प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 11 वर्ष
Upgrade Jharkhand News. आजकल प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सभी प्लेटफार्मों पर मोदी सरकार के 11 सालों के कार्यकाल की समीक्षा हो रही है। सभी विषय विशेषज्ञ अपनी अपनी तरह से उनकी कार्यशैली और देश की वर्तमान स्थिति को विश्लेषित कर रहे हैं। यहां एक बात जो विशेष रूप से दिखाई देती है, वह यह है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के 11 सालों के कार्यकाल की बात तो हो रही हैं, वह देश हित में कितना बेहतर कर पाए अथवा और क्या-क्या कर सकते थे इस बात पर भी चर्चा हो रही है, किंतु इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं गया कि श्री मोदी किन परिस्थितियों में देश के प्रधानमंत्री बने और अब किन हालातों में स्वयं को भारत का प्रधान सेवक मानकर कार्य कर रहे हैं। इसे समझने के लिए हमें उस कथानक पर गौर करना होगा, जिसके तहत गलत वातावरण में पले बढ़े एक बच्चे को एक योग्य विशेषज्ञ अथवा शिक्षक के पास ले जाया जाता है। शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वह उक्त बालक को शारीरिक और बौद्धिक रूप से विकसित करे, उसे सही दिशा दिखाए। सिखाने वाला इस चुनौती को स्वीकार भी करता है और अपने कर्तव्य के निर्वहन में जी लगाकर जुट जाता है। एक निश्चित समय बाद बच्चों के अभिभावकों को लगा कि अब तक तो बालक सर्वांगीण विकास को प्राप्त हो चुका होगा। लेकिन जैसे ही उनका गुरुकुल, गुरु और उस बच्चे से साक्षात्कार होता है तो अपेक्षित परिणाम देखने को नहीं मिलते। इस पर गुरु से सवाल किए जाते हैं कि हमने आपके ही आश्रम में इतने ही समय में अन्य बच्चों को शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित होते देखा है फिर हमारे बच्चे को क्या हुआ? यह क्यों विकास को प्राप्त नहीं हो पा रहा? क्या हमारा बच्चा भौतिक अथवा दैविक प्रतिकूलता का शिकार है या इसमें कोई जन्म जात कमी है ? क्या हम इसे पौष्टिक आहार नहीं देते देते? क्या यह किसी प्रकार के कुपोषण का शिकार है? इस पर गुरु का जवाब होता है बच्चा पूर्ण रूप से स्वस्थ है।
इसमें कोई कमी नहीं है, ना ही इसका किसी भी प्रकार का दोष है। दोष है तो केवल उस परिवेश का जिसमें अभी तक यह रह रहा था। दरअसल मेरे गुरुकुल में बाकी जितने भी बच्चे आए उनके कच्चे मन में मैंने जो उत्कृष्ट विचार बीजारोपित करना था वह किया और मैं सफल भी रहा। सभी बच्चे सामान्य रूप से विकास को प्राप्त हो रहे हैं। लेकिन आपके बच्चे का दुर्भाग्य यह है कि वह लंबे समय तक गलत परिवेश में दिग्भ्रमित प्रशिक्षण को प्राप्त होता रहा। उसने वहां जो कुछ भी सीखा उसे अच्छी तरह से मन मस्तिष्क में बिठा लिया। अब समस्या यह है कि मुझे पहले इसके मन मस्तिष्क में गहरे तक पैठ चुके उन दूषित विचारों, स्मृतियों को विलोपित करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करना पड़ रही है, जो इसे गलत परिवेश और अनुचित प्रशिक्षण से प्राप्त हुए थे। जब यह पुरानी गलत चीजों को अपनी स्मृतियों से हटा देगा तभी यह नई और सही चीजों को पूरी तरह से ग्रहण कर पाएगा। यह ठीक वैसा उपक्रम है जैसे एक साफ सुथरी कॉपी पर मनचाहा लेख लिख देना और एक लिखी हुई कॉपी पर पहले पुराने लिखे हुए को मिटाने का उद्यम करना और फिर वहां पर स्पष्ट रूप से नए अक्षरों अथवा शब्दों को अंकित करना। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो साफ सुथरी कॉपी पर लिखने में जितना समय लगा, पूर्व से लिखी हुई कॉपी का मिटाकर उस पर नया लिखने में अतिरिक्त समय लगाना पड़ गया।
