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Bhopal. जल संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाती जल सहेलियां, Jal Saheli spreading awareness for water conservation,


 Upgrade Jharkhand News. कुमार कृष्णन-विभूति फीचर्स) 

वर्तमान में भारत गहरे जल संकट के दौर से गुजर रहा है। भूजल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, नदियाँ सूखने की कगार पर हैं और तालाबों पर अतिक्रमण हो रहा है। पिछले कई वर्षों से पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में निरंतर गिरावट आ रही है। जल संसाधनों के अंधाधुंध और अव्यवस्थित उपयोग के परिणामस्वरूप, जल संकट बढ़ता जा रहा है। यह संकट न केवल पर्यावरणीय संकट बन चुका है, बल्कि हमारे लिए भविष्य की चिंता का सबब है। इसे समझा है बुंदेलखंड की महिलाओं ने और अब वे जल सहेलियां बनकर जल संरक्षण के लिए तैयार हो चुकी हैं।



अनुमानों के मुताबिक 2021 में सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,486 क्यूबिक मीटर थी जो 2031 तक और गिरकर 1,367 क्यूबिक मीटर होने वाली है ये आंकड़ा डरावना है जो  पानी की उपलब्धता के मामले में वैश्विक औसत 5,500 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति से काफी कम है। यह गंभीर जल संकट की तरफ संकेत देता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत में पानी की मांग इसकी आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और जीवनशैली में बदलाव के कारण पानी की मांग विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ेगी। भारत में 70 फीसदी जल का उपयोग कृषि क्षेत्र में होता है, लेकिन हमारी जल उपयोग दक्षता अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में बहुत कम (लगभग 30-35प्रतिशत) है। यदि जल उपयोग दक्षता में तेजी से सुधार किया जाए और जल बचाया जाए, तो यह पानी घरेलू क्षेत्रों में उपलब्ध कराया जा सकेगा। 


 बुंदेलखंड में नदियों एवं जल स्त्रोतों की स्थिति - बुंदेलखंड, जो उत्तर और मध्य भारत के एक हिस्से के रूप में जाना जाता है,यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 7-7 जिलों से मिलकर बना है।  बुन्देलखण्ड पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल की उपलब्धता अत्यधिक कम है, और पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं। जो नदियाँ आज से दो दशक पहले 8 से 10 महीने प्रवाहमान रहती थी और लोगों की जीविकोपार्जन का साधन हुआ करती थी ,अब वही सूखी नदियाँ आज इस बात की गवाही दे रही  हैं कि मानव द्वारा सुनियोजित खनन से इन नदियों का प्राकृतिक प्रवाह और जीवन चक्र पूरी तरह से प्रभावित हुआ। बुन्देलखण्ड की दुर्दशा का सबसे प्रमुख कारण इस इलाके की जल संरचनाओं का जीर्णशीर्ण होना, छोटी नदियों का सूखना, तालाबों का अतिक्रमित होना एवं वन क्षेत्र का घटना है। जिससे जल संकट भी बढ़ा है। छोटी नदियाँ मृतप्राय हो चुकी हैं या होने के कगार पर हैं। गोपाल सिंह बताते है -"प्राकृतिक स्त्रोतों के अंधाधुंध दोहन से नदियाँ सूखने लगी हैं | जब छोटी नदियाँ मरती हैं तो बड़ी नदियों के अस्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है , उनका पारिस्थितिक प्रवाह भी कम होने लगता है जो आने वाले समय में गंभीर जल संकट की ओर आगाह कर रहा है |"



