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Bhopal दृष्टिकोण - सर्वे भवन्तु सुखिनः ही दशहरे का आदर्श संदेश Perspective - Sarve Bhavantu Sukhinah Hi The ideal message of Dussehra

 


Upgrade Jharkhand News. कौन नहीं जानता, कि वैज्ञानिक व तकनीकी युग में जहाँ तर्क आधारित जीवन शैली को समाज में अपनाया जा रहा है तथा व्यक्ति कर्म के सिद्धांत पर अमल कर रहा है। उस युग में भी बाबा आदम के ज़माने की चर्चा की जा रही है। प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक ऐसा समूह समाज में अपने पाँव पसार रहा है, जिसका उद्देश्य ही समाज के समरस स्वरूप को वैमनस्यता की दलदल में धकेल कर विघटनकारी विमर्श का प्रसार करना है। यदि ऐसा न होता, तो देश में राजनीतिक विचारधारा के नाम पर समाज को तोड़ने के षड्यंत्र न रचे जाते। सामाजिक सद्भाव व समरसता में जुटी भारतीय विचारधारा को खंडित करने हेतु विघटनकारी अभियान न चलाया जाता। समाज में विघटन को बढ़ाने वाले मंतव्य प्रसारित न किए जाते। बिना मनुस्मृति का अध्ययन किए आधे अधूरे ज्ञान के आधार पर मनुवाद पर प्रहार न किया जाता। समाज में जातीय वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए जातीय क्षत्रपों को छोटी छोटी बातों पर उलझने के लिए न उकसाया जाता। राजनीतिक दल अगड़ा- पिछड़ा, दलित अति दलित, पिछड़ा या अति पिछड़ा जैसे विमर्श लेकर सार्वजानिक मंचों पर मुखर न होते। जातीय सम्मेलनों में समाज के उत्थान की जगह केवल जातीय उत्थान की बात न की जाती। कुछ जातीय सम्मेलनों में समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति जहर उगलकर भोले भाले जातीय बंधुओं को विशेष जातियों के विरूद्ध भड़काकर अराजकता की स्थिति उत्पन्न करने का प्रयास न किया जाता। 



वस्तुस्थिति यह है कि जैसे जैसे समाज का बौद्धिक विकास हो रहा है, वह विकास जाति आधारित राजनीति करके अपना घर भरने वाले नेताओं को रास नहीं आ रहा है। यदि ऐसा न होता तो सभी जातियां अपनी मानसिक संकीर्णता से उबर कर सर्वे भवन्तु सुखिनः की भारतीय सोच को अपनाती। भारतीय दर्शन में भेदभावपूर्ण नीतियों का अनुपालन वर्जित हैं। सभी ग्रन्थ कर्म प्रधानता को मान्यता देते हैं। सर्व सत्य विद्याओं की पुस्तक वेद ,पुराण, उपनिषद, श्रीमद्भागवत गीता, रामचरित मानस का गहनता से अध्ययन करें, तो स्पष्ट होगा, कि जातीय संकीर्णता का पाठ इनमें लेशमात्र भी नहीं पढ़ाया जाता। ऐसे में जाति, पंथ, धर्म आधारित सोच से परे केवल भारतीय होने की अनुभूति जनमानस के हृदय में होनी अपेक्षित है। समय की मांग है कि विजय दशमी पर्व पर जब समूचा राष्ट्र बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन करके बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाता है, तब क्यों न प्रत्येक भारतीय संकीर्ण जातीय सोच का दहन करके सामाजिक समरसता हेतु समर्पित हो तथा भारत के गौरवशाली इतिहास से शिक्षा लेकर स्वयं के भारतीय होने पर गौरवान्वित हो। डॉ. सुधाकर आशावादी



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