Upgrade Jharkhand News. बांग्ला भाषा एवं साहित्य के महान रचनाकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी ) विरचित गीत 'वंदेमातरम्' के डेढ़ सौ वर्ष पूरे हो गए हैं। इस गीत की रचना यूँ तो बंकिम बाबू ने 7 नवंबर सन् 1875 को की थी, किंतु सही मायने में आम लोगों (पाठकों ) तक यह गीत तब पहुँचा, जब बंकिम बाबू के प्रसिद्ध उपन्यास 'आनन्द मठ' का 1882 में प्रकाशन हो पाया। अपने प्रकाशन के साथ ही यह गीत पहले बंगाल में और जल्दी ही पूरे भारत में हर स्वतंत्रता सेनानी का कंठहार बन गया। हजारों स्वतंत्रता सेनानी इस गीत को गाते हँसते-हँसते जेल की काल कोठरी में चले गए और दर्जनों ने भारत माता की आजादी के लिए अपना बलिदान दे दिया।
सन्यासी विद्रोह और आनंद मठ- बंकिम बाबू का जन्म 26 जून , सन् 1838 ईस्वी में बंगाल के कांतलपाड़ा नामक गाँव में हुआ था। मेधावी पिता के मेधावी पुत्र बंकिम बाबू ने मात्र बीस वर्ष की अल्पायु में ही कानून में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली एवं अपने पिता की तरह ही 1858 में डिप्टी कलेक्टर एवं डिप्टी मजिस्ट्रेट बन गए। बंकिम बाबू उस समय तक इतने उच्च पद पर पहुँचने वाले अंगुली पर गिने जाने वाले कुछेक भारतीयों में से एक थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर भी इसी पद पर कार्य करते थे (देवेन्द्रनाथ के पुत्र और रवीन्द्रनाथ के बड़े भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर 1863 में भारत के प्रथम आईसीएस बने एवं 1864 में उनकी नियुक्ति हुई)। ब्रिटिश शासन में उच्च पद पर आसीन होने के बावजूद बंकिम बाबू के मन में भारत की गुलामी से उत्पन्न पीड़ा की टीस सर्वदा बनी रहती थी। जिसे उन्होंने अपने उपन्यासों एवं पत्रों में व्यक्त किया। इसके लिए बंकिम बाबू ने बंगाल दर्शन नामक एक बांग्ला मासिक निकाला एवं सत्रह उपन्यास एवं धर्म संस्कृति से सम्बंधित विविध लेख लिखे।
बंकिम बाबू के तीन उपन्यास-आनंद मठ, कपाल कुंडला एवं देवी चौधरानी-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित राष्ट्रीयता से ओतप्रोत रचनाएं हैं। वंदेमातरम् गीत उनके जिस प्रसिद्ध उपन्यास आनन्द मठ का एक भाग है, उसकी पृष्ठभूमि बंगाल का सन्यासी विद्रोह है, जो बंगाल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद उपजे असंतोष से उत्पन्न हुआ था। कम्पनी का अप्रत्यक्ष शासन तो 23 जून 1757 को पलासी के मैदान में बंगाल के नबाव सिराजुद्दौला की हार एवं रॉबर्ट क्लाइव की विजय से ही प्रारंभ हो गया था। किन्तु वास्तविक अर्थ में बक्सर के युद्ध ( 1764 ) में जब कम्पनी की सेना ने बंगाल के नबाव मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को हराकर 1765 की 'कड़ा की संधि (इलाहाबाद) द्वारा बंगाल में राजस्व वसूली का अधिकार हासिल कर लिया, तब बंगाल में दुर्दिन शुरू हो गए। यहाँ दोहरी शासन प्रणाली लागू कर दी गई। किसानों एवं कारीगरों से दोहरे कर वसूले जाने लगे। एक साथ कई आर्थिक,धार्मिक,सामाजिक परिवर्तनों से उद्वेलित होकर बंगाल में सन्यासी विद्रोह फूट पड़ा। जो लगभग तीन दशक से अधिक समय तक चला (1763- 1800 तक) बंकिमचन्द्र का उपन्यास आनन्द मठ 1770 के प्रारंभ में हुए उसी सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित है। 1770 के दशक में हुए उस सन्यासी विद्रोह के दो प्रमुख नायक थे-भवानीचरण पाठक और देवी चौधरानी जिनके नेतृत्व में बड़ी संख्या में नागा, गिरि एवं पुरी सम्प्रदाय के सन्यासियों ने इस विद्रोह में भाग लिया था। इसी तरह दो मुस्लिम फकीरों-मजनूशाह एवं उसके शिष्य मूसाशाह के नेतृत्व में बड़ी संख्या में मुसलमानों ने इस विद्रोह में भाग लिया था। हालाँकि विद्रोह तो अंतत: कुचल दिया गया किन्तु उसका प्रभाव लम्बे समय तक बना रहा।
लगभग सौ वर्ष बाद उसको ही आधार बनाकर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपना ऐतिहासिक और अतुलनीय उपन्यास आनंद मठ लिखा। सत्यानन्द, भवानन्द, जीवानन्द, महेन्द्र, कल्याणी और शांति (या नवीनानन्द) इस उपन्यास के मुख्य पात्र थे। सत्यानन्द मठ के आध्यात्मिक गुरु थे, जो आनंदमठ क्रांति का नेतृत्व करते हैं। महेन्द्र एक बंगाली व्यक्ति था, जो अकाल और युद्ध के दौरान अपनी पत्नी और बेटी से अलग हो जाता है। कल्याणी,महेन्द्र की पत्नी जो बाद में अपने पति और बेटी से मिलती है। भवानन्द, एक सन्यासी और नेता, जो मातृभूमि के प्रति समर्पित है। जीवानन्द एक सन्यासी योद्धा था। शांति (नवीन) जीवानन्द की पत्नी थी, जो स्वतंत्रता सेनानी बनने के लिए पुरुष का वेश धारण करती है। आनंद मठ में बंकिम बाबू ने सत्यानंद के मुख से वंदेमातरम् गीत को गवाया है, जिसको सुनकर ही महेन्द्र एवं उनके अन्य मित्र सन्यासी विद्रोह में शामिल होने के लिए प्रेरित होते हैं। उपन्यास में आनंद मठ ऐसे सन्यासियों का मठ है, जो हिन्दू स्वराज्य की पुनर्स्थापना करना चाहता है। इसलिए वहाँ के सन्यासी सशस्त्र क्रांति द्वारा अंग्रेज और मुस्लिम शासक दोनों से देश को आजाद कराना चाहते हैं। विपिन कुमार
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