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Bhopal व्यंग्य - व्यास पीठ पर हंस और कौवे Satire - Swans and crows on Vyasa Peetha

 


Upgrade Jharkhand News. एक कहावत है कि जिसका काम उसी को साजे यानी निपुण व्यक्ति ही अपना दायित्व बखूबी निभा सकता है, लेकिन यहाँ तो कौवा चला हंस की चाल, अपनी भी भूल बैठा जैसी कहावत पर अमल करने की होड़ मची है। जिसने पुस्तकों का गहन अध्ययन नहीं किया, वह दिव्य ज्ञान बाँटने का ठेकेदार है । कथा व्यास के आसन पर प्रभुत्व जमाने का दम भर रहा है तथा दुहाई दे रहा है कि जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान । वैसे तो यह कहावत उन साधुओं के लिए बनी थी, जो परम विद्वान होते थे तथा मानवता के कल्याण हेतु समर्पित रहते थे यानी आज की तरह धंधे बाज नहीं होते थे। आजकल साधु की जगह स्वादु अधिक हो गए हैं जो हर प्रकार के मोह जाल में गहरे धँसे हैं। कथा व्यास और साधु में भी अंतर होता है। कथा व्यास जब से कथा की दक्षिणा की जगह कथा शुल्क लेने लगे हैं, वे भी अभिनेता की तरह दाम सर्वोपरि मानने लगे हैं। वैसे कथा करना भी एक धंधा है। पहले कथा धार्मिक आस्था का प्रतीक हुआ करती थी, अब कथा संगीत, अभिनय और नौटंकी का रूप ले चुकी है। शिक्षित और बुद्धिजीवी कथावाचक देश विदेश और टीवी चैनल्स पर अपना प्रभाव स्थापित कर रहे हैं तथा जो इस धंधे से आकर्षित होकर इसे अपनी कमाई का ज़रिया बना रहे हैं, वे अपना नाम, जाति बदलकर कथा के नाम पर फूहड़ गानों की पैरोडी याद करके नैन मटकाना सीख रहे हैं तथा कथा व्यास की गद्दी पर बैठकर भौंडा अभिनय करने से बाज नहीं आ रहे हैं। 



युग बदल रहा है तो श्रीमद् भागवत का अध्ययन कौन करे। ये नौटंकी बाज जानते और समझते हैं कि अब धर्म भी धंधा है और धार्मिक कथाएं भी। बात केवल भीड़ को प्रभावित करने की है। संस्कारों का संचरण करने की नहीं। संस्कारों का संचरण करने वाले कथा व्यास अब ढूँढे नहीं मिलते, अब गीत, संगीत, अभिनय का घालमेल करके सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करने वाले कथा व्यासों की डिमांड अधिक है। कथा करने का ठेका लाखों करोड़ों में लेते हैं और उपदेश देते हैं कि लालच कभी मत करो, पैसे से मोह मत करो। दान में ही समृद्धि है। त्याग से बढ़कर संसार में दूसरा कोई सुख नही है। खुद एडवांस में पैसा लिए बिना कथा व्यास की गद्दी पर नही बैठेंगे और दूसरों को मोह माया से दूर होकर वैराग्य का पाठ पढ़ाएँगे। ऐसे में भला कौन ऐसा बेरोजगार होगा, जो कथा व्यास बनना नहीं चाहेगा। इसलिए नौटंकी बाज इस धंधे में अपना भाग्य क्यों न आज़माएँ । अपना धंधा जमाने के लिए कई बार समस्या जाति की भी आती है। ऐसे में जातीय हीनता से उबरने के लिए यदि अपने नाम में परिवर्तन करना पड़े तो परहेज़ कैसा। कुछ नौटंकी बाज अपनी धंधेबाजी के लिए कुछ भी कर सकते हैं। विद्वान कथा व्यास की कोई जाति नही पूछता, किंतु उन लम्पटों की जाति पर संदेह अवश्य व्यक्त करता है, जो कथा व्यास की गद्दी पर बैठकर अशोभनीय हरकत करते हैं। विभिन्न प्रकार की भाव भंगिमाएं बनाकर अपने आप को नौटंकी का कलाकार सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। समझदार श्रद्धालु जानते हैं कि कथा व्यास का सम्मान और अपमान जाति के आधार पर नही, अपितु उसके संस्कार और ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए।



 यदि कथा व्यास किसी भी जाति का है, किंतु उसका आचरण सभ्य नहीं है, जिसने कभी श्रीमद् भागवत कथा, श्री राम कथा, श्री हनुमान कथा का अध्ययन ही न किया हो तथा नौटंकी और उल्टी सीधी पैरोडी गाकर भक्तों को भटकाने का प्रयास करे, तो ऐसे कथा व्यास के मुख पर कालिख का लेप करके सार्वजनिक मुंडन संस्कार कराए जाने से भी समझदार श्रोता नहीं चूकते। बाद में चाहे कोई कुछ भी कहे, लेकिन जो हो चुका होता है, वह इतिहास बन जाता है। बात केवल जाति की नहीं संस्कारों की भी है। जाति और संस्कारों में कोई मेल हो, ऐसा भी आवश्यक नही है। फिर भी  व्यास पीठ पर बैठकर पीठ का अपमान करने वालों की यदि जाति भी पूछी जाए और उनके इतिहास को खंगाल कर यह निर्णय लिया जाए कि कथा व्यास कथा कहने के लायक है भी या नहीं, इसके सर्वाधिकार तो जिजमान के हाथ में सुरक्षित रहने ही चाहिए। सुधाकर आशावादी



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