Mumbai (Anshu Jha) आज श्रावण मास का अंतिम सोमवार है। भगवान शिव की भक्ति में डूबा यह पावन महीना अब अपनी पूर्णता की ओर है। मंदिरों में घंटियों की गूंज थोड़ी और तेज़ है, कांवड़ियों की संख्या थोड़ी और अधिक है, और शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने वालों की श्रद्धा थोड़ी और गहरी लगती है। सावन सिर्फ एक धार्मिक महीना नहीं होता , यह एक संयम का समय होता है, संवेदनाओं की परीक्षा का महीना, और शरीर-मन की शुद्धि का मौसम भी होता है।
जब धर्म और शरीर एक लय में चलते हैं-आयुर्वेद के अनुसार, सावन का समय शरीर के लिए सबसे संवेदनशील होता है। वर्षा ऋतु के चलते पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसीलिए इस महीने में उपवास, हल्का भोजन, हर्बल काढ़ा और मांसाहार से परहेज़ जैसे उपाय आयुर्वेदिक रूप से भी सही माने जाते हैं।इसी कारण बहुत संख्या में श्रद्धालुओं सावन में शुद्ध शाकाहारी जीवन शैली अपनाते हैं । न सिर्फ ईश्वर भक्ति के लिए, बल्कि शरीर के भीतर चल रहे संक्रमण और वात-पित्त के असंतुलन से भी रक्षा के लिए।
भक्ति में भी एक साधना है, जो अब टूटने को है-हर सोमवार शिव मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़, “बोल बम” की गूंज, और जलाभिषेक करते युवाओं का उत्साह! यह सब आज के बाद कम हो जाएगा। अगले सोमवार से ना वो शिवरात्रि का इंतजार रहेगा, ना उपवास की कसौटी।
भक्ति के बाद फिर वही भीड़ लेकिन अब नॉनवेज दुकानों पर!"-सावन के खत्म होते ही कई जगहों पर मांस-मछली की दुकानों पर भीड़ लग जाती है। ये दृश्य एक गहरी सोच छोड़ जाते हैं
क्या संयम बस एक महीने की रस्म भर था?-क्या श्रद्धा का आधार सिर्फ परंपरा है या समझ भी है?एक ओर शिव को वैद्यराज मानकर लोग डिटॉक्स करते हैं, वहीं सावन समाप्त होते ही उसी शरीर में बिना रुके फिर से विषाक्तता भरने की होड़ शुरू हो जाती है? अब जब सावन जा रहा है... तो कुछ साथ ले जाए और कुछ छोड़ जाए सावन जा रहा है, लेकिन हमें उसके संदेश को अपने जीवन में रोक लेना चाहिए। वो संयम, वो भक्ति,वो शरीर की देखभाल,और वो भावनात्मक परिपक्वता यही असली प्रसाद है जो सावन हमें दे जाता है।

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