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Bhopal दृष्टिकोण -भाषा और जातीय सोच का कुरूप चेहरा Viewpoint - The ugly face of language and ethnic thinking

 


Upgrade Jharkhand News. मराठी मानुष के नाम पर हिंदी भाषा भाषियों के साथ अभद्रता, उत्तर प्रदेश में जाति के नाम पर घृणा और द्वेष उत्पन्न करने का निकृष्ट खेल यही जताने में समर्थ प्रतीत होता है कि जब ख़ानदानी विरासत में मिली राजनीति को उत्तराधिकारी संभाल नहीं पाते, तब सत्ता सुख से वंचित होते ही वे सत्ता की चाहत हेतु छटपटाने लगते हैं तथा जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी येन केन प्रकारेन सत्ता हथियाने की फिराक में लग जाते हैं। भले ही इसके लिए उन्हें जातीय विघटनकारी चालें  चलनी पड़ें या भाषा का विवाद उत्पन्न करके समाज को बाँटने का षड्यंत्र रचना पड़े। मुंबई महाराष्ट्र में हाशिए पर चली गई शिव सेना तथा अपने अलग तेवर के लिए कुख्यात महाराष्ट्र नव निर्माण सेना अपने मूल उद्देश्य से भटक कर बाला साहेब ठाकरे की नीतियों के विरुद्ध जाकर जिस प्रकार से महाराष्ट्र में अराजकता का नंगा नाच कर रही है, वह किसी से छिपा नही है। मराठी मानस के नाम से महाराष्ट्र में ग़ैर मराठी भाषा भाषियों के साथ दुर्व्यवहार कर रही है तथा ग़ैर मराठी भाषा भाषियों के प्रति भी अपना दोहरा चरित्र दर्शा रही है। 



उससे लगता है कि इन दोनों दलों का सर्वनाश सुनिश्चित है। देश भर के ग़ैर मराठी भाषा भाषी कलाकारों के आलीशान महलों पर टेढ़ी नजर डालने की इनकी हिम्मत नहीं होती तथा ग़ैर सनातनी आबादियों में ग़ैर हिंदुओं के विरुद्ध भाषा के नाम पर मुँह खोलने में इन्हें अपना राजनीतिक नुक़सान दिखाई देता है, सो ये केवल उत्तर भारतीयों, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के  रोज़ी रोटी की तलाश में महाराष्ट्र में रहने वाले हिंदी भाषा भाषियों पर हमले करके अपनी कायरता का परिचय देने तक सीमित रहते हैं। बहरहाल संकीर्ण कायरता पूर्ण राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता। विचारणीय है कि मराठी अस्मिता की दुहाई देते हुए मनसे और शिव सेना ये क्यों भूल जाते हैं, कि जिस प्रकार उत्तर और मध्य भारत के श्रमिक महाराष्ट्र में आजीविका कमा रहे हैं, उसी प्रकार उत्तर व मध्य भारत में महाराष्ट्र के मराठी मानुष भी अपनी आजीविका कमा रहे हैं। यदि उन क्षेत्रों में भाषा के नाम पर मराठी मानुषों के साथ भी अभद्रता की जाए, तब क्या वे ऐसी अभद्रता का सम्मान करेंगे ? विगत दिनों बैंगलोर में भी एक बैंक अधिकारी को भाषा के नाम पर विवाद का शिकार बनाया गया। ऐसा अक्सर भारत में ही नही अपितु विश्व भर में अपना विशेष स्थान रखने वाली हिंदी भाषा भाषियों के साथ ही हो रहा है। यही नहीं उत्तर प्रदेश और बिहार आजकल जातीय विघटन के क्षेत्र में प्रयोगशाला बने हुए है। एक जाति के समर्थन में जातिवादी समाजवादी पार्टी जाति संघर्ष को हवा दे रही है, जबकि यदि इनकी जाति के लोग अगड़ों और दलितों पर अत्याचार करते हैं, तब यह विघटन कारी दल मौन धारण कर लेता है। दोगले पन का इससे निकृष्ट उदाहरण भी कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकता। 



विडम्बना यह भी है कि विपक्ष के नाम पर जूतों में बंटी दाल की तरह वंश वादी राजनीतिक दलों के इंडी गठबंधन को अपने ही गठबंधन के दलों की इन विघटन कारी हरकतों पर कोई लज्जा नहीं आती। बात बात पर देश के संविधान को ख़तरे में बताने वाली कांग्रेस, तृण मूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल भी इस भाषायी विवाद पर चुप्पी साधे हुए हैं, इसका आशय क्या यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि समूचा इंडी गठबंधन ही इन विघटन कारी कृत्यों की पीठ थपथपा कर देश में अराजकता और अशांति फैलाने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। विचारणीय बिंदु यह भी है कि आख़िर कब तक भारत का जनमानस क्षेत्र, भाषा और जाति के नाम पर विघटन कारी तत्वों के षड्यंत्रों का  शिकार होता रहेगा?  डॉ. सुधाकर आशावादी



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