Jamshedpur (Nagendra) । भगवान नारायण के आदेश के बाद ब्रह्मा ने श्रृष्टि की रचना की थी। इसके बाद ही उतान पाद के वंश के रूप में ध्रुव पैदा हुए। सोनारी के दोमुहानी स्थित गीता भवन में श्री हरिवंश महापुराण का आयोजन किया जा रहा है। महापुराण के दूसरे दिन व्यास पीठ से श्रृष्टि की रचना का वर्णन करते हुए हरियाणा के यमुना किनारे से आए रविकांत वत्स महाराज ने ये बातें कहीं।
उन्होंने बताया कि श्रृष्टि की रचना के दौरान भगवान नारायण ने पहले जल की उत्पत्ति की इसलिए उन्हें 'नार' कहा गया। प्रलय के समय भगवन श्यन मुद्रा में थे इसलिए 'नारायण' कहलाएं। जल में ही उन्होंने एक भ्रूण स्वरूप में ब्रह्मा को स्थापित किया। इसके दो टुकड़े हुए, पहला टुकड़ा स्वर्गलोक जबकि दूसरा टुकड़ा पृथ्वीलोक बना। वहीं बीच का हिस्सा आकाश बना। इसके बाद ब्रह्मा को जीवन का विस्तार करने का आदेश भगवान नारायण ने दिया जिसके बाद ब्रह्मा ने लोभ, क्रोध, द्वेष और अंहकार की उत्पत्ति की।
इसके बाद उन्होंने सप्तऋषि (वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि, गौतम) की उत्पत्ति की लेकिन फिर से श्रृष्टि नहीं बढ़ने पर उन्होंने अपने नाक से भगवान शंकर के गण के रूप में रुद्र और शंकादि ऋषि की उत्पत्ति की। फिर भी श्रृष्टि का विकास नहीं होने पर ब्रह्मा के दो हिस्से हुए। एक से मनु और दूसरे से सतरूपा की उत्पत्ति हुई जिन्होंने 10 हजार वर्ष तक तपस्या की। इनसे दो पुत्र (उतान पाद व प्रियवत) और तीन पुत्री (आकृति, देउति व प्रसूति) की उत्पत्ति हुई। उतान पाद के वंश के रूप में भगवान ध्रुव पैदा हुए और इनके ही वंशज राजा वेन, अंशावतार के रूप में पृथु हुए जिन्होंने पृथ्वी ने जिन औषधियों को अपने उदर में छिपा लिया था उसे प्रजा के कल्याण के लिए फिर से प्राप्त किया। इसके बाद ब्रह्मा ने कश्यप व अगस्ता से सूर्य (मार्तण्ड) उनके पुत्र शनि, यम, चंद्रमा व बुध की उत्पति की।
1000 चतुर्भुज ब्रह्मा का एक दिन - महाराज रविकांत ने महापुराण में भगवान ब्रह्मा के दिन की गणना करते हुए बताया कि 1000 चतुर्भुज बीतने पर ब्रह्मा का एक दिन और 1000 चतुर्भुज रात बीतने पर ब्रह्मा का एक रात होता है। 71 चतुर्भुज एक मनु की आयु होती है जिसे मनवंतर कहा जाता है। एक मनवंतर मनु का एक काल है। 14 मनवंतर में से अभी सांतवां वैभ संवत मनवंतर चल रहा है।
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