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Bhopal दृष्टिकोण : अनुचित है जातीय वैमनस्य को बढ़ावा देने का कृत्य Viewpoint: The act of promoting racial hatred is inappropriate

 


Upgrade Jharkhand News. गतिशील समाज में शांति और सौहार्द से जीवन यापन कुछ अराजक शक्तियों को नही सुहाता, सो अराजक तत्व नित नए मुद्दे ढूँढकर समाज की शांति भंग करने का षड्यंत्र बुनते रहते हैं। देश का दुर्भाग्य है कि समाज में एक ऐसा वर्ग सक्रिय हो चुका है, जिसका कार्य ही समाज में जातीय वैमनस्य को बढ़ावा देना है। यदि ऐसा न होता, तो देश भर में घटित होने वाली आपराधिक घटनाओं में वह पीड़ित या अपराधी की जाति न खंगालता तथा छोटी छोटी घटनाओं को जातीय रंग देकर समाज में वैमनस्य फैलाने का दुस्साहस न करता। लम्बे समय से देखा जा रहा है, कि कुछ षड्यंत्रकारी शक्तियां सनातन संस्कृति में साझा समरसता को खंडित करने हेतु कभी यादव और ब्राह्मणों के बीच संघर्ष के बीज बोते हैं, कभी राजपूत और अन्य जातियों के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने का प्रयास करते हैं, कहने का आशय यही है कि विघटनकारी शक्तियां केवल सनातन संस्कृति में जीवन यापन कर रहे हिन्दुओं के मध्य ही अगड़ा, पिछड़ा, दलित- सवर्ण की खाई चौड़ी करने में जुटी हैं। यदि ये आपराधिक घटनाएं तथाकथित विघटनकारी तत्वों की जाति तथा गैर हिन्दुओं के मध्य घटित होती हैं, तब विघटनकारी तत्व चुप्पी साध जाते हैं। 



जिससे विघटनकारी तत्वों की नीयत और नीति का खुलासा स्पष्ट रूप से हो जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सोशल मीडिया, सार्वजनिक मंचों तथा सड़कों पर जाति आधारित विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से समाज को विघटित करने का खुला खेल खेला जा रहा है। अराजक शक्तियां खुलेआम राष्ट्र विरोधी नारे लगाने से परहेज नहीं कर रही हैं। भारत में आजीविका चला रहे तत्व सुख सुविधाओं का उपयोग करके भी जिस थाली में खा रहे हैं, उसी थाली में छेद करने का दुस्साहस कर रहे हैं। सरकार मौन है। ऐसे तत्वों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही न होने  उनके हौंसले बुलंद हो रहे हैं। जो खतरनाक स्थिति का संकेत है। प्रश्न उठता है कि समाज में फैल रही नृशंस दरिंदगी, मानवता को कलंकित करती घटनाओं को अनेक बार न्यायालय स्वतः संज्ञान में लेकर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करता हैं, तो ऐसी घटनाओं का प्रचार प्रसार करके उन्हें जातीय रंग देने का दुस्साहस करने वाले तत्वों के विरूद्ध कठोर कार्यवाही क्यों नहीं की जाती ? होना यह चाहिए कि देश में जातीय या धार्मिक आधार पर नफरत और वैमनस्य बढ़ाने वाले तत्वों की धरपकड़ हो, अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ यह नहीं है कि सामाजिक समरसता में जहर घोलकर समाज को खंडित करने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाए। अभिव्यक्ति की भी एक सीमा है। अभिव्यक्ति की सीमायें लांघने वाले तत्वों के लिए भी संविधान में प्रावधान होंगे ही। राष्ट्र के विरुद्ध या समाज में जातीय संघर्ष को बढ़ावा देने वाले स्रोतों पर जब तक नकेल नहीं कसी जाएगी या उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें दण्डित नहीं किया जाएगा, तब तक अराजक शक्तियों से पार पाना मुश्किल ही रहेगा। डॉ. सुधाकर आशावादी



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