पोटका। हमारे सनातन समाज में पारिवारिक संबंध सब दिन पवित्र, सुंदर और मधुर रहा है। पति पत्नी, मां बेटा, बाप बेटी, भाई बहन आदि जितने भी संबंध है उनमें से भाई और बहन का संबंध और प्यार को सबसे पवित्र,सुंदर और निष्काम माना गया है। रक्षा बंधन भाई और बहन का पवित्र प्रेम का प्रतीक है। श्रावण महीने के पूर्णिमा को राखी पूर्णिमा कहा जाता है जिसदिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।
राखी पूर्णिमा भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का भी जन्म दिन है इसलिए इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। इस दिन बहन लोग अपने अपने भाई की कलाई में राखी बांधती है, टीका लगाती है, मिठाई खिलाती है और बड़ी बहन छोटे भाई को आशीर्वाद देती है और छोटी बहन बड़े भाई से आशीर्वाद लेती है। भाई लोग बहन की रक्षा और सुख दुख में आजीवन बहन को साथ देने की प्रतिज्ञा करता है।
इतिहास के पन्ने को देखें तो यह त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हज़ार साल पहले बताई गई है। इसके कई प्रमाण भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। पत्नी शची ने इंद्र देव को बंधी थी राखी। भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षा सूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षा सूत्र ने देवराज इंद्र की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए।यह घटना सत्य युग में हुई थी। और एक मान्यता है कि रक्षा बंधन की शुरुआत सबसे पहले रानी कर्णवती ने की थी। उन्होंने सम्राट हुमायूं को राखी बांधी थी।
मध्यकालीन युग में राजपूत और मुसलमानों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णवती चित्तौर के राजा की विधवा पत्नी थी। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी ओर अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता नहीं निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी बांधी थी और हुमायूं ने रानी की रक्षा की थी। राखी बांधने का कारण जो भी हो, लेकिन यह सनातन हिन्दू समाज की अच्छी परंपरा और त्योहार है।यह भाई और बहन का पवित्र प्यार का प्रतीक है। आज के आधुनिक युग में ज्यादा तर बहने अपने घर,परिवार और समाज में सुरक्षित नहीं है। इस जटिल परिस्थिति में एक भाई का कर्तव्य और दायित्व बनता है अपनी बहन की रक्षा करना और उसको खुश रखना। रक्षा बंधन के शुभ अवसर पर सभी बहनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं, आशीर्वाद और पवित्र प्यार है।
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