Jamshedpur (Nagendra) । ब्रह्मा से षष्ठसुर को वरदान मिला था कि उसके महल में कोई घुस नहीं सकता है और न ही कोई उसे मार सकता है लेकिन भगवान ये भी कहा था कि रुद्र व ब्राह्मण से बैर नहीं रखना नहीं तो विनाश निश्चित है लेकिन उसने ब्राह्मणों को परेशान करने लगा। इससे नाराज होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से षष्ठसुर का संहार किया। श्री हरिवंश महापुराण के सातवें दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राक्षसों का वध करने की कथा का वर्णन करते हुए हरियाणा के यमुना पार से आए महाराज रविकांत वत्स ने ये बातें कहीं।
कथा में उन्होंने आगे बताया कि भगवान ब्रह्मा की एक लाख वर्ष तक तपस्या कर निकुभ राक्षस ने तीन रूप और कोई न मार सके, ऐसा वर मांगा था। इसके बावजूद गलत आचरण करने, स्त्रियों को सताने, जबरदस्ती यज्ञ का भाग मांगने और ब्राह्मणों को परेशान करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने इनका भी वध किया था। श्री हरिवंश महापुराण के सातवें दिन व्यासपीठ से महाराज ने त्रिपुर के सोने, चांदी व लोहे के महल व उनका वध, श्रीकृष्ण के पौत्र प्रद्यूमन का राक्षसों से युद्ध, दुर्वाशा ऋषि के श्राप के कारण भानुमति का राक्षसों द्वारा अपहरण कामदेव-रति का पुर्नजन्म सहित अन्य कथा वर्णन किया ।
1000 सिर वाला था अंधकासुर - कथा के दौरान महाराज रविकांत ने बताया कि कश्यप ऋषि की दो पत्नियां, दीति व अदीति थी। दीति से राक्षस जबकि अदिति से देवाओं का जन्म दिया। इसी दीति से अंधकासुर का जन्म हुआ। उसके 1000 सिर, एक हजार भुजाएं और एक हजार पैर थे। राक्षस होने के कारण वह स्त्रियों का हरण कर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों को परेशान करता था। भगवान विष्णु की लीला की और अंधकासुर परिजात वृक्ष लेने भगवान शिव के पास पहुंचा और उनके बीच भयंकर युद्ध हुआ। इसमें भगवान शिव ने उसका संहार कर धरतीवासियों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। महाराज बताते हैं कि भगवान ब्राह्मणों से बहुत प्रेम करते हैं और जिन्होंने भी उनको सताया, भगवान अपने भक्तों को बचाने के लिए जरूर आए हैं।
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