Guwa (Sandeep Gupta) । सारंडा में इस बार विधानसभा चुनाव के दौरान 13 नवम्बर को मतदाताओं को बूथों तक जाने से रोकने हेतु नक्सलियों ने अपनी तरकश की सारे तीर व बुद्धि अजमा लिये, लेकिन वह मतदाताओं को लोकतंत्र के इस महापर्व में भाग लेने से नहीं रोक सके। अब नक्सलियों को समझ जाना चाहिए कि उनके प्रभाव वाले क्षेत्र की जनता भी अब उनकी नीतियों के साथ नहीं है। नक्सली बंदूक के बल पर जनता की आवाज दबाने का प्रयास कुछ मिनट या घंटा के लिये तो कर सकते हैं, लेकिन उसमें सफल नहीं हो सकते हैं।
13 नवम्बर को मतदान के दिन नक्सलियों ने सारंडा के हतनाबुरु-पोंगा मार्ग पर पेड़ काट गिराया, मारंगपोंगा व होलोंगऊली के जंगल में चुनाव से एक दिन पूर्व शाम को घूम घूम कर चुनाव बहिष्कार का प्रचार ध्वनि यंत्र से किया, तितलीघाट-सैडल मार्ग पर पेड़ की डाली, बैनर-पोस्टर लगाया, रबंगदा-कोलभंगा क्षेत्र में बैनर-पोस्टर लगा मतदाताओं को धमकी दिया, इसके अलावे नयागांव, रायडीह, बिटकिलसोय आदि गांव क्षेत्र में बैनर-पोस्टर लगाकर ग्रामीणों को वोट डालने जाने से रोकने का प्रयास किया गया।
नक्सली चुनाव के दिन जहाँ जहाँ बैनर-पोस्टर लगाये थे, वहाँ कुछ स्थानों पर गड्ढा खोद उसमें स्टील का केन लगा यह धमकी दिये की कोई भी जनता बैनर को नहीं हटायें, इसमें बम लगा है, छूने से विस्फोट हो जायेगा। पुलिस जाँच में पाया गया की नक्सलियों ने कहीं बम नहीं लगाया था, सिर्फ मतदाताओं को डराने हेतु ऐसा किया था। लेकिन उनके फरमान व धमकी को मतदाता हर जगह ठेंगा दिखाया।
हर जगह बम-बुल्लेट की धमकी के बावजूद ईवीएम निरंतर मतदाताओं के बटन दबाने के साथ आवाज करता रहा। यह आवाज लोकतंत्र को निरंतर मजबूत करता रहा। अब नयी सरकार को सोचना होगा कि वह नक्सल प्रभावित ऐसे क्षेत्रों की जनता के सर्वागीण विकास के लिये कैसा कार्य करती है। उन्हें बेहतर विकास के माध्यम से मुख्यधारा से भटक हथियार उठाये लोगों का भी विश्वास जीत मुख्यधारा में वापस लाने का प्रयास करना होगा।
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