नदी किनारे बसे किसान, कुम्हार, मछुआरे, ढीमर जैसे लोग इन नदियों से अपनी आजीविका चलाते थे, लेकिन अब नदी के जल स्तर में कमी आने के कारण उनकी स्थिति भी बिगड़ गई है। इससे न केवल जल संकट बढ़ा है, बल्कि पलायन भी एक गंभीर समस्या बन गई है। इसके अलावा बुंदेलखंड क्षेत्र में चंदेल कालीन तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिनका निर्माण 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था। चंदेल राजाओं ने जल संरक्षण को प्राथमिकता दी थी और जल प्रबंधन के तहत कई हजारों तालाबों का निर्माण किया था। इन तालाबों का निर्माण विशेष रूप से जल संरक्षण के उद्देश्य से किया गया था। तालाबों के चारों ओर पहाड़, मिट्टी के टीले या प्राकृतिक चट्टानों का सहारा लिया गया था, जिससे पानी तीन दिशाओं से संरक्षित हो सके। लेकिन समय के साथ, जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और औद्योगिकीकरण हुआ, इन तालाबों की स्थिति बिगड़ गई। अब, पानी की प्रबंधन की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कई तालाबों में गाद और सिल्ट जमा हो गया है, जिससे जल संग्रहण की क्षमता घट गई है। इसके अतिरिक्त, तालाबों के आसपास अतिक्रमण होने से जल धारा अवरुद्ध हो गई है । आज के समय में बुंदेलखंड में 2000 से अधिक चंदेल कालीन तालाब हैं, लेकिन इनमें से केवल 500 तालाब ही उपयोगी हैं। इन तालाबों की संरचनाएँ कमजोर हो गई हैं, जिससे जल संरक्षण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। इसके साथ ही, तालाबों का क्षेत्र भी कम हो रहा है, क्योंकि वे अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं। 



ऐसे में गांवों में रहने वाली महिलाएं आगे आई हैं। उन्होंने परमार्थ समाज सेवी संस्थान की पहल पर एक समूह बनाया है, जिसका नाम है जल सहेली समूह।बुंदेलखंड के "जलपुरुष" के रूप में प्रसिद्ध संजय सिंह बताते हैं कि समूह के नाम के आधार पर समूह से जुड़ने वाली महिलाओं को जल सहेली कहते हैं, जो अपने गाँव के क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं। जल सहेलियां गाँव के लोगों को पानी से जुड़ी हर प्रकार की समस्या के समाधान बताती हैं | इसमें पानी का संचयन करना , जल संरक्षण ,कुओं को गहरा करना ,जल संरचनाओं का पुनर्द्धार करना ,छोटे बाँध बनाना ,हैण्ड पंप को सुधारना , सरकार के साथ समुदाय की भागीदारी करवाना , प्रशासनिक अधिकारियों से मिलना और ज्ञापन देना तक शामिल हैं|



जल सहेलियों के द्वारा किये जा रहे प्रयासों को प्रधानमंत्री जी ने अपनी मन की बात कार्यक्रम में भी सराहा है। बुंदेलखंड में इन जल सहेलियों ने 100 से अधिक गाँवों को पानीदार बनाने का काम किया है इसके साथ ही 100 से अधिक चंदेलकालीन तालाबों का सरकार के सहयोग से जीर्णोद्धार एवं 6 छोटी नदियों के पुनर्जीवन के प्रयास किये हैं । इन्ही प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए परमार्थ संस्था द्वारा 02 फरवरी 2025 से 19 फरवरी 2025 तक बुंदेलखंड के पांच जिलों निवाड़ी, झांसी, ललितपुर, टीकमगढ़, छतरपुर में ओरछा से लेकर जटाशंकर तक लगभग 300 किलोमीटर की पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह यात्रा ओरछा से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के बबीना विकासखण्ड, ललितपुर जनपद के तालबेहट विकासखण्ड से होते हुए टीकमगढ़ के जतारा ब्लॉक के मोहनगढ़,टीकमगढ़ एवं बडागांव पहुंचेगी । वहां से यह यात्रा छतरपुर जनपद के बड़ामलेहरा विकासखण्ड से होते हुए बिजावर तक जाएगी इस यात्रा का समापन जटाशंकर धाम, छतरपुर में होगा। यात्रा के दौरान जल संरक्षण, जलवर्धन और जल के पुनः उपयोग के उपायों पर जागरूकता फैलाने के साथ ही स्थानीय जल स्रोतों के चिन्हांकन और उनके पुनरुद्धार के लिए कार्य किए जाएंगे। इस यात्रा में जल सहेलियाँ और स्थानीय समुदाय गाँव-गाँव में यात्रा के मार्ग में स्थित जल चौपालों का आयोजन करेंगें, साथ ही श्रमदान जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे ।



