Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template

निशान साहब के चोले के रंग में है सुनहरा इतिहास, There is golden history in the color of Nishan Sahib's robe,

 


कालखंड के पर्याय सफेद, बसंती, केसरिया, भगवा 

सिखों का संविधान है पंथिक रहित मर्यादा

जमशेदपुर। तकरीबन 88 साल के अंतराल में सिख समुदाय को गुरुद्वारों में लगे निशान साहब का चोला (पोशाक) बसंती अथवा सुरमई (न पूरा नीला नाही पूरा काला) रंग के प्रयोग का आदेश सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ श्री अकाल तक साहब द्वारा जारी हुआ है, जिसे अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी सिख संसद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को मिली है। पत्रकार एवं अधिवक्ता कुलविंदर सिंह के अनुसार निशान साहब के चोले के रंग में सिखों का सुनहरी इतिहास है। यह इसके गौरवमई कालखंड को बताता है। 1469 में गुरु नानक देव जी इस संसार में आए और उन्होंने सभी मानव को एकता का संदेश दिया। एकेश्वरवाद का उपदेश, लंगर प्रथा (सच्चा सौदा) की शुरुआत, आडंबर-पाखंड के खंडन के माध्यम से उन्होंने जाति, वर्ग, रंग, रूप, लिंग, धर्म के भेदभाव की दीवार को गिराने का काम किया।



कुलविंदर सिंह बताते हैं कि सिख इतिहास में सबसे पहले सफेद रंग के चोले वाला निशान साहब का उल्लेख तीसरे गुरु अमरदास जी के कार्यकाल में मिलता है। सफेद रंग शांति, सत्य, सादगी का प्रतीक है जो पांचवें गुरु अर्जन देव जी की शहादत तक चला। छठे गुरु हरगोबिंद जी ने पिता गुरु अर्जन देव जी की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए सिख पंथ को सैन्य परंपरा में बदल दिया। श्री अकाल तख्त की स्थापना कर वहां उन्होंने दरबार लगा न्याय देना शुरू किया, घुड़सवार सेना रखनी शुरू की। 52 सैनिकों के घेरे में चलते थे। उन्होंने ही बसंती रंग की पोशाक तय की। बसंती रंग सरसों के खिले फूल के समान, जब विशुद्ध प्राकृतिक है और प्रकृति से जोड़ता है। यह उल्लास और प्रसन्नता का भी प्रतीक है। 


पिता गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के उपरांत गुरु गोविंद सिंह जी ने  1699 ईस्वी में खालसा पंथ सजाया और उन्होंने चोले का रंग नीला कर दिया। नीला रंग इसलिए क्यों कि यह आकाश, महासागर, स्वर्ग, अमरता, शांत, प्रेम, दिव्य आनंद,एकाग्रता, समानता, स्थिरता और पॉजिटिव एनर्जी का प्रतीक है। नीले रंग का चोला का प्रयोग बंदा सिंह बहादुर ने भी किया किंतु महाराजा रणजीत सिंह खालसा राज के दौरान डोगरा ध्यान चंद के प्रभाव में आ गए और राज के व्यापक हित को देखते हुए केसरिया रंग का प्रयोग करना शुरू कर दिया। केसरिया राष्ट्रप्रेम, साहस, बलिदान का प्रतीक है। जब सिखों को खत्म करने की कोशिश मुगलों अफगानों ने की और उनके शीश के मूल्य लगाने शुरू किया तो वह जंगल में चले गए। तब बड़े गुरुद्वारे महंतों के कब्जे में आ गए और केसरिया के साथ भगवा रंग का भी प्रयोग होने लगा। भगवा रंग बलिदान, ज्ञान के प्रकाश और भावना का प्रतीक है।


गुरु नानक देव जी के 13 वें वंशज और इंपीरियल लेजिस्लेटिव असेंबली के सदस्य, अमृतसर के मजिस्ट्रेट, अमृतसर सिंह सभा तथा 50 से ज्यादा  विद्यालय के संस्थापक खेम सिंह बेदी स्वर्ण मंदिर दरबार साहब में प्रवेश कर गए और उन्होंने 1830 35 के दौरान केसरिया एवं भगवा रंग का प्रयोग करना शुरू कर दिया. उन्हें इसमें गुरु नानक देव जी के बड़े बेटे श्रीचंद द्वारा चलाई गई उदासीन परंपरा उदासी अखाड़ा के साधु संत का साथ मिला।


1920 के दशक में गुरुद्वारा सुधार लहर चली और उसमें खेम सिंह बेदी बाहर कर दिए गए। ब्रिटिश सरकार ने ऑल इंडिया गुरुद्वारा एक्ट पारित किया और ऐतिहासिक गुरुद्वारों के प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के हाथ आ गए। 1932 में ही प्रबुद्ध पंथिक सिखों ने सिख पंथ को न्यारे रूप में स्थापित करने के लिए सर्व हिंद सिख मिशन बोर्ड का गठन किया और 1 अगस्त 1936 को इसने कई बैठकों के बाद पंथिक रहित मर्यादा (जीवन पद्धति) तय कर दिया। पंथिक रहित मर्यादा सिखों का संविधान है, जिसका उल्लंघन करने वाले को तनख्वाह अर्थात दंड मिलता है। सिख मान्यताओं के अनुसार यहां वह किसी से छुपा ले परंतु ईश्वर उसे अवश्य दंड देंगे।



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template