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मेडिकल और ओरल एविडेंस विरोधाभास हो, तो आई विटनेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता : HC, Eye witness cannot be trusted if medical and oral evidence contradict: HC

 


Ranchi.  झारखंड हाईकोर्ट ने एक क्रिमिनल अपील पर सुनवाई करते हुए कहा है कि जहां भी चिकित्सा साक्ष्य (मेडिकल एविडेंस) और मौखिक साक्ष्य (ओरल एविडेंस) के बीच विरोधाभास है, वहां प्रत्यक्ष साक्ष्य (आई विटनेस) पर विश्वास नहीं किया जा सकता. दरअसल सरायकेला-खरसांवा सिविल कोर्ट ने निराकार महतो को माधो सिंह मुंडा की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. निराकार महतो ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. 




हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस और जस्टिस नवनीत कुमार की बेंच में इस मामले पर सुनवाई हुई. निराकार महतो की ओर से अधिवक्ता सोनम कुमारी ने बहस की. अधिवक्ता सोनम की ओर से इस केस में की गयी मेहनत की सराहना करते हुए हाईकोर्ट ने उन्हें 11 हजार रुपये फीस के तौर पर देने का निर्देश भी दिया. इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि कानून में यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अभियोजन पक्ष के गवाह के साक्ष्य में मामूली विसंगतियों पर अनावश्यक जोर नहीं दिया जाता, लेकिन जहां प्रत्यक्ष साक्ष्य, चिकित्सा साक्ष्य को गंभीर रूप से चुनौती देता है, वहां अभियोजन पक्ष के मामले को असंगत माना जाना चाहिए. इसलिए जहां भी चिकित्सा साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य के बीच घोर विरोधाभास है, वहां प्रत्यक्ष साक्ष्य पर विश्वास नहीं किया जा सकता.


परशुराम महतो के बयान के आधार पर वर्ष 1991 में निराकार महतो के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि निराकार महतो ने अन्य लोगों के साथ मिलकर माधो सिंह मुंडा पर हमला किया. इस हमले के बाद माधो सिंह मुंडा की मृत्यु हो गयी.



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