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Bhopal लघुकथा -दुःख की घड़ी में Short Story - In the Hour of Sorrow

 


Upgrade Jharkhand News. मास्टर जी का जब निधन हुआ, तो अर्थी को कन्धा देने के लिए चार कंधे भी नसीब नहीं हुए। कहने को उनका भरा पूरा परिवार था, किन्तु अड़ोसी पड़ोसी तक उनकी अंतिम यात्रा में सम्मिलित नहीं हुए। बेटे ने जैसे तैसे उनकी अंत्येष्टि की औपचारिकता पूरी की। परिवार समृद्ध था। मास्टर जी भी लगभग बीस बरस तक पेंशन से अपना खर्चा चलाते रहे। मास्टर जी के निधन का समाचार सुनकर उनके पूर्व परिचित आए भी। अजनबी की तरह लौट भी गए, क्योंकि उससे पहले कभी मास्टर जी से तो परिचय था, किन्तु  उनके परिवार से नहीं।बेटे ने मास्टर जी की मृत्यु के उपरांत किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान मनोयोग से पूरे किये। गायत्री पाठ भी कराया और गरुड़ पुराण का पाठ भी। तेरहवीं की रस्म हेतु महा आयोजन किया। शहर के मुख्य समाचार पत्रों में विज्ञापन के माध्यम से सूचना भी प्रकाशित कराई, विविध व्यंजनों से युक्त भोजन व्यवस्था भी की।  उम्मीद थी, कि बिरादरी के साथ शहर के संभ्रांत नागरिक, जन प्रतिनिधि शोक संवेदना व्यक्त करने आएंगे। शोक संदेश देकर मास्टर जी की समाज के प्रति की गई सेवाओं का स्मरण करेंगे।



मंच सजा था, पुष्पों की सजावट के मध्य मास्टर जी का चित्र सजाया गया था। प्रवचन एवं भजनों के माध्यम से नश्वर जगत में जीव के आगमन और आत्मा के देह त्याग की चर्चा की जा रही थी, किन्तु व्यवस्था के अनुरूप शोक व्यक्त करने वालों की उपस्थिति कम थी। उपस्थित लोग उनके परिजनों की जगह शोक स्थल पर अपने अपने पूर्व परिचितों से बतिया रहे थे। औपचारिकता थी, कि निभाई जा रही थी। मास्टर जी के साथ बरसों पढ़ाने वाले दूसरे मास्टर जी बता रहे थे, कि मास्टर जी ने खुद को सार्वजानिक जीवन से दूर रखा, यदि सबके सुख दुःख में खड़े होते, तो शोक व्यक्त करने वालों की कमी नहीं रहती। सुधाकर आशावादी



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