अब जैसे जैसे इस बालक के मन मस्तिष्क से पुराने दिग्भ्रमित और गलत प्रशिक्षण की स्मृतियां विलोपित होती जा रही हैं, वैसे-वैसे यह उत्तम गुणों को ग्रहण करता जा रहा है। जल्दी ही यह अन्य बच्चों के साथ प्रतिस्पर्धा करेगा और सर्वांगीण विकास के मामले में स्वयं को उत्कृष्ट साबित करने में सफल साबित होगा। ऐसा ही हुआ, कुछ समय बाद समाज ने देखा कि वह बालक अच्छे संस्कार, उत्तम सीख पाकर उत्कृष्ट प्रदर्शन करता दिखाई दे रहा है। उसने शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता प्राप्त करते हुए विकास की तीव्र गति पकड़ ली है। यही स्थिति हमारे भारत देश की है। इसकी बागडोर लगभग 70 सालों तक अधिकांशतः ऐसी सरकारों के हाथ में बनी रही, जिन्होंने यह सपना देखा ही नहीं कि हम विश्व की तीन प्रमुख आर्थिक शक्तियों में शामिल हो सकते हैं। उक्त सरकारों ने कभी कल्पना की ही नहीं कि भारत देश कभी विश्व की महाशक्ति भी बन सकता है। उन्होंने कभी माना ही नहीं कि हम कभी विश्व गुरु हुआ करते थे। अधिकांश हुक्मरान भारतीय संप्रभुता के मामले में रक्षात्मक युद्ध नीति को ही अपनाते रहे। कभी यह आभास हुआ ही नहीं कि हम अपना अनिष्ट चाहने वाले को उसके घर में घुसकर मार सकते हैं। विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वदेशी आचार विचार पर कभी ध्यान गया ही नहीं। फल स्वरुप हम छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयात पर ही निर्भर बने रहे। जब 2014 में श्री नरेंद्र मोदी को देश की बागडोर सौंपी गई तब उसकी स्थिति ऐसे वीर हनुमान जैसी थी जो अपनी समस्त शक्तियों को भूलकर सुप्त अवस्था में पड़े हुए थे। आवश्यकता थी तो उन्हें यह याद दिलाने की -
कवन सो काज कठिन जग माहि।
जो नहीं होय तात तुम पाही ।।
सुंदरकांड में जब जामवंत जी हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराते हैं, तब वह मानसिक रूप से जागृत अवस्था को प्राप्त होते हैं। लंबे कालखंड तक अपनी शक्तियां विस्मृत हो जाने से जो हनुमान जी सुग्रीव की किंचित सहायता ना कर सके, वह पल भर में समुद्र को लांघ जाते हैं, लंका को जला देते हैं, सीता माता का पता लगा लेते हैं, श्री राम और राजा सुग्रीव को माता सीता की कुशलता का समाचार देकर सारी वानर सेना को मृत्युदंड से बचा लेते हैं। बड़े-बड़े राक्षसों का केवल बांई भुजा से अंत करते चले जाते हैं। यही नहीं, आवश्यकता पड़ने पर संजीवनी लाकर लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा भी करते हैं। अंततः एक समय ऐसा भी आता है जब श्री हनुमान जी अपना सीना चीर कर यह प्रतिपादित करते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड के नायक श्री राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ उनके हृदय में विराजमान हैं। लिखने का आशय यह कि हनुमान जी शुरू में बलहीन थे, ऐसा नहीं है। वे जन्म से ही शक्तिशाली थे। बुद्धि विवेक के मामले में भी उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। आवश्यकता थी तो केवल इस बात की कि सही समय पर कोई उन्हें उनकी शक्तियों का एहसास करा दे। हुआ भी ऐसा ही, जैसे जामवंत जी ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का एहसास कराया वे इतिहास रचते चले गए। बस ऐसा ही कुछ श्री नरेंद्र मोदी ने सरकार में आने के बाद किया। पहले उन्होंने पूरी गंभीरता से 70 साल की सरकारी कारगुजारियों पर दृष्टिपात किया। फिर इस दौरान जो गलत और बेकार था उन्हें मिटाया। निसंदेह इस अध्ययन