Upgrade Jharkhand News. आतंकवाद से छद्म युद्ध का दोहरा खेल खेलता पाकिस्तान आज भारत के कोप का शिकार है। पाकिस्तान पर अब तक 'कड़ा' रुख अपनाने और मुंबई हमले तक की भर्त्सना से संतोष करता भारत अब घुसकर मार रहा है। पाकिस्तान जो खुद आतंकवाद का पोषक रहा है, आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर अमेरिका का "सबसे भरोसेमंद सहयोगी" बना हुआ दोहरा बनावटी मुखौटा जी रहा था। भले ही दाऊद, लादेन , हाफिज सईद , पाकिस्तान में ठिकाना बना कर रह रहें हों पर अमेरिकी विदेश विभाग की पुरानी रिपोर्ट में पाकिस्तान की तारीफ़ की जाती थी । वो जमाना था जब एक ओर पाकिस्तान की सेना आतंकी बनाती थी, तो दूसरी ओर आतंक के विरोध का नाटक कर अल-क़ायदा के आतंकियों को गिरफ़्तार करती थी, तालिबान के प्रवक्ता को अफ़ग़ानिस्तान को सौंपा था , और "जिहाद के स्कूलों" (मदरसों) को नियंत्रित करने का झूठा वादा किया जाता था । यही वह दौर था जब लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और हक्कानी नेटवर्क जैसे संगठन पाकिस्तान की धरती पर फल-फूल रहे थे। 2008 आते-आते यही संगठन मुंबई के ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे, और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर खून की होली खेल रहे थे। विरोधाभास की पराकाष्ठा ये कि जिस देश ने "आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई" का ढिंढोरा पीटा, उसी की छत्रछाया में 26/11 जैसा नृशंस हमला हुआ।
"कार्रवाई" का नाटक और आतंक की नर्सरी पाकिस्तान ने आतंकवादियों के खिलाफ जो "कड़ी कार्रवाई" की, उसका असली मकसद अंतरराष्ट्रीय दबाव को संतुष्ट करना था। अमेरिका को दिखाने के लिए कुछ आतंकियों को गिरफ़्तार किया गया, लेकिन उसी समय आईएसआई और पाकिस्तानी सेना कश्मीर और अफ़ग़ानिस्तान में आतंकी समूहों को प्रशिक्षण, हथियार, और फंडिंग दे रही थी । यह वही दौर था जब लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को मुंबई हमले के लिए समुद्री युद्ध, नेविगेशन, और एके-47 के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जा रही थी । 2005 की हमारी कार्रवाई एक "सर्जिकल स्ट्राइक" नहीं, बल्कि एक सर्जिकल मास्क था जिसके पीछे आतंक की फैक्ट्री चलती रही। 26 नवंबर 2008 को जब 10 आतंकियों ने मुंबई को अपनी गोलियों और बमों से लहूलुहान किया, तो पाकिस्तान ने शुरू में सभी आरोपों को "भारतीय प्रोपेगैंडा" बताया। लेकिन जब अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा गया, उसका इकबालिया बयान, आया और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा आईएसआई की भूमिका का खुलासा हुआ तो ये सभी तथ्य पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करते रहे । हैरानी की बात यह है कि 2005 में "आतंकवाद विरोधी" दिखने वाले पाकिस्तान ने 2008 तक लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया जकीउर रहमान लखवी को जमानत पर छोड़ दिया, और 2021 तक उसे पाकिस्तान में ही "गायब" रहने दिया । यह आतंकवाद के खिलाफ "कड़ी कार्रवाई" थी, या करतूतों को छुपाने की कला"?
विश्व समुदाय की चुप्पी राजनीति की विवशता थी। मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर जो सबूत पेश किए, उन्हें अमेरिका और यूरोप ने भी माना, लेकिन पाकिस्तान को "राजनीतिक रूप से अस्थिर" देश का टैग देकर उसकी जवाबदेही तय करने से कतराते रहे। फिर भारत ने वैश्विक कूटनीतिक प्रयास किए । 2018 में पाकिस्तान के पूर्व PM नवाज शरीफ ने खुद स्वीकार किया कि "हमलावरों को भारत भेजने में पाकिस्तान की भूमिका थी" , लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाकिस्तान ने मुकदमों को लटकाए रखा। यहां तक कि 2025 में भी, मुंबई हमले के आरोपी फरार हैं । आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तानी मजाक अब बेनकाब हो गया है। पाकिस्तान के इस दोहरे खेल में जब अमेरिका ने पाकिस्तान से किनारा किया तो उसे चीन का समर्थन मिल गया। जो उसे "अंतरराष्ट्रीय फटकार" से बचाता रहा। चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में बिलियंस डॉलर के निवेश के बाद चीन ने हमेशा पाकिस्तान को यूएन में बचाया । 2025 में जब भारत-पाकिस्तान तनाव बढ़ा, तो चीन ने "संयम" की अपील की, लेकिन पाकिस्तान को हथियार बेचना जारी रखा । यह "आतंकवाद विरोध" है या "रणनीतिक स्वार्थ"?
आतंकवाद का सैन्य हथियारों का बाज़ार और दोहरी नीतियां हास्यास्पद हैं। आतंकी कार्यवाही पर पुरानी भारत की "कड़ी निंदा" और आज के नए भारत की कड़ी कार्यवाही से पाकिस्तान हतप्रभ है। आज भारत दुनियां को यह बताने में कामयाब हो रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शाब्दिक "दिखावे" से ज़्यादा ईमानदार कार्यवाही की ज़रूरत है। कड़ी निंदा से खरी कार्यवाही का सफर लंबी तैयारी और कूटनीतिक प्रयासों की सफलता है। विवेक रंजन श्रीवास्तव
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