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Bhopal भारतीय चेतना की कृतज्ञता और पाश्चात्य जगत का थैंक्स गिविंग डे Gratitude in the Indian consciousness and Thanksgiving Day in the Western world

 


Upgrade Jharkhand News. थैंक्स गिविंग और भारतीय चेतना की कृतज्ञता को एक साथ रखकर देखने पर स्पष्ट लगता है कि दो  संस्कृतियों के मनुष्यता के मूल भाव नितांत समान हैं । दोनों में सुगंध अलग, स्वाद अलग, अभिव्यक्ति के तरीके अलग पर आधार भूत सार एक समान है। थैंक्सगिविंग या भारतीय किसान का अन्नपूर्णा वंदन दो भिन्न संस्कृतियों के प्रतीक भर हैं, इनके पीछे जो मनुष्य का नम्रता भाव है वही इन्हें एक करता है। दुनिया चाहे जितनी भी आधुनिक हो जाए, मनुष्य के भीतर छिपा यह ऋण स्वीकार करने वाला मन आज भी वैसा ही मासूम है जैसा सदियों पहले था। नवंबर की पतझड़ अमेरिकी घरों को जब ठंड की चादर से ढक देती है तब थैंक्सगिविंग अपने मौन संदेश के साथ आता है। यह पर्व बताता है कि भोजन केवल भूख मिटाने की वस्तु नहीं बल्कि मनुष्य के अस्तित्व का उत्सव है। टर्की की खुशबू और मीठे आलू की भाप के पीछे यह संदेश छिपा होता है कि जीवन किसी अदृश्य शक्ति के उपकार से चलता है और उसका आभार व्यक्त करना सभ्यता का पहला पाठ है। इस परंपरा के मूल में 1621 का वह दृश्य है जब प्रवासियों और मूल निवासियों ने फसल की सफलता का आभार उत्सव रूप में मनाया । इतिहास इस घटना को एक अध्याय के रूप में दर्ज करता है लेकिन भावनाओं की दुनिया में यह घटना मनुष्य और प्रकृति के बीच संबंध का पहला करार थी जिसमें समझा गया था कि प्रकृति की उदारता का हमें सदैव आदर करना होगा।



भारत में फसल उत्सव कोई अकादमिक ज्ञान नहीं बल्कि संस्कृति में समाया हुआ सच है। हर राज्य, हर बोली, हर खेत अपनी शैली में प्रकृति का आभार व्यक्त करता है। कहीं बैसाखी की ढोलक धड़कती है, कहीं ओणम की नावें झूमती हैं, कहीं पोंगल का गुड़ उफनकर मिट्टी को प्रणाम करता है। हर सुबह हम सब जब  सूरज को नमन करते  हैं या अर्घ्य देते है तो गायत्री मंत्र के साथ हम प्रकृति के प्रति आभार ही तो करते हैं। यह वही सहज भाव है जो थैंक्स गिविंग में सजधज कर चमक दमक के साथ यहां पाश्चात्य जगत में सामने आता है। भारतीय ऋषियों ने कृतज्ञता को केवल त्योहार की तरह नहीं बल्कि दैनिक साधना की तरह अपनाया। सुबह आंख खुलते ही हाथों का दर्शन करके मनुष्य अपने कर्म, धन और विद्या तीनों को कृतज्ञ भाव से ही प्रणाम करता है। कृतज्ञता पूर्व की मनीषा में पूजा का नहीं बल्कि दृष्टि का विषय है। भगवद्गीता का वह उपदेश जिसमें हर कर्म को ईश्वर को अर्पित करने का संदेश दिया गया है, मूलतः कृतज्ञता को जीवन के केंद्र में रखने का विधान है। यह नियम मनुष्य को अहंकार के बोझ से मुक्त करता है और उसे वही बनाता है जो वह मूलतः है ,  प्रकृति के प्रति आभारी सीमित समय के लिए एक सांसारिक  यात्री।



