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गोपाल मैदान में विश्व आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया गया, World Tribal Day was celebrated with great pomp at Gopal Maidan,


जमशेदपुर। आदिवासी छात्र एकता के तत्वाधान में बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में शुक्रवार को विश्व आदिवासी दिवस समारोह धूमधाम के साथ मनाया गया। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्रसंघ 2024 का घोषणा "स्वदेशी युवा आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रुप में" नारा के साथ जनसभा का आयोजन किया गया। विश्व आदिवासी दिवस मनाने का महत्त्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि भारत में आदिवासियों की आबादी अफ्रीका के बाद सर्वाधिक है। 



इसी उद्देश्य को लेकर सन् 2007 में आदिवासी छात्र एकता ने गोपाल (रीगल) मैदान, जमशेदपुर में विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला किया था। 24 अक्टुबर 1945 को संयुक्त राष्ट्रसंघ के गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्रसंघ ने यह महसूस किया कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत आदिवासी समाज अपने मूलभूत जैसी समस्याओं से ग्रसित है। आदिवासी समाज के उक्त समस्याओं का निराकरण हेतु विश्व का ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया। आदिवासी बहुल देशों में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है जिसमें भारत भी शामिल है। पूरे विश्व में निवास करने वाले एवं संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देशों तक "आदिवासी बचेगा तो दुनिया बचेगा" नारों का संदेश पहुँचाने के उद्देश्य से गोपाल मैदान में नगाड़ों की गूंज पर 9 अगस्त 2024 दिन शुक्रवार को दोपहर 2 बजे से विशाल जनसभा के आयोजन का शुभारम्भ किया गया। 


इस जनसभा में संथाल, हो, मुण्डा, भूमिज, उराँव, माहली सहित विभिन्न आदिवासी समाज के प्रखर विद्वान, छात्रों, सामाजिक नेता एवं बुद्धिजीवी आदिवासियों के दशा एवं दिशाओं पर विस्तार से सभी लोगों ने अपना अपना विचार से रखे। इस अवसर पर आदिवासी वेश भूषा, खान-पान, आदिवासी साहित्य एवं पुस्तक के साथ आदिवासी पारम्परिक वाद्ययंत्र के लिए 25 पक्का स्टाल भी लगाए गए। गोपाल मैदान के जनसभा में भारत के आदिवासियों के लिए सप्तशील नीति का अनुपालन करने हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकार को प्रस्ताव की घोषणा की गई।


भारतीय आदिवासियों के सप्तशील निम्न हैं: आदिवासियों के राजनीतिक स्वशासन व्यवस्था, सामाजिक संगठन, अर्थनीति और सांस्कृतिक मूल्य (समता, सामुदायिकता, सहभागिता, संगति) मानवीय जीवन की नींव है, अपने क्षेत्र में जल जंगल, जमीन एवं उनके जमीन के नीचे खनिजों पर आदिवासी का नैसर्गिक और संवैधानिक प्राथमिक अधिकार है, आदिवासी अपने अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा एवं विकास अपने सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही करेगा, आदिवासी सामुहिक नेतृत्व ही पर सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक आंदोलन का संचालन करेगा, सार्वजनिक निर्णय ही पर आदिवासी समाज वर्तमान और भविष्य की बदलाहट की दौड़ के मध्य अखण्ड रह सकेगा, आदिवासी विस्थापन रहित विकास मॉडल पर्यावरण का पूर्ण ध्यान रखते हुए ग्राम सभा से आरम्भ होकर समाज में विस्तार होगा, भारत के संविधान में पांचवी अनुसूची के प्रावधान में भारतीय वृहत् समाज में एक देशज समाज और महान भारत देश के अंदर आदिवासी राष्ट्रीयता का सपना है। कार्यक्रम के दौरान भारत के आदिवासी को जनजाति से संबोधित करना गलत और अनुचित बताया गया। 


जनजाति शब्द से आदिवासी को भारतीय जाति प्रथा की जाल में फंसा कर विलीन करने का प्रयास किया गया है। आदिवासी एक विशिष्ट राष्ट्रीयता का बोध कराता है। जनसभा को सम्बोधित करने वालों में मुख्य रूप से आदिवासी छात्र एकता के पदाधिकारी जोसाई मार्डी, संस्थापक सह मुख्य संरक्षक, इंदर हेम्ब्रम, संयोजक, हेमेन्द्र हाँसदा, अध्यक्ष, हरिमोहन टुडु, नन्दलाल सरदार, राज बाँकिरा, स्वपन सरदार, दुलाल हाँसदा, गुरुचरण सोरेन, जयपाल मुण्डा, चाँदराय मार्डी, प्रभाकर हाँसदा बाबुलाल माझी, विष्णु मुर्मू एवं समाज के प्रतिनिधि माननीय दासमात हाँसदा, जुगसलाई तोरप परगना, माननीय महेन्द्र हेम्ब्रम, तितिरबिला मौजा मुण्डा, माननीय मनोज कुमार सोय, आदिवासी हो समाज महासभा आदि ने जनसभा को विस्तार पूर्वक संबोधित किया। कार्यक्रम में हजारों हजार की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति की झलक देखते ही बन रहा था।



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