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Jamshedpur लेडी मेहरबाई टाटा भारत में महिला सशक्तिकरण की अग्रदूतों में से एक थीं Lady Meherbai Tata was one of the pioneers of women's empowerment in India

 


Jamshedpur (Nagendra) लेडी मेहरबाई टाटा (1879–1931) भारत में महिला अधिकारों और सामाजिक सुधारों की अग्रदूतों में से एक थीं। बंबई में जन्मी लेडी मेहरबाई, एच. जे. भाभा की पुत्री थीं, जो मैसूर में इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन के पद पर कार्यरत रहे। उन्होंने ऐसे परिवार में परवरिश पाई जहाँ शिक्षा, स्वतंत्र सोच और उदार दृष्टिकोण को सर्वोच्च महत्व दिया जाता था।



सन 1898 में उनका विवाह जमशेदजी एन. टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा से हुआ । यह संबंध केवल वैवाहिक बंधन नहीं, बल्कि सेवा, बौद्धिकता और सामाजिक प्रगति जैसे समान मूल्यों पर आधारित एक प्रेरक साझेदारी थी। शालीनता, विद्वता और प्रभावशाली व्यक्तित्व की प्रतीक लेडी मेहरबाई टाटा केवल समाज की एक प्रसिद्ध हस्ती नहीं थीं, बल्कि आधुनिक भारतीय नारी की संभावनाओं का जीवंत उदाहरण थीं। एक उत्कृष्ट टेनिस खिलाड़ी के रूप में उन्होंने साठ से अधिक ट्रॉफियाँ जीतीं , जिनमें वेस्टर्न इंडिया टेनिस टूर्नामेंट का प्रतिष्ठित ट्रिपल क्राउन भी शामिल था। उन्होंने यह साबित किया कि महिलाएँ साड़ी पहनकर भी प्रतिस्पर्धी खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं। खेल और स्वास्थ्य के प्रति उनका समर्पण केवल व्यक्तिगत रुचि तक सीमित नहीं था। 



वे और सर दोराबजी टाटा युवाओं में खेल, फिटनेस और जीवन के संतुलन को बढ़ावा देने के लिए जिमखानों और विभिन्न युवा गतिविधियों के सक्रिय संरक्षक बने रहे। लेडी मेहरबाई टाटा की सबसे बड़ी विरासत उनके उस अदम्य संकल्प में निहित है, जिसके माध्यम से उन्होंने भारतीय महिलाओं के विकास और अधिकारों की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी विमेन्स काउंसिल की सह-संस्थापक के रूप में और आगे चलकर नेशनल काउंसिल ऑफ विमेन इन इंडिया की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। इन मंचों के जरिये उन्होंने बाल विवाह, पर्दा प्रथा, महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक असमानता और लैंगिक न्याय जैसे मुद्दों पर जनचेतना जगाई। लेडी मेहरबाई ने बाल विवाह उन्मूलन के लिए बने सरदा एक्ट का पूरे मनोयोग से समर्थन किया और देशभर में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ाने के लिए निरंतर कार्य किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वे भारत की महिलाओं की सशक्त आवाज़ बनकर उभरीं। 



अमेरिका के बैटल क्रीक कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर उन्होंने भारतीय महिलाओं की स्थिति पर गहन संवेदना, सटीक दृष्टिकोण और अटूट आत्मविश्वास के साथ विचार रखे। लेडी मेहरबाई टाटा की करुणा जितनी गहरी थी, उनका साहस उतना ही अदम्य था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने राहत कार्यों के लिए सक्रिय रूप से धन एकत्र किया और इंडियन रेड क्रॉस के साथ मिलकर मानवता की सेवा में अग्रणी भूमिका निभाई। उनके इन उत्कृष्ट योगदानों की सराहना में वर्ष 1919 में किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें कमांडर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (CBE) की उपाधि से सम्मानित किया। लेडी मेहरबाई टाटा के जीवन की एक अनमोल पहचान उनके और सर दोराबजी टाटा के बीच गहरे और अटूट संबंध थे। 1931 में उनका असमय ल्यूकेमिया से निधन हो गया, लेकिन उनके आदर्शों और कार्यों को सतत सम्मान देने के लिए सर दोराबजी ने लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की, जो ल्यूकेमिया और उससे जुड़े रोगों पर अनुसंधान का समर्थन करता है। 



उनकी विरासत आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है । यह विरासत साहस, करुणा और दूसरों को सशक्त बनाने की आजीवन प्रतिबद्धता में निहित है। महिलाओं के उत्थान, स्वास्थ्य सुधार और सामाजिक प्रगति के प्रति उनके योगदान ने, अनेक रूपों में, टाटा परिवार की राष्ट्र निर्माण और समाज सुधार की महान परंपरा का अभिन्न हिस्सा बनकर हमेशा के लिए उन्हें यादगार बना दिया।



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