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Bhopal. कहानी- लक्ष्मी , Story- Lakshmi


Upgrade Jharkhand News.  'आज तेरे लिए एक और रिश्ता आया है, सरला बेटे की तरफ फोटो बढ़ाते हुए बोली' , लड़की  सुंदर और पढ़ी-लिखी है। 'मां तू रोज किसी न किसी लड़की की फोटो मेरे सामने रख देती है। मुझे इनमें कोई दिलचस्पी नहीं है।'  'तो तू शादी नहीं करेगा?' बेटे की बात सुनकर सरला आश्चर्य से बोली थी। 'तू यही समझ ले।'  'मैं कब से इंतजार कर रही हूं कि मेरे घर बहू आयेगी। और तू है कि शादी से ही इंकार कर रहा है।' 'क्या करुं फिर तू ही बता?' 'हर मां अपने बेटे को दूल्हे के रूप में देखना चाहती है।'  'मां दूल्हा बनना तो मैं भी चाहता हूं। लेकिन मां मैं जानता हूं मैं जिसे चाहता हूं उससे तू मेरी शादी करेगी नहीं। और तू जिसे चाहेगी, उससे मैं शादी करुंगा नहीं।'  अब तू ही बता मेरी शादी होगी कैसे?


'अगर तूने कोई लड़की पसंद कर रखी है तो मुझे बताता क्यों नहीं?' सरला बोली, मुझे बता तू किसे चाहता है।  रहने दे मां। तुझे बताने से कोई फायदा नहीं है। 'ऐसा तू क्यों कह रहा है?' 'क्या मैं अपनी मां को जानता नहीं?'क्यों? 'मां तेरे संस्कार, तेरा धर्म तेरे आचार विचार आढ़े आ जायेंगे।' 'अपनी मां के बारे में ऐसा क्यों कह रहा है?' 'क्योंकि मैं अपनी मां को जानता हूं।' 'बेटा ऐसा मत कह। अपनी मां को बता तो सही कौन है' वह लड़की जिसे तू चाहता है? 'रहने दे मां। वह तेरे धर्म की नहीं है। तू उससे मेरी शादी के लिए हर्गिज तैयार नहीं होगी। समाज-परिवार आचार विचार सब आगे आ जायेंगे।''बेटा मैं मां हूं। मां बेटे की खुशी के लिए कुछ भी कर सकती है। तू मुझे बता कौन है वह लड़की जिसे तू चाहता है।''सारा।'

'सारा? बेटे की बात सुनकर सरला बोली,' रचना की सहेली सारा तो नहीं।

'हां मां। रचना की सहेली सारा।'  

'मुस्लिम है।'

'हां'

'तू उससे शादी करना चाहता है।'  

'मैं उससे प्यार करता हूं और उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं।'

सरला ने बेटे की बात सुनकर कोई  प्रतिक्रिया नहीं दी थी। वह सोचती रही कई दिनों तक परिवार वाले क्या कहेंगे। समाज वाले क्या कहेंगे? जात बिरादरी वाले क्या कहेंगे? मोहल्ले के और परिचित लोग क्या कहेंगे?

एक तरफ परिवार-खानदान-समाज के तानों की चिंता थी। दूसरी तरफ बेटे की खुशी।

समाज-परिवार-खानदान-परिचित कोई उसका साथ नहीं देगा। साथ देगा उसका बेटा।

और काफी सोच विचार करने के बाद उसने सबकी चिंता छोड़कर बेटे की खुशी में अपनी खुशी समझी थी।

'रचना तेरी सहेली सारा कहां रहती है।' सरला ने अपनी बेटी से पूछा था।

'क्यूं मां?' रचना ने मां से पूछा था।

'वैसे ही पूछ रही थी' सरला बोली, तू कौनसी उसके घर गयी होगी जो तुम्हें पता होगा।

'नहीं मां मैं गयी हूं और रचना ने मां को सारा के घर का पता बता दिया था।' कुछ दिन सरला अकेली सारा के घर जा पहुंची थी।

'मैं सरला रचना की मां।'

रचना कई बार सारा के साथ आ चुकी थी। इसलिए रचना का नाम लेते ही शबाना पहचान गयी थी।

'आओ' शबाना सरला को घर के अंदर ले गयी थी।

'बैठो सरला के बैठने के बाद शबाना बोली' कैसे आना हुआ?  

'मैं तुमसे कुछ मांगने के लिए आयी हूं?'

'मुझसे?'  शबाना सरला की बात सुनकर बोली बहन मैं तो गरीब हूं मेरे पास क्या रखा है जो मैं तुम्हें दे सकूं?

'तुम्हारे पास है और तुम दे सकती हो। तभी तो मैं तुम्हारे पास आयी हूं।'

'बताओ ऐसा क्या है मेरे पास जिसे तुम मांगने के लिए आयी हो?'

