चांडिल। नीमडीह प्रखंड अंतर्गत केतुंगा गांव में ग्रामवासियों द्वारा संगीतमय श्रीमद् भागवत सप्ताह प्रवचन ज्ञान यज्ञ हेतु शनिवार सुबह नीमडीह नदी से ज्ञान यज्ञ स्थल तक 251 युवती एवं महिलाओं द्वारा कलश यात्रा निकाली गई। इस दौरान श्री राधे कृष्ण नाम से वातावरण भक्तिमय हो गया। नदी में पंडित द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार से कलश में जल भरकर प्रवचन ज्ञान यज्ञ स्थल तक पहुंचने के बाद विधि पूर्वक कलश स्थापना किया गया। रविवार से प्रात: श्रीमद् भागवत पूजा अर्चना एवं बंदना, सियाराम कुटीर श्री बृंदाबन धाम निवासी सनातन दास महाराज द्वारा नौ बजे से 12 बजे तक श्रीमद् भागवत मूल पाठ, अपराह्न तीन से बजे एवं रात्रि आठ बजे से 10 बजे तक धार्मिक प्रवचन का अमृत वर्षा करेंगे।
इस दौरान पंडित जी ने कहा कि मध्ययुग में विकसित धर्म एवं दर्शन के परम्परागत स्वरूप एवं धारणाओं के प्रति आज के व्यक्ति की आस्था कम होती जा रही है। मध्ययुगीन धर्म एवं दर्शन के प्रमुख प्रतिमान थे स्वर्ग की कल्पना, सृष्टि एवं जीवों के कर्ता रूप में ईश्वर की कल्पना, वर्तमान जीवन की निरर्थकता का बोध, अपने देश एवं काल की माया और प्रपंचों से परिपूर्ण अवधारणा।
उस युग में व्यक्ति का ध्यान अपने श्रेष्ठ आचरण, श्रम एवं पुरुषार्थ द्वारा अपने वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान करने की ओर कम था, अपने आराध्य की स्तुति एवं जय गान करने में अधिक था। उन्होंने कहा कि धर्म के व्याख्याताओं ने संसार के प्रत्येक क्रियाकलाप को ईश्वर की इच्छा माना तथा मनुष्य को ईश्वर के हाथों की कठपुतली के रूप में स्वीकार किया। दार्शनिकों ने व्यक्ति के वर्तमान जीवन की विपन्नता का हेतु 'कर्म-सिद्धान्त' के सूत्र में प्रतिपादित किया। इसकी परिणति मध्ययुग में यह हुई कि वर्तमान की सारी मुसीबतों का कारण 'भाग्य' अथवा ईश्वर की मर्जी को मान लिया गया। समाज या देश की विपन्नता को उसकी नियति मान लिया गया। समाज स्वयं भी भाग्यवादी बनकर अपनी सुख-दुःखात्मक स्थितियों से सन्तोष करता रहा, लेकिन वर्तमान समय में सनातन धर्म को और जागृत करने की आवश्यकता है।
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