हाता। भारत मन्दिरों का देश है इसमें ओडिशा राज्य सबसे आगे है।80 प्रतिशत हिन्दू आबादी वाले देश में सबसे ज्यादा मन्दिर होना स्वाभाविक है। इस देश में विधर्मी लोग बहुत अच्छे अच्छे मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया है, लेकिन सनातन धर्म का यह देश मन्दिर विहीन कभी हुआ नहीं है।आज भी अच्छे अच्छे मन्दिर देश में बन रहा है। बहुत सारे लोग कहते हैं मन्दिर बनाके के क्या फायदा है उससे अच्छा हॉस्पिटल, खेल का मैदान और विद्यालय बनाओ।जीवन में सब कुछ जरूरी है।
कोई किसी का जगह नहीं ले सकता है।मन्दिर का अर्थ देव् देवियो का पूजा का स्थल।जैसे एक शराबी को देखने से शराब का याद आता है उसी प्रकार कोई भी मन्दिर देखने से भगवान को याद आता है।मन्दिर भगवान का निवास स्थल है, मन्दिर एक आस्था का केंद्र है।एक पवित्र जगह है जहाँ जाकर हम अपना मन और विचार को बदल सकते हैं, अच्छा कर सकते हैं।
माताजी आश्रम परिवार की ओर से बिगत 24 दिसंबर को एक धार्मिक टूर बनाया गया।कुल 50 भक्तजनों का एक दल भवानी शंकर वास से जिसका संचालक है संजीव साह जो आश्रम का भक्त भी है,सुनील कुमार दे,कमल कांति घोष और कृष्ण पद मंडल की देखरेख में यात्रा की गई। कुहासा के कारण 7.30 बजे माताजी आश्रम हाता से यात्रा प्रारंभ हुई। ठाकुर,माँ, स्वामीजी और माताजी का जय घोष करते हुए बास खुली।बीच रास्ते में जल योग और जलवियोग करते हुए अपराह्न 12 बजे बस घटगांव के तारिणी मन्दिर पहुँची। छुट्टी के दिन होने के कारण प्रचंड भीड़ देखने को मिली। लाइन का कतार,धुक्कम धुक्की में पूजा और दर्शन करना असम्भव लग रहा था, लेकिन इतने दूर से जब गए हैं तो दर्शन भी करना है और पूजा भी। यही सब करते करते करीब चार बज गया।
थोड़ा बहुत नास्ता पानी करके वहाँ से निकले। उसके बाद करीब 5 बजे बैतरणी पहुँचे। नदी के किनारे भव्य शिव मन्दिर और अनेक मन्दिर है जो दर्शनीय है। शिल्प और कला देखने लायक है, लेकिन यहाँ भीड़ भी नहीं और हुजुग भी नहीं। आराम से दर्शन और फोटोग्राफी भी हुआ। साथ साथ चाय पान भी हुआ। उसके बाद वहां से चल पड़े।अंतिम दर्शन खिचीनेस्वरी मा को करना था, लेकिन जाते जाते शाम हो गई। जाय कि नहीं जाय, दर्शन होगा कि नहीं इसी दुविधा में कुछ लोग थे।अं त में माँ की कृपा हुई। खिचिंग कि और बास मुड़ गई। करीब पौने आठ बज रहा था,आठ बजे मन्दिर बंद होनेवाला था।
जल्दी जल्दी खिचीनेस्वरी मा काली का दर्शन हो गया। सभी भक्तजनों का मन शांत हुआ।किन्तु परंतु खत्म हुआ। करीब रात 10.45 तक हम सभी तीर्थ भ्रमण कर अपने अपने घर का शोभा बढ़ाया। एकसाथ मिलकर भम्रण और तीर्थ यात्रा करने का मजा ही अलग है। तनावपूर्ण जीवन में बीच बीच में इसी प्रकार का भ्रमण होना चाहिए। इसमें शरीर और मन दोनों को खुराक मिलता है, आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ता है और आनंद की अनुभूति होती है।
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