'सारा।'

'सारा'? सरला की बात सुनकर शबाना बोली बहन मैं तुम्हारी बात समझी नहीं।

'मैं तुम्हारी बेटी को तुमसे मांगने आयी हूं।'

'बहन तुम कहना क्या चाहती हो? साफ-साफ कहो।'

'मैं सारा को अपनी बहू बनाना चाहती हूं।'

'यह कैसे हो सकता है? हमारे मजहब अलग-अलग हैं। में अपनी बेटी की शादी किसी मुस्लिम लड़के से  ही करुंगी। किसी विधर्मी से नहीं।'

'चाहती तो मैं भी यही थी। लेकिन मेरा बेटा तुम्हारी बेटी से प्यार करता है और उसे ही अपनी बीवी बनाना चाहता है।'

'ऐसा हर्गिज नहीं हो सकता।' शबाना ने अपनी बेटी का निकाह देवेन से करने से मना कर दिया था।

सरला ने शबाना को हर तरह से समझाने का प्रयास किया था। पर व्यर्थ।

सरला वापस लौट आयी और उसने बेटे को सब कुछ बता दिया था।

सारा एक कम्पनी मेें काम करती थी। वह कम्पनी की तरफ से कांफ्रेंस में भाग लेने के लिए दो दिन के लिए मुम्बई गयी थी।

शबाना भी चाहती थी उसकी बेटी का निकाह हो जाये। कई रिश्तेदारों ने सारा के लिए लड़के बताये थे। पर सारा तैयार नहीं हुई थी। आज फिर उसके पास एक लड़के का फोटो आया था। सारा जब मुम्बई से लौटी तो शबाना उससे बोली 'बेटी तेरे लिए फिर एक रिश्ता आया है।'  

सारा कुछ नहीं बोली तो शबाना ने फिर कहा था, 'बेटी अब निकाह कर ले।'

'अम्मी तू कह तो रही है निकाह कर लूं' सारा बोली 'लेकिन तू चाहेगी उससे मैं  निकाह नहीं करुंगी और जिसे मैं चाहती हूं, उससे तू मेरा निकाह करेगी नहीं।' 

'मुझ पर तोहमत लगा रही है।'

'तोहमत नहीं लगा रही। सही बात कह रही हूं।'सारा बोली।

'मेरा हाथ मांगने तो घर पर ही आयी थी। तूने ही मना दिया था।'

'कौन?'फिर याद करते हुए शबाना बोली, 'तू रचना के भाई देवेन की बात तो नहीं कर रही?'    

'उसी की बात कर रही हूं।'

'देवेन हिंदू है।'

'तो क्या हुआ?'

'तू मुसलमान होकर एक हिंदू से शादी करेगी?'

'अम्मी शादी औरत और आदमी की होती है। हिंदू और मुसलमान की नहीं। देवेन आदमी है और मैं एक औरत।'

'आजकल लड़कियों को हो क्या गया है। प्यार के चक्कर में धर्म को भूल जाती है।'

'मैं अपने मजहब को नहीं भूली हूं। मेरा जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ है और मैं मुस्लिम ही रहूंगी।'

'फिर किसी मुस्लिम लड़के से शादी कर ले। हमारे मजहब में तेरे लायक लड़कों की कोई कमी नहीं है।'

'मां, तेरे अब्बा ने तेरी शादी अपने ही मजहब के लड़के से की थी।'

'हां। मेरे अब्बा ने मेरा निकाह अपने ही मजहब के लड़के से किया था।'

'तेरे मजहब के शौहर ने तुझे तलाक देकर घर से निकाल दिया क्योंकि वह बेटा चाहता था। और तूने बेटी पैदा कर दी।'

'बेटी जरूरी तो नहीं, जो मेरे साथ हुआ वो तेरे साथ भी हो।' 

'अपने मजहब के मर्द से शादी करने पर मुस्लिम औरत के सिर पर हमेशा तलाक, हलाला का खतरा बना रहता है। सारा बोली।

'हिंदू मर्द से शादी करुंगी तो भले ही वह मारे पीटे लेकिन आजीवन अपनी बनाकर रखेगा। न तलाक, हलाला का डर न सौतन का खौफ।'  

'बेटी तेरे को अपने मजहब में चाहे जितनी बुराई नजर आये। अपने मजहब के बारे में चाहे जो कह ले। मैं तेरा निकाह एक काफिर से नहीं करुंगी।'

'अगर अम्मी तेरी यही जिद है तो तू भी सुन ले मैं निकाह करुंगी तो देवेन से ही करुंगी वरना कुंवारी रहूंगी।'

शबाना का ख्याल था, उसकी बेटी जिद्दी जरूर है पर उसके समझाने पर  मान जायेगी और अपने ही मजहब के किसी लड़के से निकाह कर लेगी। लेकिन समझाने पर भी सारा नहीं मानी तब शबाना बेटी से बोली,'आखिर तू चाहती क्या है?'

'अम्मी तुझे मालूम है मैं क्या चाहती हूं फिर भी तू  पूछ रही है।' 

'बेटी तूने एक काफिर से निकाह कर लिया तो समाज-बिरादरी वाले क्या कहेंगे?'

