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Bhopal. कहानी-कहां है स्वर्ग, Story-Where is Heaven

Upgrade Jharkhand News.  दर्द से कराहते हुए सुहानी ने घुटनों पर हाथ रखा और बमुश्किल खड़ी हुई। उसने अपनी दृष्टि चारों ओर घुमाई आलीशान डबल बेड। इंपोर्टेड फर्नीचर। बेड के अपोजिट साइड में मुलायम गद्देदार मैहरून कलर का मिनी सोफा। दीवाल से लगा बड़ा-सा मिरर और अर्द्ध गोलाकार बड़ी-सी ड्रेसिंग टेबल जिस पर तरह-तरह के प्रसाधन और परफ्यूम्स करीने से सजे थे। उसके पति दत्त साहब ने यह बेडरूम बड़े चाव से उसके लिए एंटीरियर डिजाइनर से तैयार करवाया था। यह कमरा इतना खुला और कोजी था कि उसका ज्यादा समय इसी में गुजरता। उसे पढऩे का शौक था। ढेर-सी मेगजींस और किताबें शेल्फ में रखी थीं। दूसरी ओर कलर टीवी और स्टीरियों जिसके साथ बड़े-बडे स्पीकर थे जो दीवार पर सफाई से लगे थे। नामी कलाकारों की नायाब पेंटिंग्स से पूरा कमरा सजा था। सुहानी गुजरे जमाने की हीरोईन है। अपने को उसने आज भी पूरी तरह मेंटेन कर रखा है। अपने जमाने में वह लाखों दिलों की मलिका, औरतों की ईर्ष्या मिश्रित प्रशंसा का बायस हुआ करती थी।



सुबह के आठ बज रहे थे। नाश्ते के लिए उसने बैल बजाई। थोड़ी ही देर में जगत उनके नाश्ते की ट्रे ले आया। दो सूखे टोस्ट, ऑरेंज ज्यूस कुछ फ्रूट्स और .... बस यही सब होता था नाश्ते में। जगत उनका शोफर, खानसामा, अर्दली, मैनेजर पी.ए. माली गरज यह कि 'वन इन ऑल' सेवक था। उसके होते वे बाहरी झंझटों से काफी हद तक मुक्त थीं, लेकिन भीतर के द्वंद्व तो स्वयं उन्हें ही झेलना थे। जगत, नाश्ते का सामान समेटते हुए लंच में क्या बनेगा पूछ रहा था। आज मैं लंच नहीं लूंगी। तुम अपने लिए ही कुछ बना लेना सुहानी बोली। बाहर जाने के लिए तैयार होते हुए वह अतिरिक्त रूप से उत्साहित थी। उसने फिरोजी कलर का सिल्क का एम्बाइडरी किया सूट पहना जो वह अपनी पाकिस्तान की ट्रिप में वहां से लाई थी। दत्त साहब कहा करते थे उस पर फिरोजी कलर खूब फबता है उसके साथ मैचिंग एक्सेसरीज। नीलम और हीरे जडि़त एक हल्का-सा नेकलेस और मैचिंग लटकनें पहनकर वह गजब ढा रही थी। जगत, गाड़ी गैराज से निकालकर पोर्टिको में खड़ी कर चुका था। वह घर से प्रोड्यूसर मलिक के यहां पहुंचीं। मलिक साहब का सेके्रटरी खुराना उन्हें अच्छी तरह पहचानता था। उसने आदर से उन्हें बैठाया। कोल्डड्रिंक मंगवाया। उनके हालचाल लेने के बाद उसने मलिक साहब को इन्फार्म किया कि सुहानीजी आई हैं।



मलिक ने सुहानी की बदौलत करोड़ों रुपए कमाए थे। जब सुहानी ने उसकी पहली फिल्म 'कली गुलाब की' साइन की थी तब वे दोनों ही अस्तित्वहीन थे। पिक्चर सुपर-डुपर हिट हो गई और उसके साथ ही दोनों के भाग्य का सितारा भी चमक उठा। उसके बाद तो लगातार उन्होंने कई हिट फिल्में दीं। हीरो की तरह सुहानी के पति भी फिल्मों के साथ बदलते रहे। दत्त उनका चौथा पति था जिसे सुहानी ने नहीं छोड़ा था, बल्कि वे स्वयं ही मर के उन्हें छोड़ गए थे। मलिक सत्तर के करीब पहुंच रहा था, लेकिन कद काठी से अभी मजबूत अपनी उम्र से दस बरस कम लगता था।  वह आज भी बाल डाई करके बढिय़ा सूट-बूट में परफ्यूम की फिजां  महकाता छैला बना रहता था। सुहानी से कभी उसके अंतरंग जिस्मानी रिश्ते रह चुके थे, लेकिन अब वे पुरानी बातें थीं। मलिक को हालांकि सुहानी का आना उबाऊ लग रहा था लेकिन  आमतौर पर वो बहुत डिप्लोमेट आदमी था और किसी से रिश्ते आसानी से बिगडऩे नहीं देता था। सुहानी उससे अरसे से काम मांग रही थी। मलिक एक नई पिक्चर बना रहा था। उसमें मां का एक छोटा-सा रोल था जो वह सुहानी को ऑफर कर रहा था। गरीब मां का जो हुलिया होगा उसकी तस्वीर, उसके सामने उसे मुंह चिढ़ाने लगी फिर जब बेटे का रोल करने वाले का नाम उसने देखा, क्रोध से उसका चेहरा तमतमा गया। सत्येंद्र उसका पूर्व पति था। क्या मलिक ने उसको बेइज्जत करने के लिए बुलाया है।