में पर्याप्त समय लगा। लेकिन उसके बाद जो देश हित में प्रतीत हुआ, विकसित भारत की कल्पना लेकर उसे जोड़ते हुए आगे चल पड़े। हमारा देश भी सनातन काल से सोने की चिड़िया, विश्व गुरु और अनेक गरिमामय सम्मानों से अलंकृत था। हमारी सेना भी वीरता के मामले में किंचित मात्र कमजोर ना थी। अपने परंपरागत कौशल को लेकर युवाओं में भी नुक्स नहीं था। लेकिन यह गौरवशाली इतिहास भारतीयों को कभी पढ़ाया ही नहीं गया। नतीजा यह हुआ कि जिस प्रकार हनुमान जी अपनी शक्तियों को लंबे समय के लिए भूल गए, उसी प्रकार हमारा देश सरकार की गलत नीतियों, तुष्टिकरण युक्त कार्य शैली के चलते भूलता चला गया। इस अवस्था का भान होते ही मोदी जी ने अपनी संकल्प शक्ति से भारत देश की सुप्त अवस्था को झकझोर कर जगाया। उसे उसकी शक्तियों का एहसास कराया तथा भरोसा दिलाया कि हां तुम यह सब कर सकते हो। उठो, आगे बढ़ो, और तब तक मत रुको जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
नतीजा हम सबके सामने है।अब हमारे देश के प्रधान विश्व के स्वयंभू ठेकेदारों से आंख मिलाकर बात करते हैं। समूचा विश्व हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के भीतर नेतृत्व कर्ता की योग्यता देख रहा है। चांद पर पहुंचने के लिए अब हम विदेशी ताकतों पर आश्रित नहीं रहे। सैन्य महत्व के सभी प्रकार के गोला बारूद, मिसाइल, रोकेट लांचर, भारी भरकम विशाल युद्धपोत, फाइटर जेट देश में ही बनाए जाते हैं। बल्कि अब इन्हें निर्यात भी किया जा रहा है। युवाओं ने बेहद कम समय में इतने महत्वपूर्ण और अत्यधिक संख्या में स्टार्टअप खड़े कर दिए हैं कि जिन देशों से हम आवश्यकता की वस्तुएं आयात किया करते थे, अब हमारे यहां से उन्हें सभी प्रकार के उत्पाद निर्यात किये जा रहे हैं। रह गई सीमाओं की सुरक्षा की बात, तो अब शत्रु देशों को समझाइश नहीं दी जाती। बल्कि घर में घुसकर उन्हें उनके दुष्कर्मों का दंड दिया जाता है। इन सभी अवस्थाओं के एकजुट प्रयासों का ही परिणाम है कि अब भारत विश्व की चौथी प्रमुख आर्थिक शक्ति बन चुका है। यह ठीक वैसी अवस्था है जब वीर हनुमान जी को अपनी शक्तियों का एहसास हो चुका है। अब वे अपने प्रचंड वेग से स्वयं की योग्यता को अखिल ब्रह्मांड में स्थापित कर रहे हैं। निश्चय ही भारत के पक्ष में निर्मित हो रहे वैश्विक माहौल का श्रेय देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उनके अथक प्रयासों के चलते भारत की मान्यता दुनिया में स्थापित हो रही है। वहीं दूसरी ओर शत्रु देश रोटी और पानी के लिए भी तरसते दिखाई देने लगे हैं। अब उनका "विजन 2047" विकसित भारत के संकल्प को धारण किए हुए है। इस नियत अवधि में हमें भारत को विकसित देश के रूप में स्थापित करना है। यही नहीं, इसी दौरान हमें विश्व की तीन प्रमुख आर्थिक महा शक्तियों में शुमार होना है। यदि श्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहा जाए तो हमें यह संकल्प करना होगा "यस, आई कैन डू इट"। 11 वर्ष की अल्प अवधि में देश जिस तीव्र गति से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है उस तीव्रता को देखते हुए हम यह दावा कर सकते हैं कि 2047 में हम वांछित लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य करेंगे यह दृश्य ठीक वैसा ही होगा जैसे त्रेता युग में श्री हनुमान जी अपना सीना चीर कर अखिल विश्व को स्वयं के हृदय में विराजित श्री सीताराम जी और लखन लाल के विहंगम दर्शन करा रहे होंगे। डॉ. राघवेन्द्र शर्मा
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