'अम्मी तुझे समाज बिरादरी की चिंता है या बेटी की?'

'बेटी बिना समाज बिरादरी के नहीं रह सकते। समाज-बिरादरी के अनुसार ही चलना पड़ता है।'

'अम्मी तू मेरे निकाह की चिंता मत कर।'

'बेटी हर मां अपनी बेटी का घर बसाना चाहती है।'

'क्या तू यह नहीं चाहती कि तेरी बेटी का घर बसा ही रहे।'

'क्यों नहीं चाहती?'

'क्या तू इस बात की गांरटी दे सकती है कि मुस्लिम लड़के से निकाह कर लूंगी तो वह आजीवन मेरा ही बनकर रहेगा?' सारा बोली, न वह मुझे तलाक देगा न ही सौतन लायेगा।

'बेटी उम्मीद ही कर सकती हूं कि तेरे साथ ऐसा न हो।'  

'अपने मजहब के लड़के से उम्मीद कर सकती है, लेकिन देवेन पर विश्वास नहीं कर सकती है।'

'तू देवेन को बहुत चाहती है अपनी  अम्मी से भी ज्यादा।'

'अम्मी मैं तुझे भी चाहती हूं। मैं देवेन को अपना बनाना चाहती हूं लेकिन तेरी मर्जी से।' सारा बोली तेरी रजामंदी की चिंता न होती तो उससे कोर्ट मैरिज कर लेती।

बेटी की बात ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था। बेटी को उसका ख्याल न होता तो वह चुपचाप देवेन से कोर्ट मैरिज कर सकती थी।

 शबाना कई दिन तक सोचती रही और फिर एक दिन सरला के घर जा पहुंची थी।

'बहन उस दिन तुमने बहुत समझाया था। पर मैं ही मजहब की जिद ले बैठी।'  

'शबाना इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। हर मां बाप अपने ही धर्म की बहू लाना चाहते हैं। मैं भी यही चाहती थी पर मेरा बेटा तुम्हारी बेटी से प्यार करता है सरला बोली।' हमे यह भी ख्याल रखना चाहिए कि शादी के बाद हमारे बच्चे खुश रहे।

'मैं भी यही चाहती हूं, शबाना बोली, शादी कैसे होगी?'

'दोनों मजहब के रीति रिवाज से' सरला बोली पहले तुम निकाह कर दो फिर हम अपने रीति रिवाज से शादी कर देंगे।

जब  शबाना के रिश्तेदारों और समाज बिरादरी वालों को पता चला कि शबाना अपनी बेटी का निकाह एक हिन्दू लड़के से कर रही है  तो रूढि़वादी और कट्टर सोच के लोगों ने इसका विरोध किया ।

शबाना ने मौलवी से निकाह की बात की तो वह बोला, 'लड़के को मुस्लिम धर्म अपना होगा। मुस्लिम लड़की का निकाह एक काफिर से नहीं हो सकता।'

शबाना अकेली औरत थी और निकाह का विरोध करने वाले ज्यादा।

लेकिन समाज में प्रगतिशील सोच के लोगों की भी कमी नहीं है। उनके सहयोग से शबाना ने अपनी बेटी का निकाह देवेन से कर दिया सरला ने अपने रीति रिवाज से दोनों की शादी कर दी।

देवेन और सारा दूल्हा-दुल्हन बन घर पहुंचे थे।

'रुको'  सरला ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया था। रचना दौड़कर पूजा की थाली ले आयी थी। शोर सुनकर मोहल्ले की औरतें आ गयीं थी।

रचना ने दूल्हा-दुल्हन की आरती उतारी और फिर बोली थी, 'भैया थाली में डालो दक्षिणा।'

देवेन ने पांच सौ का नोट निकाला तो वह बोली, 'भैया अपनी हैसियत का ख्याल रखो। पांच हजार से कम नहीं लूंगी।'  और कुछ देर की नोक-झोंक के बाद देवेन को पांच हजार रुपये देने पड़े थे।

 मोहल्ले की औरतें आपस में खुसर-पुसर कर रही थीं। सरला रूढि़वादी औरत थी। छुआ छूत को बहुत मानती थी। अगर गलती से कोई अछूत घर में आ जाये तो पूरे घर को धोती थी। ऐसी औरत की बहू एक मुस्लिम? औरतें आपस में कह रही थीं  कि अब सरला क्या करेगी।

'बहू दोनों पैर थाली में रखकर अंदर आना है।' सरला की बात सुनकर सारा ने देवेन की तरफ देखा था। देवेन बोला, मां तुम जानती हो सारा मुस्लिम है। उनके यहां यह सब नहीं होता।

'बेटा बहू का कोई जाति धर्म नहीं होता। बहू घर की लक्ष्मी होती है, सरला बोली।' हमारे यहां बहू का स्वागत करने की यही परम्परा है।

सारा ने एक नजर पति की तरफ देखा और फिर थाली में पैर रखकर घर में प्रवेश कर गयी थी। किशन लाल शर्मा



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