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Jamshedpur. जरासंध ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कालयवन को भेजा, पर सफल नहीं हुआ, Jarasandha sent Kalayavan to kill Shri Krishna, but did not succeed.


Jamshedpur (Nagendra) । भगवान शंकर से कालयवन को वरदान था कि उसे कोई भी मथुरावासी मार नहीं सकता , इसलिए कंस का वध किए जाने के बाद जरासंध ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए कालवयन का सहारा लिया। लेकिन भगवन ने भी युक्ति लगाकर उसे भस्म करा दिया । श्री हरिवंश महापुराण के छठवें दिन व्यासपीठ से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए हरियाणा के यमुना पार से आए श्री रविकांत जी महाराज ने यह कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा कंस का वध करने के बाद जरासंध ने कालयवन से सहायता मांगी लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को कालयवन को मिले वरदान का ज्ञान था इसलिए युद्ध करने के बजाए वे रण छोड़ कर भागे इसलिए उनका एक नाम रणछोड़ भी पड़ा और भाग कर ललितपुर के धौजरी के पास पर्वत पर स्थित गुफा में पहुंचे। 


यहां मुचुकंद ऋषि तपस्या कर रहे थे जिन्हें ब्रह्मा से वरदान था कि जो उनकी तपस्या में विघ्न उत्पन करेगा, उनके देखते ही भस्म हो जाएंगे। इसलिए गुफा में पहुंचने पर भगवान ने अपना पीतांबर वस्त्र उतारकर मुचुकंद ऋषि को ओढ़ा दिया। जब कालयवन यहां पहुंचा तो उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण यहां तपस्या कर रहे हैं । इसलिए बिना सोचे-समझे उन पर वार करना शुरू कर दिया। इससे ऋषि की तपस्या टूटी और उनकी निगाह पड़ते ही कालयवन भस्म हो गया। इस प्रकार धर्म के लिए भगवान ने नीति अपनाकर कालयवन को भस्म करा दिया। छठे दिन रविकांत महाराज ने कंस के वध के बाद मथुरा पर जरासंध का आक्रमण, श्रीकृष्ण-जरासंध युद्ध, भगवान परसुराम के आदेश पर गौमत पर्वत पर भगवान का आगमन और रुकमणी स्वयंवर का वर्णन किया।


मृत्युलोक है कर्मों को भोगने की भूमि - कथा में आगे परिजात वृक्ष का महत्ता का बखान करते हुए रविकांत महाराज बताते हैं कि मृत्युलोक कर्मों को भोगने की भूमि है। परिजात वृक्ष समुद्र मंथन में उत्पन हुआ था और यह जहां भी रहता है वहां अधर्म नहीं रहता। हर प्रकार की सुख-समृद्धि, सभी तरह के रोगों का नाश के अलावा पिछले जन्म की स्मृति ज्ञात हो जाता है। इसलिए यह वृक्ष पृथ्वी पर नहीं है लेकिन अपनी पटरानी सत्यभामा के नाराज होने पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मनाने के लिए इंद्र से युद्ध कर परिजात वृक्ष को द्वारका लेकर आए। इस पर इंद्र ने कहा कि यह धर्म के विरूद्ध है क्योंकि परिजात जहां रहेगा वहां सुख-समृद्धि रहेगी। ऐसे में मृत्युलोक के वासी कैसे अपने कर्मों को भोग सकेंगे। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण उसे वापस इंद्र को लौटा दिया था।



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