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Bhopal. पाकिस्तान के लिए अन्तिम मुनादी, Final call for Pakistan


Upgrade Jharkhand News. हे! पाकिस्तान, सावधान। हे! पाकिस्तान संभल जा। हे! पाकिस्तान ढर्रे पर आ जा वरना तेरे भविष्य का खुदा ही मालिक है। तेरा क्या होगा इसकी पटकथा मोदी सरकार के नेतृत्व में भारतीय सेना ने महज  तीन दिनी चुनिंदा हमले में ही लिख दी है और बजरिये संघर्ष विराम मोदी सरकार ने तुम्हारे विनाश की अन्तिम मुनादी कर दी है। हे! पाकिस्तान ये संघर्ष विराम तुझे रातदिन याद दिलाता रहेगा कि शर्तो का उल्लघंन हुआ तो तुझे कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा। यदि तुर्की, अजरबैजान और चीन के भरोसे तू भारत से निपट लेने के सपने भी बुनेगा तो सोते में वे सपने भी तुम्हे ही डरायेगें और तेरे भविष्य का सच भी दिखायेगें कि तीन दिनी हमले में ही तुझे दिये, तुर्किये और चीन के हथियार किस तरह फुस्स हो गये और तो और अमेरिका के हथियार भी भारतीय सेना के सामने पानी मांग गये। तू याद रख आज तक हर युद्ध में तू मुंह की खाता रहा है। वैसे तो तुमने चार युद्ध लड़े है लेकिन विशेषकर 1965 और 1971 के युद्ध के परिणामों से तूने सबक सीखा होता तो शायद ही भारत से कभी भिड़ने की सोचता।



सन् 1965 के युद्ध में यदि संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्तक्षेप कर युद्ध न रूकवाया होता तो तेरा विनाश तभी हो गया था। तुझे याद दिला दूं कि किस तरह भारत के वीर सैनिकों ने अपने कमतर टैेकों आदि अन्य हथियारों से अमेरिकी पैटन टैंकों के जखीरे को ही नष्ट कर दिया था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 97  टैंक मिट्टी में मिला दिये गये थे और 72 टैंक भारतीय सेना ने पकड़ लिये थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में उनके नारे 'जय जवान जय किसान' की ही ताकत थी कि दुष्ट सैन्य राष्ट्रपति अयूब खान की पैंट ढीली हो गई थी। जब उसने देखा कि भारतीय सेनायें लाहौर तक पहुंच गई हैं वो कुछ आगे बढ़ा तो भारतीय सेना कुछ भी कर सकती है। और भागकर अय्यूब खान रूस की शरण में जा पहुंचा और उसके गिड़गिडाने के बाद ही ताशकंद समझौता शुरू हुआ। इसी समझौते के तत्काल बाद देश के लाड़ले लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत हो गई थी जिसका रहस्य आज तक नहीं खुल सका है। यदि इस युद्ध से पाक हुक्मरानों ने सबक सीखा होता तो सन् 1971 में वो भारत से युद्ध छेड़ने की हिमाकत न करता। 



काश! उसके तत्कालीन सेनापति व सैनिक राष्ट्रपति याहिया खान ने एक बार भी 1965 के युद्ध के परिणाम की याद कर ली होती। काश! वो चंड़ीगढ़ और अम्बाला छावनी में भारत के सैनिकों द्वारा ध्वस्त व पकड़े गये पैटन टैकों की याद कर लेता जो भारतीयों के लिये सैल्फी प्वाइंट बने हुये हैं तो पाकिस्तान हुक्मरान जंग की सपने में भी न सोचते। 1971 की जंग पाकिस्तान ने एक दुष्ट राष्ट्रपति जनरल याहिया खान के नेतृत्व में लड़ी थी। उस समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी थी और सेना अध्यक्ष थे सैम मानेक शॉ। प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की दृढ़ता और मानेक शॉ के करिश्माई नेतृत्व में भारतीय सेना ने न केवल पाक सेना के छक्के छुड़ा दिये थे वरन् पाकिस्तान के  93 हजार सैनिकों को भारतीय सेना के तत्कालीन  जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण करने को विवश कर दिया था और ये बंदी तीन साल तक भारत की जेलों में बंद रहे थे। इसी युद्ध से ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था और जिसके पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान बनाये गये थे। ज्ञात रहे इस युद्ध में अमेरिका, चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था और केवल रूस ने भारत का। 



इस युद्ध के बाद ही प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को देश की जनता ने लौह महिला की उपाधि दे डाली थी और इस युद्ध के बाद बुरी तरह पराजित पाक राष्ट्रपति याहिया खान ने पद से इस्तीफा दे दिया था और जुल्फिकार अली भुट्टो राष्ट्रपति बने थे। इसी युद्ध के बाद 1972 में शिमला समझौता हुआ था। दो-दो जंगों में करारी मात खाने के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और 1999 में उसने कारगिल युद्ध छेड़ दिया। जिसमें भी उसके सैनिकों को दुम दबाकर भागना पड़ा था। 


आतंकियों का सहारा-सीधे युद्धों में बार-बार मात खाने के बाद  पाकिस्तान के दुष्ट हुक्मरानों ने आतंकियों की फौज तैयार करनी शुरू कर दी। आईएसआई की छांव में उसने भारत सीमा पर दहशतगर्दीं के परीक्षण केन्द्र व लॉचिंग पैड स्थापित कर  दिये जिसका ही नतीजा रहा भारत मेें  संसद पर हमला, चट्टी सिंह पौरा गांव हमला, पुलगांव हमला और ताजा पहलगाम हमले। इन हमलों में जिस तरह निर्दोषों का खून बहाया गया है उसका हिसाब किताब होना ही होना है। 


बड़बोलेपन की हद - पाकिस्तान के जिस राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो को उन्ही के सैन्य तानाशाह राष्ट्रपति जियाउलहक ने फांसी के फंदे पर लटका दिया था वही भुट्टो सार्वजनिक मंचों से 'घास की रोटी खाकर परमाणु बम बनाने और भारत से एक हजार साल तक युद्ध लड़ने का ऐलान किया करता रहा था।'इसी तरह पाक के सभी हुक्मरान भारत को धमकी देने से बाज नहीं आते रहे हैं। कोई कश्मीर वापस लेने की चेतावनी देता रहा तो कोई परमाणु बम से हमले करने की पर नतीजा आज एक बार फिर पूरी दुनिया ने देख लिया है। शिव शरण त्रिपाठी



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