पोटका। भगवान रामकृष्ण परमहंसदेव जी के एक वीर संन्यासी शिष्य ने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भ्रमण करके भारत को आविष्कार किया था।भारत की स्थिति,परिस्थिति,ब्यथा, वेदना ,समस्या, पराधीनता को उपलब्धि किया था।भारत महासागर के बीच शिला खंड के ऊपर बैठकर भारत मुक्ति के लिए अश्रु विसर्जन किया था।वही संन्यासी ने एकदिन अपने गुरु के आदेश पर अमेरिका जाकर भारत को प्रतिष्ठित किया था।
सनातन हिन्दू धर्म का आदर्श भाईचारा, प्रेम,धर्म सहिष्णुता, शांति और सदभाव की वाणी को सुनाया था।वही संन्यासी ने भारत मे स्वदेश प्रेम को जागृत करने के लिये कहा था,,गर्व से कहो मैं एक भारतवासी हुँ, भारतवासी मेरा भाई है,मेरा खून है,मूर्ख भारतवासी, दरिद्र भारतवासी,ब्राह्मण भारतवासी,चांडाल भारतवासी मेरा भाई है।
वही संन्यासी ने एकदिन अंग्रेज को कहा था,,,आज से 50 साल बाद यह भारत छोड़कर आपलोगो को जाना ही पड़ेगा उसके लिए मैं संग्राम छेड़ दी है।उस वीर संन्यासी का नाम स्वामी विवेकानंद है।कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जिसके वारे में कहा है,,,,भारत को अगर जानना चाहते हो तो विवेकानंद को जानो।वह स्वयं भारतबर्ष है।
अतः उन दिब्य आत्मा,महान देशभक्त,मानवप्रेमी ,वीर संन्यासी, युगनायक,युवाओ का आदर्श स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी और वाणी को हमारे देश के हर बच्चे और युवाओ को जानना चाहिए। इसके लिए भारत के हर पाट्य पुस्तक में स्वामीजी को जगह देना चाहिए यह मेरी भारत सरकार से नम्र निवेदन है।विवेकानंद कोई जाति और कोई सम्प्रदाय बिशेष का नही है वह पूरे भारत का ही नही बल्कि पूरे मानव जाति का एक आदर्श है।एक प्रेरणा है।
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