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Bhopal व्यंग्य-पहचाना आपने ? Did you recognize the sarcasm?

 


Upgrade Jharkhand News. पहचाना आप ने ?, अरे कैसी बात करते हैं, आप भी! संकोच में ऐसा कह चुकने के बाद , वे बातों बातों में वह सूत्र ढूंढते हैं कि किसी तरह मिलने वाले का नाम याद आ जाए ? दरअसल, नाम आदमी की पहचान है, पर याददाश्त के साथ उसका रिश्ता हमेशा लुका-छुपी का ही रहा है। चेहरा तो  लोग पहचान लेते हैं, पर नाम जैसे हमारी स्मृति से सबसे पहले पलायन कर जाता है। किसी को फोन करना हो तो याद ही नहीं आता कि बंदे का नंबर किस नाम से सेव किया था। एक विवेक ढूंढो तो तीन निकल आते हैं, इसलिए रिफरेंस या शहर का नाम साथ लिखना पड़ता है।



किसी पार्टी या सभा में मिलते समय नाम स्मरण की यह समस्या सबसे अधिक होती है। सामने वाला मुस्कराते हुए "कैसे हैं आप" कहता है और हम भी उतनी ही आत्मीयता से "अरे आप!" कह देते हैं। इस "आप" के पीछे कितनी मजबूरी और कितना अपराध बोध छुपा होता है, यह वही समझ सकता है जिसने मिलने वाले का नाम दिमाग की हार्ड डिस्क से डिलीट कर ‘रीसायकल बिन’ में पहुंचा दिया होता है। और रिसाइकिल बिन क्लीन कर दी होती है। दिमाग को सारे खाए हुए बादाम की कसम देते रहो पर नाम याद ही नहीं आते, तब सभ्यता के नाते दिमाग से काम लेना पड़ता है , और पहचानने की एक्टिंग करनी पड़ती है।  शशि कपूर साहब ने इस विसंगति का हल खोज निकाला था। वे मिलते ही सामने वाले से कहते, "हाय, आई एम शशि कपूर।" सामने वाला भी शिष्टाचार निभाने के चक्कर में अपना परिचय दे देता। यह फार्मूला कलाकारों और सेलिब्रिटीज के लिए तो ठीक है, पर अगर मोहल्ले का गजोधर प्रसाद या हरिप्रसाद यही तरीका अपनाए तो सामने वाला शक करने लगेगा कि कहीं यह बीमा बेचने वाला एजेंट तो नहीं।



कुछ लोग इस समस्या को छिपाने के लिए ऐसे रचनात्मक वाक्य गढ़ते हैं कि सुनकर हंसी भी आए और दया भी। जैसे कोई कहे  "भाई साहब, आप तो बिल्कुल नहीं बदले!" अब सामने वाला सोचता है कि मैं पचास साल से यही हूँ, बदली तो तुम्हारी याददाश्त है। या फिर लोग बचने के लिए रिश्तों का सहारा लेते हैं  "भाभी जी", "भाई साहब", "चाचा जी"। यही तो भारतीय संस्कृति का अद्भुत चमत्कार  है। जब नाम याद न आए तो रिश्ते का लेबल चिपका दो, सामने वाला खुद ही नाम बता देगा।  हमारे एक अंकल ने इस समस्या को सीधे ईमानदारी से हल किया। वे मिलते ही कहते, "बेटा, याददाश्त कमजोर हो चुकी है, बातें करने से पहले नाम और पता बता दीजिए।" अब उनकी इस सादगी में न दिखावा है, न शिष्टाचार का जाल। सामने वाला झट से नाम बता देता है, जैसे परीक्षा हॉल में अपना  एडमिशन कार्ड दिखा रहा हो।



नाम भूलने की समस्या अक्सर हास्यास्पद हालात पैदा कर देती है। शादी ब्याह में रिश्तेदार एक-दूसरे से टकराते हैं, पर नाम भूलने का अपराधबोध दोनों ओर इतना गहरा होता है कि बातचीत का सारांश यही रह जाता है  "अरे आप!" और "जी, वही!" ऑफिस पार्टियों में तो यह विसंगति और भी दिलचस्प हो जाती है। कोई  पूरे आत्मविश्वास से पांच मिनट तक बतियाता रहता है और फिर पूछ बैठता है  "वैसे आपने मेरा नाम तो नहीं भुलाया?" तब तक नाम सचमुच स्मृति की फाइलों से प्रसंगवश रिकवर हो गया तो हम पूरे आत्मीय भाव से  मुस्कराते हुए कहते हैं, अरे फलां जी कैसी बात करते हैं आप भी।वरना बाद में सिर खुजाते मिलने वाले का नाम स्मृति पटल  पर खोजना होता है। सच यह है कि नाम भूलना कोई व्यक्तिगत कमजोरी नहीं है, यह भीड़ में घुल जाने की कला है। हम रोज़ इतने चेहरों से मिलते हैं कि दिमाग भी कभी-कभी ‘सिस्टम हैंग’ कर देता है। और तब "अरे आप" या "भाई साहब" जैसे संबोधन जीवनरक्षक ऐप साबित होते हैं।



अब समय आ गया है कि सरकार आधार कार्ड में एक नया फीचर जोड़ दे। जैसे ही हम किसी से मिलें, दोनों के मोबाइल पास लाते ही ब्लूटूथ से स्क्रीन पर स्वयं ही नाम चमक उठे। पर तब तक हमें अंकल की ही ईमानदार शैली अपनानी होगी  कहना होगा "ओ मिलने वाले, जरा अपना नाम तो बता।" क्योंकि बिना नाम का  संदर्भ समझे  बातचीत करना वैसा ही है जैसे अंधेरे में रेडियो सुनना। आवाज तो आती है, मज़ा भी आता है, लेकिन यह समझ ही नहीं पड़ता कि प्रसारण किस स्टेशन से चल रहा है।  मैं एक सज्जन के यहां, रात्रि भोज पर निमंत्रित था , भोजन कर आया। उनकी पत्नी से यह पहली भेंट थी। सभ्यता से भाभी जी की ओर बहुत ध्यान से देखा भी नहीं। अगले दिन बाजार में जब एक महिला मेरी ओर देख कर मुस्करा रही थी, तो मुझे समझ ही नहीं आया कि यह क्या और क्यों हो रहा है। मुझे अजनबी सा देखते पा कर  देवी जी बोली,अरे खाना खाकर भी आपने पहचाना नही , झेंपने के सिवा क्या कर सकता था मैं। दरअसल महिलाएं हेयर स्टाइल बदल दें, या देसी परिधान की जगह पाश्चात्य ड्रेस पहन लें तो उन्हें पहचानना मेरे लिए वैसे भी कठिन हो जाता है।  सच तो यह है कि एक नग अपनी पत्नी के मूड तक को भी अब तक कभी पहचान नहीं पाया। खैर आप ही बताइए , किस को कितना पहचाना आप ने? विवेक रंजन श्रीवास्तव



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