'मलिक, हाउ केन यू...।' कहते-कहते सुहानी का गला भर आया। आंखों का पानी था कि अब टपका अब टपका। मलिक बेशर्मी से मुस्करा रहा था। वह अब अपने असली रूप में आ गया। 'यही प्रॉब्जम है तुम औरतों के साथ। सच्चाई को स्वीकारना ही नहीं चाहतीं। वक्त अपने साथ हुस्न जवानी सब ले जाता है। बाकी जो रह जाता है उस पर कितनी ही लीपा-पोती की जाए, बात नहीं बनती।' सुहानी का अब पूरी तरह से मोह भंग हो चुका था। उसे मलिक से ऐसे हृदयहीन व्यवहार की आशा नहीं थी। फिल्मी दुनियां में अपनी जगह बनाने के लिए उसने बहुत से समझौते किए थे अपनी पहचान और स्वाभिमान दोनों को भुलाकर ही वह ऊंचाई तक पहुंच पाई थी। कास्टिंग काउच के बारे में उसने सुन रखा था, लेकिन लोगों का जो घिनौना रूप उसे इस चकाचौंध भरी दुनिया मेेें देखने को मिला उसमें कईयों के मुखौटे उतर गए थे। ऊपर से शरीफजादे, पूरी तरह घर-परिवार को समर्पित लोगों का असली चेहरा देखा है उसने। प्रतिस्पर्धा और खुदगर्जी का ऐसा घिनौना प्रदर्शन और यह चरित्रहीन बूढ़ा मलिक।



घर लौटते हुए वह सुदूर अतीत की यादों में खो गई। वे तीन बहनें और चार भाई थे। घर में बहुत ऐशो आराम से तो नहीं रहते थे। लेकिन खाने-पीने की कमी न थी। घर का बड़ा-सा मकान था। पिताजी प्रॉपर्टी डीलर थे। उसने बी.ए. तक पढ़ाई की फिर दो साल खाली बैठी रही इसी बीच उसे हीरोईन बनने की धुन सवार हो गई। हीरोईन की खोज में मलिक उन दिनों भटक रहा था। वह उनके शहर में भी आया। सुहानी के पास फिगर, सुंदर नयन-नक्श और दमकता रंग था। मलिक की खोज पूरी हुई। उसे सुहानी में अपना चमकता भविष्य नजर आया। वह प्रसिद्धि की सीढिय़ां तेजी से चढ़ती गई। उसने घर वालों को कंाटैक्ट करने की बार-बार कोशिश की, लेकिन पिताजी ने एक ही वाक्य कहकर फोन काट दिया था 'तुम हमारे लिए मर चुकी हो।' छोटा भाई अनिरुद्ध आया था उससे मिलने, लेकिन उसके दूसरे नंबर के पति ने उसे बेइज्जत कर घर से भगा दिया था। यह बात उसे शूटिंग से आने के बाद नौकरों से पता चली थी।



आज उसके पास बैंक बैलेंस, नौकर-चाकर, गाड़ी, बंगला सब कुछ है, लेकिन बावजूद इसके वह निहायत अकेली हो गई है। उसकी कमाई के लालची पतियों ने उसे मां नहीं बनने दिया। हर बार उसका एबॉर्शन करा दिया गया। कभी कुछ खिला कर, कभी इमोशनली ब्लैकमेल करके। उसे सुनीता याद आ गई। उसकी मुश्किल घडिय़ों में सुनीता ने उसका हमेशा साथ दिया। उस जैसी लड़कियां तो ईश्वर ने अब खैर बनानी ही बंद कर दी है। स्वाभिमानी निर्भीक और प्यार और अपनत्व से भरी। अपने परिवार के लिए उसने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया था। जितने भी रिस्की और ज्यादा एक्सापोजर वाले सीन थे वह उसी से कराये जाते। ऐसे ही एक स्टंट सीन करते हुए सुनीता बहुत बुरी तरह घायल हो गई थी। अस्पताल तक ले जाते समय बीच में ही उसने प्राण त्याग दिए। उसकी मौत पर सुहानी बहुत रोयी थी। उसने सुनीता के परिवार वालों की काफी मदद की, लेकिन वह उनकी सुनीता कहां से लौटाती।



घर आ गया था और उसके साथ ही एक गहरी उदासी, वीरानगी और तनहाई एक साथ उसके स्वागत के लिए खड़ी थीं। कोठी के बाहर सुनहरी हर्फों में लिखा एलजियम मानों उसका उपहास उड़ा रहा था। 'एलजियम-फ्रैंच में जिसका अर्थ है 'स्वर्ग'। क्या यह घर कभी स्वर्ग बन सका? स्वर्ग तो वह तभी होता न जब उसमें प्यार करने वाला पति और निश्छल प्यार लुटाने के लिए अपने बच्चे होते। दुनिया ने उसे छला। उसने भी लोगों को मूर्ख बनाया। हिसाब बराबर। फिर जिन्दगी से कैसा गिला-शिकवा। किससे करे वो शिकवा-शिकायत, कोई हमदम कोई सहारा... उसके पास तो खालीपन के सिवा कुछ भी नहीं। गहरे अवसाद में डृबी वह यंत्र चलित-सी अपने कमरे में पहुंची। फ्रिज से उसने पानी की बॉटल निकाली। नींद की ढेर-सी गोलियां लीं और पानी के साथ एक-एक कर सारी गटक लीं। फिर तकिए में मुंह छिपाकर हमेशा के लिए आराम की नींद सो गई। उषा जैन 'शीरीं'



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