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हमारी सरकार व मंत्री की नियत व नीति दोनों ही पवित्र, भाजपा आदिवासियों-मूलवासियों को शुरु से ही पहचान देने में क्यों कर रहें आनाकानी : सुनिल सिरका, Both the intentions and policies of our government and ministers are sacred, why is BJP hesitating in giving recognition to the tribals and indigenous people from the beginning: Sunil Sirka.


चाईबासा। कहते हैं ना खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। यही बात भारतीय जनता पार्टी पर लागू होती है। ये परम ज्ञान की बातें करने वाले खुद का कभी एक ठिकाना नहीं रहा। जहां स्वार्थ नजर आया, उसके हो लिए, ताकि सत्ता और पद प्राप्त हो सके। पूर्व मंत्री जी ऐसे पार्टी के शरण में हैं जहां से निष्कासन हो चूका है, फिर भी सत्ता और पद का मोह इनके आत्म सम्मान से बड़ा है। ऐसी ही विचारधारा की भरमार भाजपा में है। पूर्व मंत्री बड़कुँवर गागराई द्वारा मंत्री दीपक बिरूवा पर लगाये आरोप का खंडन सुनिल सिरका ने किया। उन्होंने कहा कि आजसू-भाजपा के लोगों ने ही ओबीसी आरक्षण को घटाकर 14% कर दिया था। झारखंडी सरकार बनी तो उसे पुनः 27% करने के लिए विधानसभा से विधेयक पारित कराया। अब पिछले 10 वर्ष से केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा की सरकार इस विधेयक पर कुछ क्यों नहीं करती। सिर्फ बातें करने से नहीं होगा, लोगों को उन बातों का प्रतिफल भी मिलना चाहिए। अब क्यों इस दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे।





उन्होंने कहा कि फूट डालो राज करो की नीति पर भाजपा के लोग काम करते हैं। इन्होंने 20 वर्ष राज्य को सिर्फ घाव दिया। हमारी सरकार उस घाव को भरने का काम कर रही है। जब घाव भरने का दौर शुरू हुआ तो इनके पेट में दर्द होने लगा। अधिकार देने की बात करना, महज दिखावा है। इन्हें यहां के आदिवासियों मूलवासियों के मान सम्मान की चिंता नहीं। ये आदिवासियों मूलवासियों को झारखंडी पहचान नहीं देना चाहते। 20 साल तक राज किया लेकिन झारखंडी पहचान से संबंधित कार्य नहीं किया है। 1932 के भूमि रिकॉर्ड राज्य की अधिवास और रोजगार नीति को सत्यापित करने के मानदंड को तय करने का हमारी सरकार ने 1932 खतियान विधेयक पारित कराया। लेकिन इन लोगों ने इसमें अड़चन लगा दी, जबकि भाजपा आजसू 1932 खतियान लागू करने के नाम पर दशकों से यहां के लोगों को छला है।


उन्होंने कहा कि झारखंड विधानसभा ने सरना धर्म कोड पास कर केंद्र को भेजा है। उसे संसद से पारित कराने में आनाकानी क्यों ? झारखंड के आदिवासी इलाके की हो, मुंडारी और कुडुख भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भी भेजा गया है। इसकी स्वीकृति में देरी क्यों? आदिवासियों का वजूद बचाने के लिए इन मांगों को भाजपा शासित केंद्र सरकार क्यों दरकिनार कर रही है? क्यों आदिवासियों की मांग को लटका कर रख दिया। सिर्फ आदिवासियों के हित की बात करने से नहीं बल्कि उनके लिए पूरी तन्मयता से कार्य करने की जरूरत है।


उन्होंने कहा कि हमारी सरकार की हमेशा सोच और नीति रही है कि अधिक से अधिक स्थानीय युवाओं को नौकरी और रोजगार से जोड़ा जाए। इसके लिए हमारी सरकार ने निजी क्षेत्र में स्थानीय के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण कानून लेकर आए। यहां कार्यरत निजी उपक्रमों में 75 प्रतिशत स्थानीय को जगह मिले उस पर गठबंधन सरकार की आगे बढ़े हैं। उसी का प्रतिफल है हजारों युवाओं को ऑफर लेटर दिया गया है।



उन्होंने बताया कि यहां के आदिवासी-मूलवासी को नौकरी मिले इसका प्रयास लगातार किया जा रहा है। झारखण्ड के आदिवासी – मूलवासी के अनुसार नियोजन नीति बनाने का काम किया। लेकिन विपक्ष ने षड्यंत्र रच कर उस पर रोड़ा अटकाने का काम किया। मगर हमारी सरकार पुनः कानून लेकर आयेंगे। 20 वर्ष में पहली बार जेपीएससी नियमावली बनायी गई। 250 दिनों में युवाओं का रिजल्ट निकालने का काम किया,और भाजपा कहती है कि नियुक्ति में घोटाला हुआ, निकाल कर दिखाए कोई घोटाला। जो जेपीएससी करायी उसमें बीपीएल परिवार से युवाओं को नियुक्ति पत्र देने का काम किया। जबकि विपक्ष ने जो जेपीएससी करवाया उसकी सीबीआई जाँच आज भी चल रही है। इन्होंने कितने अपना बेटा-बेटी और चहेतों को ही जेपीएससी में नौकरी दिलवा दिया। मगर यह मामला इनके ही केंद्र सरकार के अंतर्गत सीबीआई जैसे सफेद हाथी के पास है इसलिए उसमें कुछ होगा, कहना मुश्किल है।



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