Guwa (Sandeep Gupta) झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है, जहाँ के जल, जंगल और जमीन के वास्तविक मालिक आदिवासी संप्रदाय हैं। परंतु विडंबना यह है कि आज उन्हीं के हक को उनसे छीना जा रहा है। राज्य के कई जिले खनिज संपदा से भरपूर हैं, फिर भी यहाँ के मूल निवासी अपने अधिकारों से वंचित हैं। बड़े उद्योग जैसे सेल (SAIL) और टाटा कंपनी यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो कर रहे हैं, परंतु स्थानीय लोगों को उनका उचित रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। जहाँ टाटा कंपनी किसी हद तक स्थानीय युवाओं को रोजगार देने का प्रयास करती है, वहीं सेल में स्थानीयता का प्रतिशत लगभग शून्य है। इसी अन्याय के खिलाफ झारखंड मजदूर संघर्ष संघ किरीबुरु, मेघाहातूबरू और गुवा क्षेत्र में लगातार संघर्षरत है।
संघ के महामंत्री श्री राजेंद्र सिंधिया ने पहले भी राज्य सरकार और सेल प्रबंधन से मेडिकल प्रवेश की तर्ज पर 85 प्रतिशत रोजगार राज्य से और 15 प्रतिशत केंद्र से देने की मांग रखी थी। सेल प्रबंधन हर बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेता है, जबकि संविधान ने सभी नागरिकों को समान रूप से जीने का अधिकार दिया है। बाहरी लोगों को प्राथमिकता देकर स्थानीय अधिवासियों को हाशिए पर धकेलना न केवल अन्याय है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।
स्थानीय रोजगार और शोषण से मुक्ति के उद्देश्य से किरीबुरु-मेघाहातूबरू के सेवास्थंभ सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल, सुनील कुमार पासवान और अफताब आलम के नेतृत्व में दिल्ली स्थित आदिवासी अनुसूचित जाति जनजाति मंत्रालय पहुँचा। वहाँ उन्होंने आदिवासी आयोग की अध्यक्ष डॉ. आशा लकड़ा से मुलाकात कर विस्तृत जानकारी दी। सभी मुद्दों को सुनने के बाद डॉ. आशा लकड़ा ने राज्य सरकार और सेल प्रबंधन से वार्ता कर जल्द समाधान निकालने का आश्वासन दिया। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को अपना संपर्क नंबर साझा करते हुए कहा कि वे बीच-बीच में संपर्क बनाए रखें। इससे यह उम्मीद जगी है कि आदिवासी मंत्रालय अब स्थानीय रोजगार के सवाल पर गंभीरता से कदम उठाने जा रहा है।

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