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भगवान बहुरूपी है : सुनील कुमार दे

 


पोटका। प्रभु श्रीरामकृष्ण धर्म के मूल भाव और सार तत्व को बहुत ही सुंदर ढंग से छोटी छोटी कहानी के माध्यम से भक्तजनो को समझाते थे जो श्रीश्रीरामकृष्ण कथामृत में वर्णित है।इसी क्रम में एक कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ।तीन बंधु था।एकदिन बातों बात में एक अदभुत जानवर के बारे में चर्चा चली।एक बंधु ने कहा,,मैं एक पेड़ में एक अदभुत जानवर को देखा है जिसका रंग लाल है।दूसरा बन्धु ने कहा,मैं भी देखा है लेकिन उसका रंग तो पिला है।


तब तीसरा बंधु ने कहा,, अरे भाई मैं भी उसको देखा है, लेकिन उसका रंग तो हरा है।बस,अंत मे लड़ाई झगड़ा शुरू।झगड़ा करते करते तीनो बन्धु उस पेड़ के पास पहुचा।उस पेड़ के नीचे कोई एक महात्मा बैठे हुए थे।उन लोगो को झगड़ा करते देख महात्मा ने सभी को बुलाया और झगड़ा करने का कारण पूछा।सभी ने बिस्तार पूर्वक अपनी अपनी बात रखी ।तब महात्मा ने कहा,,देखो भाई, तुमलोगों जो देखा है सब सही देखा है। यह जानवर जो इस पेड़ में रहता है उसके बारे मैं जानता हूँ।वह वास्तब में एक बहुरूपी है।

वह कभी लाल,कभी पिला,कभी हरा आदि अपना रंग बदलते रहता है।कभी कभी इसका कोई रंग भी नही होता है।इसलिए इस जानवर को लेकर आपलोग आपस मे लड़ाई झगड़ा मत करो।महात्मा का बात सुनकर तीनो बन्धु वहाँ से चला गया ।रामकृष्णदेव जी ने इस कहानी के माध्यम से बोलना चाहा,,,,,ईश्वर एक है, लेकिन उनका नाम अनेक है।कोई उनको भगवान,कोई अल्लाह,कोई गॉड के नाम से पुकारते है।वह साकार भी है और निराकार भी है।इसलिए अनंत ईश्वर को लेकर लड़ाई झगड़ा करना मूर्खता और अज्ञानता है।भगवान बहुरूपी है।वह एक है लेकिन रूप और रंग अनेक है।

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