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Bhopal. बाल कहानी - जीतू की पिचकारी , Children's story - Jeetu's water gun


Upgrade Jharkhand News.  सभी ओर चहल -पहल है, बड़े लोगों से छोटे बच्चों तक में उत्साह और उमंग है। छोटे बच्चे छोटी पिचकारी में रंग भरकर एक-दूसरे पर डालकर खुश हो रहे हैं।  होली के गीत गाकर  एक दूसरे का दिल बहला रहे हैं। पर इन सबसे अलग थलग जीतू अपनी झोपड़ी के बाहर उदास बैठा है। उसके पास पिचकारी और रंग नहीं है। बच्चों को खुश होते देख उसका मन कसमसा रहा है। मन में वह सोच रहा है कि उसके पास थोड़े पैसे भी होते तो वह छोटी पिचकारी और रंग खरीद लाता। जीतू के पिता इस दुनिया में नहीं हैं। माँ रोज मेहनत मजदूरी करके घर का खर्च चलाती है। जीतू की एक बड़ी बहन भी थी जो पिछले बरस बीमारी से मर गई। माँ ने बहन के इलाज के  लिए बहुत से लोगों से रूपये मांगे पर सभी ने कोई न कोई बहाने से टाल दिया और बिना रूपयों के इलाज नहीं होने से उसकी बहन भगवान के पास चली गई। अब तो माँ का एक मात्र सहारा वह ही है।



पिछले बरस होली पर उसने रंग और पिचकारी की व्यवस्था कर ली थी। होली के एक दिन पहले वह बाजार पहुँचा था। बाजार में रंगों और पिचकारियों की जगह-जगह दुकानें लगी थी। बच्चे और बड़े रूपये देकर अपनी मनपंसद पिचकारी और रंग ले जा रहे थे। उसने एक जगह सड़क पर लगी दुकान पर बहुत भीड़ देखकर पिचकारी देखने का नाटक किया और मौका देखकर एक पिचकारी चोरी करके जेब में रखकर धीरे से निकल गया। चोरी करते हुए उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। अब रंग की दुकान पर वह पहुँचा। वहां भी बहुत भीड़ थी। रंग देखने का नाटक करके उसने दो पुडिय़ा चोरी कर ली थी।



झोंपड़ी में आकर उसने खुश होकर माँ को सारी बात बतलाई तो माँ ने उसे दो तमाचे गाल पर मारे और बोली मेरी तो तकदीर ही खराब है। पहले तेरे बाप ने सताया फिर तेरी बहन बीमारी में चल बसी और तू बचा है जो अभी से चोरी करके  मेरा नाम बदनाम कर रहा है। तुझे चोरी करना है तो मेरे साथ नहीं रहकर चोरी करके अपना पेट पाल ले। और वे रोने लगीं। जीतू ने माँ के आँसू पोंछकर माफी मांगी और बोला- माँ आइंदा मैं चोरी नहीं करूंगा। तेरी हर बात मानूंगा। माँ ने उसका मुँह चूम लिया। पिछली होली पर उसने पिचकारी से खेलकर उसे संभालकर रख लिया था। पर जाने कैसे बदमाश चूहों को भनक लग गई। वे उसकी पिचकारी कुतर गये। इस बरस भी उसने माँ से पिचकारी और रंग लाने को कहा था। पर होली आने तक उसकी माँ रंग और पिचकारी नहीं ला पाई। जीतू की आँखें भर आई। मन में वह बोला भगवान तूने मुझे किसी पैसे वाले आदमी के यहां जन्म क्यों नहीं दिया। मैं पैसे वाले के  यहाँ पैदा होता तो आज रंग और पिचकारी के लिए तरसना नहीं पड़ता।



थोड़ी देर बाद उसके साथ खेलने वाले पाँच-छह लड़के आये। उसे झोपड़ी के बाहर उदास बैठे देख एक लड़का बोला जीतू! इस दफा कहीं दांव नहीं लगा है... दूसरा लड़का हंसते हुए बोला अरे यह क्या दाँव लगायेगा। दाँव तो हमने लगाया है फिर वह लड़का जीतू को पिचकारी और रंग की पुडिया देते हुए बोला जीतू! कल हम तीन-चार लड़के बाजार में गये थे। सभी ने मिलकर अलग-अलग दुकानों से पाँच-छह पिचकारी और रंगों की पुडिय़ा चोरी कर ली। एक पिचकारी तेरे लिये भी ले आये हैं।



यह सुन जीतू बोला मैं चोरी की हुई पिचकारी और रंग नहीं लूंगा। अगर माँ को मालूम हो गया तो वे मुझे अपने साथ नहीं रखेगी। यह सुनकर एक  लड़का हंसते  हुए बोला दोस्तों चलो। यह सत्यवादी माँ का बेटा है। इसकी हमारे साथ नहीं पटेगी और सभी लड़के हंसते हुए वहाँ से चले गये। माँ ने अंदर से जीतू और उसके दोस्तों की बातें सुन ली थीं। वे उठकर बाहर आई। जीतू को अंदर ले गई। एक छोटी पिचकारी और रंग की पुडिय़ा देकर उदास सी बोली बेटे! मैं तेरे लिए इतना ही कर सकी हूँ।



यह सुन जीतू बोला माँ मेरे लिए यह बहुत है। पर इतनी देर तूने मुझे रंग और पिचकारी क्यों नहीं दी। माँ बोली बेटे! मैं देख रही थी कि मेरे बेटे ने मेरी बात मानी है या नहीं मानी है। मैं रंग और पिचकारी तो तीन दिन पहले ही खरीद लाई थी। पर तुम्हारी परीक्षा लेना थी। तुम परीक्षा में खरे उतरे हो। जीतू हंसते हुए माँ के गले लग गया। फिर रंग और पिचकारी लेकर दौड़ता हुआ चला गया। माँ भी मुस्कुरा दी। नयन कुमार राठी



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