जिसे दूर किया जायेगा। कारो-करमपदा कौरिडोर का इस्तेमाल लगभग 40 हाथियों का समूह समय समय पर कर रहा है। 


जिसका साक्ष्य भी वन विभाग को प्राप्त हुआ है। भविष्य में उक्त कारिडोर का विकास हेतु विस्तृत कार्य योजना बनाकर इसपर वृहत कार्य किया जायेगा। कारो-करमपदा कॉरिडोर को बचाने से मनुष्य व हाथी द्वन्द कम होने के अलावा कोइना नदी के उद्गम स्थान को संरक्षण मिलेगा। झारखण्ड-ओडिशा अंतरराज्यीय हाथी गलियारा अध्ययन में भाग लेने वाले अधिकारियों में डॉ. अरुण कुमार मिश्रा, आईएफएस (सेवानिवृत्त), पूर्व आरसीसीएफ, राउरकेला सर्कल, नितिश कुमार, आईएफएस, संलग्न पदाधिकारी, सारंडा वन प्रमंडल,  के. नागराज, आईएफएस, एसीएफ, क्योंझर, डॉ. प्रकाश चंद्र जेना, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता और हाथी विशेषज्ञ, डॉ. सचिदानंद प्रधान, शिक्षाविद, बिपिन प्रधान, हाथी गलियारा संसाधन व्यक्ति, रंजन कुमार कालो, रेंज अधिकारी, बड़बिल, उत्कल दास, वन्यजीव संरक्षणकर्ता, संबित शुभंकर घराई, जीवविज्ञानी उपस्थित थे।



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