चक्रधरपुर। पितृपक्ष के अवसर पर शनिवार को लोगों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ कर अपने पितरों को तिल तर्पण किया। समाज के लोगों ने अपने-अपने तरीके से अपने पितरों का तर्पण किया। इसी परंपरा के अनुसार चक्रधरपुर के विभिन्न नदी घाटों में तर्पण करने आये लोगों की भीड़ सुबह देखा गया। चक्रधरपुर के मुक्तिनाथ नदी घाट में पुजारी चन्दन चटर्जी विधि विधान के साथ लोगों को तिल तर्पण कराते नजर आये। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ महालय की सुबह लोग पितरों की तृष्णा मिटाते हुए लोग नजर आये. बता दें की महालया का दिन शुभता का भी प्रतिक होता है. और इसी दिन पितृपक्ष की समाप्ति होती है।
साल भर के अंतराल में जो आत्माएं भूखी, प्यासी भटकती रहती हैं उन्हें तर्पण कर उनकी तृष्णा को मिटाया जाता है। इस तर्पण को तिल तर्पण भी कहा जाता है, जिसे जौ के साथ पानी में दिया जाता है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक तर्पण करने से पूर्वजों के आत्मा को शांति तो मिलती ही है। साथ ही साथ इसका प्रतिकूल प्रभाव तर्पण करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार पर भी पड़ता है। फलस्वरूप तर्पण करने वाले के परिवार में सुख और शांति बनी रहती है। यह परंपरा हमारे संस्कृति की वह झलक है जहाँ हम अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं उनकी पूजा करते हैं, उनकी तृष्णा मिटाते हैं।
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