Upgrade Jharkhand News. दलमा वन्यजीव अभयारण्य के संरक्षण को लेकर 'रन फॉर गजराज' दलमा मैराथन का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य था हाथियों के संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर लोगों में राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाना। यह पहल निस्संदेह वन विभाग और सरकार की एक सराहनीय कोशिश थी, लेकिन इस जागरूकता कार्यक्रम के पीछे की कटु सच्चाई कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। जिस मैदान से इस मैराथन की शुरुआत हुई, जहां दौड़ का समापन और पुरस्कार वितरण हुआ, जहां ईचागढ़ की विधायक सविता महतो व सरायकेला-खरसावां के उपायुक्त और स्वयं मौजूद थे। वही मैदान अब प्लास्टिक कचरे से पट चुका है। मैदान में जगह-जगह बोतलें, गिलास और पॉलिथिन बिखरी हुई हैं।
प्रश्न यह उठता है कि क्या यही है पर्यावरण संरक्षण का संदेश? क्या यह “रन फॉर गजराज” था या “रन फॉर प्लास्टिक”? स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इतना अधिक प्लास्टिक कचरा दलमा वनक्षेत्र की नदियों और नालों में बह गया, जिससे वहां के जलजीवों और वन्य प्राणियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। दलमा के आसपास के आदिवासी और मूलवासी समुदाय जिन नदियों के जल का उपयोग दैनिक कार्यों और खेती में करते हैं, अब वही पानी प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित हो चुका है।
वहीं दूसरी ओर, पूरे कार्यक्रम में जिन बैनर और पोस्टरों का प्रयोग किया गया, वे भी प्लास्टिक से बने थे। सवाल उठता है — जब पेपर या कपड़े के बैनर का उपयोग किया जा सकता था, तो पर्यावरण संरक्षण के नाम पर प्लास्टिक का सहारा क्यों लिया गया?क्या वन विभाग को प्लास्टिक के नुकसान की जानकारी नहीं थी? या फिर यह लापरवाही और दिखावटी जागरूकता का एक और उदाहरण है? जनता पूछ रहें है 'पर्यावरण को बचाने के नाम पर अगर हम उसी को प्रदूषित कर दें, तो यह कार्यक्रम जागरूकता है या विडंबना?'

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