संजय सिंह बताते हैं कि यात्रा का मुख्य उद्देश्य बुंदेलखंड में चंदेल कालीन तालाबों का जीर्णोद्धार और विलुप्त हो रही छोटी नदियों के पुनर्जीवन हेतु सरकार, शासन एवं समाज को संवेदित एवं जागरुक करना एवं बुंदेलखंडवासियों को जल संरक्षण के महत्व को समझाना और उन्हें पानी के स्रोतों की रक्षा के लिए प्रेरित करना है। यात्रा के दौरान जल संरक्षण के उपायों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए संवाद, जल चौपाल, और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा, ताकि लोग जल की कीमत समझें और इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करें। 


 चंदेल कालीन तालाबों का जीर्णोद्धार - बुंदेलखंड में चंदेल कालीन तालाबों का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन समय के साथ इन तालाबों की स्थिति खराब हो चुकी है। इन तालाबों का जीर्णोद्धार करना, जल संरक्षण की प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के लिए महत्वपूर्ण है। यात्रा के दौरान इन तालाबों के पुनरुद्धार के लिए तालाबों की विरासतों को बचाने हेतु लोगों को जागरूक किया जायेगा | बुंदेलखंड की ज्यादातर छोटी नदियाँ या तो सूख गयी है कुछ सूखने की कगार पर हैं। जल सहेलियाँ इन नदियों के पुनर्जीवन के लिए लगातार कार्य कर रही हैं। 



परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सचिव संजय सिंह ने बताया कि जल सहेलियों से प्रेरित होकर ही देश में महिलाएं जल संरक्षण के लिए आगे आई हैं। जल सहेलियों की शुरुआत एक दशक पहले हुई थी और अब इसका असर दिखने लगा है। आज देश के 7 जनपदों में 1100 से अधिक जल सहेलियां जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रयासरत हैं। जल सहेलियों के कार्यों से प्रेरित होकर देश भर में अब अन्य महिलाएं भी जल संरक्षण के लिए प्रयास कर रही हैं। 



संजय सिंह का सपना है कि बुंदेलखंड के समस्त गांवों में कम से कम एक जल सहेली  जरूर हो। संस्थान लम्बे समय से पानी पंचायत और जल सहेलियों के माध्यम से भी बुंदेलखण्ड में जल संरक्षण और संवर्धन की मुहिम चला रही है। तालबेहट, ललितपुर के गांव विजयपुरा की शारदा ने अपने गांव में सूखी बरुआ नदी को पानीदार करने की मुहिम शुरू की और खाली बोरियों में रेत भर कर चेकडैम बना डाला। शारदा कहती हैं कि घर में पुरुष ही निर्णय लेते थे। पर्दा भी था लेकिन सबके विरोध के बावजूद भी हम बाहर निकले और गांव की तीन दर्जन से ज्यादा महिलाओं को अपने साथ जोड़ कर चेकडैम बना डाला।



छतरपुर की बड़ामलेहरा ब्लॉक के चौधरीखेरा गांव की गंगा देवी ने अपने गांव में पानी लाने के लिए अंधविश्वास से लड़ते हुए सूखे तालाब को पानीदार किया। वह कहती हैं कि मान्यता थी कि जो भी तालाब में पानी लाने की कोशिश करेगा उसका वंश नष्ट हो जाएगा लेकिन हमने सोचा कि पानी न होने से बेहतर है कि मर ही जाए। हमने गांव की दो दर्जन से ज्यादा औरतों को तैयार किया और जर्जर तालाब की खुदाई की। बारिश के बाद अब तालाब लबालब भरा है जिससे पूरे गांव को पानी मिल रहा है। झांसी बबीना ब्लॉक के मानपुर गांव की रहने वाली गीता को भी सम्मान मिला है। जल सहेली गीता ने अपने गाँव के चंदेलकालीन तालाब के आउटलेट को ठीक करने का जिम्मा लिया और संस्था की मदद से आउटलेट ठीक किया ताकि पानी तालाब में रुकने लगे। अब इसी तालाब से उनके गांव में सिंचाई होती है। कुमार कृष्णन




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