Guwa (Sandeep Gupta) । सरगुंजा की पिली फूलों से एशिया का सबसे बडा़ साल जंगल सारंडा गुलजार हो गया है। सारंडा के लोग खाने का तेल के लिये भारी पैमाने पर सरगुंजा की खेती करते हैं। सरगुजा के बदले वह व्यापारियों से चावल भी बदली करते हैं। सरगुंजा की खेती में अधिक मेहनत एंव अधिक पानी की जरूरत नहीं होती इस लिये वह पहाड़ी व ढ़लानों पर स्थित अपनी तमाम भूमि पर सरगुंजा की खेती करते हैं।
सारंडा के किसी भी ग्रामीण व मुख्य सड़कों से गुजरते समय सारंडा की तमाम वादियों एंव जंगलों को इन पिली फूलों से पटा देखा जा सकता है। सारंडा से गुजरने वाले तमाम राहगीर एक बार सरगुंजा के इन पिले फूलों से पटा खेतों में घुसकर एक सेल्फी या फोटो खिचा इन लम्हों को यादगार बना रहे हैं। सारंडा पीढ़ के मानकी लागुडा़ देवगम ने बताया की सरगुंजा की खेती हम किसान अपने खेतों में एक-एक वर्ष के अंतराल पर करते हैं। इससे खेत की उर्वर्कता कायम रहती है।
अर्थात इस वर्ष जिस खेत में सरगुंजा की खेती करेंगे तो अगले वर्ष उसमें गोडा़ धान या अन्य फसल लगाते हैं। सरगुंजा का बीज से तेल निकाला जाता है जिसका इस्तेमाल खाने में होता है। पिछले वर्ष स्थानीय हाट-बाजार में सरगुंजा का बीज 50-60 रूपये किलो अथवा 10 डब्बा सरगुंजा के बदले 20 डब्बा चावल के हिसाब से बिक्री हुआ था। इस वर्ष क्या कीमत होगी वह आने वाला समय बतायेगा।
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