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Jamshedpur. श्रीराम कथा में आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने भगवान राम के बाल लीला का प्रसंग सुनाया, कहा- संस्कारवान पीढ़ी खड़ी करनी हो तो बच्चों के बचपन बचाएं, उन्हें संस्कारवान बनाएं, In Shri Ram Katha, Acharya Rajendra Ji Maharaj narrated the story of Lord Ram's childhood and said - If you want to raise a cultured generation, then save the childhood of the children, make them cultured,


Jamshedpur (Nagendra) । सिदगोड़ा सूर्य मंदिर समिति द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के पंचम वर्षगांठ के अवसर पर सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। पूजन पश्चात श्री श्रीधाम वृंदावन से पधारे मर्मज्ञ कथा वाचक आचार्य राजेंद्र जी महाराज का श्रद्धाभाव से स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन भगवान राम के बाल लीला के कथा का रोचक प्रसंग सुनाया। कथा के दौरान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास मुख्यरूप से मौजूद रहे। व्यास राजेंद्र जी महाराज ने भगवान राम की सुंदर बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि बचपन से ही लक्ष्मण जी की राम जी के चरणों में प्रीति थी। और भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा की जाती है, उनमें वैसी ही प्रीति हो गई। वैसे तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं लेकिन सुख के समुद्र श्री रामचन्द्रजी सबसे अधिक हैं। माँ कौशल्या कभी गोदी में लेकर भगवान को प्यार करती है। कभी सुंदर पालने में लिटाकर ‘प्यारे ललना’ कहकर दुलार करती है, जो भगवान सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वो आज प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में खेल रहे हैं। 


सुमधुर संगीत के बीच आचार्य राजेंद्र महाराज ने बताया कि एक बार माता कौशल्या ने श्रीराम को स्नान और श्रृंगार करा कर झूला पर सुला दिया और स्वयं स्नान कर अपने कुलदेव की पूजा कर नैवेद्य भोग लगाकर पाक गृह गई। जब वह पुन: लौट कर पूजा स्थल पर आई तो उन्होंने देखा कि देवता को चढ़ाए गए नैवेद्य शिशुरूपी भगवान राम भोजन कर रहे हैं। जब उन्होंने झूला पर जाकर देखा तो वहां भी उन्होंने श्री राम को झूले पर सोते पाया। इस दृश्य को देखकर कौशल्या डर गई और कांपने लगी। माता की अवस्था देख श्री राम ने माता को अपना विराट रूप दिखाकर उनकी जिज्ञासा को शांत किया। भगवान का विराट रूप देखकर कौशल्या माता प्रफुल्लित हो उन के चरणों पर गिर पड़ी। बालरूप भगवान की भक्ति में देवता भी मगन थे। जिनका नाम सुनना ही शुभ है उनका साक्षात दर्शन का फल कौन प्राप्त करना नही चाहेगा? आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने कहा कि जिस भगवान की गोद में ब्रह्माण्ड खेलता है, वह भगवान बालरूप में माता कौशल्या की गोद में खेलते हैं। जिनकी गोंद में दुनियाँ हँसती रोती है वे माता कौशल्या की गोद में कभी रोते हैं तो कभी हंसते है। 



भगवान की बाललीला अदभुत और मनमोहक है। कथा में आगे वर्णन करते हुए राजेंद्र महाराज कहते है कि आज भारत का बचपन नष्ट हो रहा है। यदि बचा सके तो आज हम बच्चों के बचपन बचाएँ। बच्चे अपने परिवार की पाठशाला में ही सर्वप्रथम सीखतें हैं। हमारा पारिवारिक जीवन जैसा होगा, भावी पीढ़ी भी वैसी ही होगी। यदि देश में संस्कारवान पीढ़ी खड़ी करनी हो तो बच्चों के बचपन को संस्कारवान बनाया जाए। आगे, कथा में महाराजा दशरथ के चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार सम्पूर्ण हुआ। महर्षि वशिष्टि द्वारा चारों पुत्रों का नामकरण और उनकी महिमा का उल्लेख कथा का केन्द्र बिन्दु बना और इसी के साथ कथा व्यास आचार्य राजेंद्र महाराज ने कथा को विस्तार देते हुए प्रसंग को विश्वामित्र द्वारा भगवान राम के मांगे जाने की ओर वर्णित किया। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के दरबार में विश्वामित्र राक्षसों के वध के लिए राम को मांगते है। महाराजा दशरथ विश्वामित्र के आने का कारण पूछते हुए कहते है- केहि कारण आगमन तुम्हारा, विश्वामित्र ने महाराजा दशरथ से कहा - अनुज समेत देहु रघुनाथा, निशिचर बधै मैं हो हुं सनाथा। महाराजा दशरथ ने तो यह माना था कि विश्वामित्र धन सम्पदा मांगने आये हैं परंतु उन्हें कहां पता था की एक ऋषि राष्ट्र की रक्षा के लिए उनके प्राणों के प्रिय राजकुमारों को मांगने आये हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में संत धरती पर धर्म की रक्षा के लिए आते हैं, राष्ट्र की रक्षा के लिए आते हैं। संत परमात्मा की करूणा के अवतार हैं। संत चलते-फिरते साक्षात तीर्थ हैं। गुरु वशिष्ट के समझाने पर वे राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजते है। इस बहाने विश्वामित्र द्वारा अपनी तपस्या में प्राप्त सभी दिव्यास्त्रों को रामलक्ष्मण को सुपुर्द करते है। ताड़का का बध, मारिच से यज्ञ की रक्षा और अहिल्या का उद्धार पर कथा आगे की ओर बढ़ती है।



कथा के अंतिम सत्र में मंच संचालन सूर्य मंदिर समिति के सह कोषाध्यक्ष अमरजीत सिंह राजा ने किया। कल श्रीराम कथा के पंचम दिवस में प्रभु श्रीराम विवाह के प्रसंग का वर्णन किया जाएगा। कथा दोपहर 3:30 बजे से प्रारंभ होती है। कथा में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सह सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास, संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह, अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, महासचिव अखिलेश चौधरी, शंभु सिंह, पवन अग्रवाल सपत्नीक, मुरारी लाल सपत्नीक, सतीश पूरी, टुनटुन सिंह, मुन्ना अग्रवाल, सुशांत पांडा, अमरजीत सिंह राजा, शैलेश गुप्ता, शशिकांत सिंह, कंचन दत्ता, प्रेम झा, प्रमोद मिश्रा, राकेश सिंह, अमित अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल गोल्डी, नवीन तिवारी, साकेत कुमार समेत अन्य मौजूद रहे।



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