Upgrade Jharkhand News. हिमालय की पावन भूमि जनपद पिथौरागढ़ के पांखू नामक क्षेत्र में स्थित कोकिला देवी का दरबार भक्त जनों के लिए माता भवानी की ओर से उनकी कृपा की अलौकिक सौगात है । कोकिला कोटगाड़ी देवी को न्याय की देवी के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। जिस किसी को भी कहीं से जब न्याय की उम्मीद नहीं रह जाती है, तो वह कोटगाड़ी देवी की शरण में जाकर न्याय की गुहार करता है, यह भी मान्यता है,कि कोटगाड़ी देवी उसे अवश्य ही न्याय दिलाती है। कार्यों की सिद्वियों के लिए इनकी शरणागति सब प्रकार से मनोवांछित फल प्रदान करने वाली कही गयी है, मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगते रहते रहे है, दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मागते है, तथा मनौती पूर्ण होने पर दर्शन के लिए यहां अवश्य आते है।
यह दंत कथा भी काफी प्रसिद्व है कि माता के प्रभाव से आजादी के पूर्व अंग्रेजों के शासन काल में एक जज ने जटिल यात्रा कर यहां पहुंचकर देवी से क्षमा याचना की। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि क्षेत्र के एक निर्दोष व्यक्ति को जब अदालत से भी न्याय नहीं मिला तो सामाजिक दंश से आहत होकर खुद को निर्दोष साबित करने के लिए करुण पुकार के साथ उसने भगवती कोटगाड़ी के चरणों में विनती की भक्त की। करुण विनती के फलस्वरुप चमत्कारिक घटना के साथ कुछ समय के बाद जज ने यहां पहुंचकर उसे निर्दोष बताया। इस तरह के एक नहीं सैकड़ों चमत्कारिक किस्से देवी के इस दरबार से जुड़े हुए हैं। हिमालय के देवी शक्ति पीठों में कोकिला माता का महात्म्य सबसे निराला है, सिद्वि की अभिलाषा रखने वाले तथा ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थान त्वरित फलदायक है, देवी के उपासक इन्हें विश्वेश्वरी, चन्द्रिका, कोटवी, सुगन्धा, परमेश्वरी , चण्डिका, वन्दनीया, सरस्वती, अभया प्रचण्डा, देवमाता, नागमाता, प्रभा आदि अनेक नामों से पुकारते है। मंदिर के समीप ही अनेक पावन व सुरम्य स्थल मौजूद है। इस पौराणिक मंदिर में शक्ति कैसे और कब अवतरित हुई इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं हो है ,दंत कथाओं में कई भक्त मानते है, कि यह देवी नेपाल से यहां आई है इनके विश्राम स्थल अनेक स्थानों पर है, जहां नित्य इनकी पूजा होती है। कोट का तात्पर्य अदालत से माना जाता है, पीड़ितों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है, और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिष्ठा सम्पन कराने की परम्परा है।
एक अन्य प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाशय छोड़ने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि, हे प्रभु हमे ऐसा सुगम स्थान बताये जहां हम पूर्ण रूप से सुरक्षित रह सके तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी कष्ट निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था। कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाषा में काली नाग की चोटी कहते है। बताते है कि पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर को कभी भी गरुड़ आर-पार नहीं कर सकते ऐसी परमकृपा है। लोक मान्यताओं के अनुसार किसी ग्वाले की सुन्दर गाय इस शक्ति पर आकर अपना दूध स्वयं दुहाकर चली जाती थी, ग्वाले का परिवार बेहद अचम्भे में रहता था, कि आखिर इसका दूध कहां जाता है। इस प्रकार एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पीछा किया जब उसने यह दृश्य देखा तो धारधार शस्त्र से उस शक्ति पर वार कर डाला इस प्रहार से खून की तीन धाराएं बह निकली जो क्रमशः पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी पर पहुंची। पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरुप यहां देखी जा सकती है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना ही दूध अर्पित किया जाए, दूध शोषित हो जाता है। कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिए अनिष्टकारी माने जाते है, जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है, मान्यता है, कि ब्रह्म मुहूर्त में माता कोकिला इस जल से स्नान करती है। सच्चे श्रद्वालुओं को इस पहर में यहां पर माता के वाहन शेर के दर्शन होते है, इस प्रकार की एक नहीं सैकड़ों दंत कथाएं इस शक्तिमयी देवी के बारे प्रचंलित है, जो माता कोकिला के विशेष महात्मय को दर्शाती है। इस दरबार में माता कोकिला के साथ बाण मसूरिया, उडर, घषाण आदि अन्य देवताओं की पूजा भी की जाती है स्थानीय गांव के पुजारी पाठक मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करते है। भण्डारी, गोलू चोटिया व वाण के पुजारी कार्की लोग है।
कुमाऊ मण्डल में जनपद नैनीताल के हरतोला क्षेत्र में स्थित कोकिला वन की कोकिला माता इन्हीं का रुप मानी जाती है। दारमा घाटी के कनार क्षेत्र में भी माता विराजमान हैं। भक्तों का यह भी मत है, कि कत्यूर घाटी से इन्हें इनके भक्तजन चंद्रवंशी राजा लोग नेपाल को ले जा रहे थे लेकिन माँ को यह स्थान भा गया और वे यहीं स्थापित हो गयी। माता की कृपा से ही कालीय नाग को भद्रनाग नामक पुत्र की प्राप्ति हुई,भद्रनाग की महिमा का वर्णन मानस खण्ड के 51 वें अध्याय में आता है, इन्होंने माता भद्रकाली की घोर आराधना करके विशेष सिद्वियां प्राप्त की थी। माता कोकिला माता भद्रकाली के पूजन के साथ भद्रनाग व कालिया नाग के पूजन से सर्पभय दूर होता है। माता भद्रकाली का मंदिर बागेश्वर जनपद के कांडा नामक स्थान से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह भी अद्भुत क्षेत्र है, मन्दिर के नीचे गुफा है जिसमें शिव व शक्ति दोनों विराजमान है, कोकिला माता की छत्रछाया में विराजमान काली नाग को भी काली का परम उपासक माना जाता है। स्कंद पुराण में वर्णन आया है काली सम्पूज्यते विप्रा कालीयने महात्मना कुल मिलाकर कोकिला माता का दरबार श्रद्वा व भक्ति का संगम है, जो सदियों से पूज्यनीय है। रमाकान्त पन्त
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