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Bhopal. नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी , New Year's challenges and our responsibilities


Upgrade Jharkhand News. नया साल प्रारंभ हो रहा है। आज जन मानस के जीवन  में मोबाईल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं ? अब साल , दिन ,महीने , तारीखें, समय सब कुछ टच स्क्रीन में कैद हाथों में सुलभ है। वैसे भी अंतर ही क्या होता है , बीतते साल की  आखिरी तारीख और नए साल के पहले दिन में, आम लोगों की जिंदगी तो वैसी ही  बनी रहती है। हां दुनियां भर में नए साल के स्वागत में जश्न, रोशनी, आतिशबाजी जरूर होती है। लोग नए संकल्प लेते तो हैं, पर निभा कहां पाते हैं? कारपोरेट जगत में गिफ्ट का आदान प्रदान होता है,डायरी ली दी जाती है,पर सच यह है कि अब भला डायरी लिखता कौन है ? सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है। देश का संविधान भी सुलभ है, गूगल से फरमाइश तो करें। समझना है कि संविधान में केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं। लोकतंत्र के नाम पर आज स्वतंत्रता को स्वच्छंद स्वरूप में बदल दिया गया है।


 

इधर मंच से स्त्री सम्मान की बातें होती हैं उधर भीड़ में कुत्सित लोलुप  दृष्टि मौका मिलते ही चीर हरण से बाज नहीं आती। स्त्री समानता और फैशन के नाम पर स्त्रियां स्वयं फिल्मी संस्कृति अपनाकर संस्कारों का उपहास करने में पीछे नहीं मिलती। देश का जन गण मन तो वह है , जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं। जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर , गणेश और शिव वंदना गाते हैं। पर धर्म के नाम पर वोट के ध्रुवीकरण की राजनीति ने तिरंगे के नीचे भी जातिगत आंकड़े की भीड़ जमा कर रखी है। इस समय में जब हम सब मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ नए साल के अवसर पर  टच करें हौले से अपने मन,अपने बिसर रहे संबंध ,और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में, मन में स्व के साथ समाज वाले भाव भरे सूर्योदय के साथ।



यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं। सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली  संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है। इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सबकी जिम्मेदारी है। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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