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Jamshedpur. देव वह नहीं जो केवल पूज्य हो, बल्कि वह है जो अपने आचरण से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है, A god is not one who is merely worshiped, but one who becomes a source of inspiration for the society through his conduct


Jamshedpur (Nagendra) ।  पूरे कोल्हन से काफी संख्या में आनंद मार्गी विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में भाग लेने शिमला गए हुए हैं। जो लोग इस सम्मेलन में शारीरिक रूप से भाग नहीं ले पा रहे हैं ,वह वेब टेलीकास्ट के माध्यम से इस सम्मेलन का लाभ उठा पा रहे हैं।आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा चौड़ा मैदान, पीटर हॉफ प्रांगण में आयोजित दो दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन (26-27 अप्रैल) के प्रथम दिन श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने प्रवचन का शुभारंभ किया।प्रवचन के प्रारंभ में उन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों द्वारा हुई निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए शोकाकुल परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन को "देव संस्कृति" विषय पर उन्होंने कहा कि देव संस्कृति दिव्यता का आचरणमूलक दर्शन विषय पर हजारों साधकों को संबोधित करते हुए श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख जी ने कहा कि "भारतवर्ष, विशेषकर हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा, मात्र रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक गहन जीवन-दृष्टि है — जिसका मूल तत्व है देवत्व। 


मनुष्य केवल जन्म से नहीं, अपितु आचरण से देव बनता है।"देव : श्रेष्ठ आचरण का प्रतीक संस्कृत वचन "श्रेयांसि बहुविघ्नानि" का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ कार्यों में अनेक बाधाएँ आती हैं, परंतु सत्य, करुणा, सेवा और संयम के पथ पर अडिग रहने वाला व्यक्ति ही वास्तव में 'देव' कहलाता है। देव वह नहीं जो केवल पूज्य हो, बल्कि वह है जो अपने आचरण से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है।देव संस्कृति की जड़ें : शिव और पार्वती का आदर्श जीवन है। भारतीय दर्शन में भगवान सदाशिव और माता पार्वती को आदर्श जीवन के प्रतीक के रूप में स्वीकारा गया है। उनकी जीवन शैली प्रेम, तप, त्याग और लोकमंगल की अद्भुत समन्वययुक्त थी, जो आज भी देव संस्कृति के मूल स्तंभ हैं।


यह जीवन दृष्टि मनुष्य को व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर पूर्णता की ओर ले जाती है।शास्त्रों की त्रयी : निगम, आगम और तंत्रआचार्य जी ने विस्तार से बताया कि —माता पार्वती द्वारा पूछे गए प्रश्न 'निगम शास्त्र' हैं — जिज्ञासा और शिष्यत्व का प्रतीक। भगवान शिव द्वारा दिए गए उत्तर 'आगम शास्त्र' हैं — ज्ञान और कृपा का जीवंत प्रवाह। निगम और आगम के समन्वय से 'तंत्र शास्त्र' की उत्पत्ति हुई — जो साधना, संतुलन और परम साक्षात्कार का दिव्य पथ प्रदर्शित करता है।देव संस्कृति : साधना का जीवंत मार्ग । आचार्य जी ने कहा —"देव संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि साधना है। मंदिरों में पूजा करना पर्याप्त नहीं है; आवश्यक है कि हम अपने अंतःकरण को मंदिर बनाएं। देव संस्कृति वह जीवनशैली है जहाँ हर कर्म सेवा है, हर विचार करुणा है, और हर लक्ष्य लोककल्याण है।"आज जब मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में भटक रही है, तब देव संस्कृति का पुनरुद्धार समय की मांग बन गया है। आइए, हम अपने जीवन में आचरणमूलक दिव्यता लाकर इस धरती को पुनः देवभूमि बनाएं — प्रेम, सेवा और शाश्वत आनंद से आलोकित एक सुंदर संसार।



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