अमेरिकी थैंक्सगिविंग का एक आकर्षक पक्ष परिवार की एकता है। बच्चे, बूढ़े, पोते, पड़ोसी, सब एक शाम को खुशी में साथ बिताते हैं। परिवार की यह छोटी-सी सभा भारतीय त्योहारों की याद दिलाती है जहाँ घरों में दिए जलते हैं और आंगन में रंगोली बनती है। भारतीय समाज,  परिवार को केवल जीव जैविक समूह नहीं मानता बल्कि भावनाओं की एक संस्था मानता है। इसी भावना को विश्व तक बढ़ाते हुए भारतीय दर्शन ने वसुधैव कुटुम्बकम् कहा है। थैंक्स गिविंग पर लोगों द्वारा एक साथ भोजन करना और जरूरतमंदों की सहायता करना इसी सार्वभौमिक परिवार की भावना का ही प्रतिबिंब है। इस पूरी परंपरा की प्रासंगिकता आज के भौतिकवादी युग में और बढ़ गई है। आज इंसान अपनी उपलब्धियों की मीनारें खड़ी कर सकता है लेकिन कृतज्ञता की नींव के बिना उनमें शाश्वत स्थिरता नहीं आती। उपलब्धियों के बीच मनुष्य केवल वह देखता है जो उसे चाहिए लेकिन कृतज्ञता की भावना उसे वह देखने की कला सिखाती है जो उसे अपने पूर्वजों के माध्यम से ,पहले से मिला हुआ है। मनोवैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि कृतज्ञता व्यक्ति को अधिक स्वस्थ बनाती है। यह बात हमारे ऋषि हजारों वर्ष पहले कह गए थे। विज्ञान अब जाकर उसका प्रमाणपत्र बाँट रहा है।



अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने थैंक्सगिविंग को एक नए रूप में ढाला है। उनके भोजन में मसालों का देशी स्पर्श होता है, परंपरा में भारतीय आत्मा की आंच होती है। क्रैनबेरी के साथ जलेबी परोसना , खानपान का फ्यूजन है । अनजाने ही यह संस्कृति का संवाद है। इस सम्मिलन से एक नया लोक बन रहा है जिसमें न दूर की मिट्टी छूटती है न पास की मिट्टी की गंध के प्रति आभार। इस तरह थैंक्स गिविंग भारतीय चेतना से मिलकर एक विस्तृत पुल बनाता है जिस पर खड़े होकर हम विश्व संस्कृति के इस संगम को देख सकते हैं। अंततः कृतज्ञता किसी देश, धर्म या भाषा का विषय नहीं है। यह मनुष्य के भीतर की वह सहज भावना और प्रेरणा है जो कहती है कि जीवन, चाहे जैसा भी हो, एक उपहार है।



थैंक्स गिविंग का स्पेशल डिनर और भारतीय पूजा का प्रसाद दोनों इसी सत्य को अलग किंतु समरस स्वर में व्यक्त करते हैं। कृतज्ञता का भाव मनुष्य को जोड़ता है, उसे विनम्र बनाता है, उसे प्रकृति के प्रति सजग करता है और अपने परिवेश , प्रकृति तथा सबके प्रति संवेदनशील बनाता है। मनुष्य जब कृतज्ञ होता है तो वह शिकायत करना छोड़ देता है और आश्चर्य करना सीख जाता है। वह अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों में भी सौंदर्य देख पाता है और वही सौंदर्य सभ्यता को बनाए रखता है। थैंक्स गिविंग और भारतीय परंपरा दोनों ही हमें यही सीख देते हैं कि कृतज्ञ मनुष्य किसी भी परिस्थिति में टूटता नहीं, क्योंकि उसका मन उस गहरी जड़ से जुड़ा रहता है जिसे हम प्रकृति, ईश्वर या अस्तित्व जो भी नाम दें, कहते हैं। यदि दुनिया में शांति चाहिए,  यदि समाज में सद्भाव चाहिए यदि व्यक्ति को भीतर से प्रसन्न होना है तो कृतज्ञता को जीवन की आदत बनाना होगा। 



थैंक्स गिविंग  हर व्यक्ति में छिपी इस नैसर्गिक आदत की याद दिलाता है और पीढ़ी दर पीढ़ी इस भाव को जागृत बनाए रखने के लिए हर वर्ष इस त्यौहार को उत्सव बनाकर मनाया जाता है। भारतीय दर्शन इसे रोज़मर्रा के जीवन की शैली बना देता है। दोनों के संगम से जो प्रकाश निकलता है वह मनुष्यता को अधिक उदार और अधिक सुंदर बनाता है। यही वह सार है जो दोनों संस्कृतियों को जोड़ता है और यही वह सन्देश है जो शाश्वत है । आइए प्रार्थना करें कि थैंक्स गिविंग के मनोभाव सबमें सदा जीवित रहे। विवेक रंजन श्रीवास्तव



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