Default Image

Months format

Show More Text

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

Terhubung

NewsLite - Magazine & News Blogger Template
NewsLite - Magazine & News Blogger Template

Bhopal दृष्टिकोण : श्रीमद् भागवत कथाएं और विघटनकारी सियासत, Viewpoint: Shrimad Bhagwat Kathas and Disruptive Politics

 


Upgrade Jharkhand News.  श्रीमद् भागवत कथाएं सामाजिक समरसता का पर्याय रही हैं। न कभी कथावाचकों की जाति पूछी गई, न ही धर्म। यही कारण रहा कि प्रखर वक्ताओं ने अपनी वाणी के प्रभाव से असंख्य लोगों की विचारधारा को सत्संग की ओर प्रेरित किया, किन्तु जब से कथाओं के नाम पर फिल्मी धुनों और प्रसंगों पर पेरोडी इन कथाओं में सुनाई जाने लगी तथा अनेक धंधेबाज इस क्षेत्र में अपना व्यापार स्थापित करने लगे, तब से कथावाचकों की नीयत पर संदेह उत्पन्न होने लगा। ऐसे में धंधेबाज कथावाचकों पर यदि नकेल कसने के लिए कुछ लोग सामने आए, तो सियासत धंधेबाजों के साथ खड़ी हो जाए तथा उनकी धंधेबाजी को जातीय रंग देने लगी, तो लगता है कि विघटनकारी शक्तियां समाज में वैमनस्य फ़ैलाने का कोई अवसर चूकना नहीं चाहती। वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए किसी भी हद तक समाज विरोधी कृत्य की पीठ थपथपा सकती हैं।  यदि ऐसा न होता, तो देश में छोटी छोटी घटनाओं को जातीय रंग देकर सियासत न की जाती। उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक दल सत्ता से दूर होने का दंश झेल नहीं पा रहा है, सो उसका निरंतर यही प्रयास रहता है, कि जैसे भी हो समाज में जातीय संघर्ष को बढ़ावा दिया जाए तथा कुछ विशेष जातियों को लामबंद करके समाज को विघटित करने में कोई कसर बाकी न छोड़ी जाए। यदि ऐसा न होता, तो उत्तर प्रदेश के एक ग्राम में श्रीमद् भागवत कथा के नाम पर ढोंगी कथावाचकों के माध्यम से जातीय संघर्ष की भूमिका तैयार करने का प्रयास न किया जाता। 



छद्म नाम से कथा के नाम पर धंधा करने वालों को राजनीतिक दल द्वारा समर्थन देकर समाज में जातीय वैमनस्य को बढ़ावा देने का  प्रयास न किया जाता। इसे देश का दुर्भाग्य न कहें तो क्या कहें, कि उच्च तकनीकी युग में जब विश्वमानव की कल्पना साकार हो चुकी है तथा अपनी योग्यता के आधार पर व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान बनाने में समर्थ हुआ है, वही भारत जैसे समृद्ध राष्ट्र में कुछ लोग और राजनीतिक दल अपनी संकीर्ण मानसिक विकलांगता का परिचय देते हुए समाज में जातीय संघर्ष की भूमिका बना रहे हैं। इतिहास साक्षी है कि सर्वे भवन्तु सुखिनः का भाव रखने वाले देश में पारिवारिक व सामाजिक उत्सवों में आदिकाल से सम्पूर्ण समाज का योगदान रहा है, किन्तु दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को शांति  सद्भाव कभी नहीं सुहाता, सो जाति और धर्म के नाम पर षड्यंत्रकारी शक्तियां आम आदमी के बीच फूट डालकर अपना राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ पूरा करने का प्रयास करती रहती है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जहाँ बिना किसी भेदभाव के जीवनयापन के मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किये गए हैं, वहां कुछ राजनीतिक दल केवल जातीय गोलबंदी के लिए अगड़ा-पिछड़ा, दलित-सवर्ण, अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक जैसे विमर्श को समाज में फैलाकर अपनी राजनीतिक मंशा पूरी करने में पीछे नहीं रहना चाहते। आपराधिक घटनाएं हों या धार्मिक आधार पर घटित कोई घटना विघटनकारी तत्व हर घटना में अपना लाभ खोजने लगते हैं। उत्तर प्रदेश आजकल विघटनकारी अराजक तत्वों की प्रयोगशाला बनता जा रहा है। ऐसे में आम शांतिप्रिय नागरिकों की चुप्पी शांति व्यवस्था के प्रति घातक सिद्ध ही सकती है। सो आवश्यक है कि विघटनकारी शक्तियों का विरोध हर स्तर पर किया जाए, ताकि कोई भी समाज को अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए बाँटने का दुस्साहस न कर सके। डॉ. सुधाकर आशावादी



No comments:

Post a Comment

GET THE FASTEST NEWS AROUND YOU

-ADVERTISEMENT-

NewsLite - Magazine & News Blogger Template