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ग्रामीण क्षेत्र में रक्तदान शिविर का जनक सुनील कुमार दे, साइकिल में गांव गांव जाकर रक्तदान का प्रचार प्रसार किया, Sunil Kumar De, the father of blood donation camp in rural areas, spread the propaganda of blood donation by going from village to village on bicycle.


आज रक्तदान करने नहीं डरते गांव के लोग

पोटका। पोटका प्रखंड के नुआग्राम निवासी,स्वर्गीय मोहिनी मोहन दे और स्वर्गीय बेला रानी दे के सुपुत्र सुनील कुमार दे झारखंड के एक प्रतिष्टित साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक जानेमाने समाजसेवी और धर्मप्राण व्यक्ति भी है। विगत 45 वर्षों से ग्रामीण छेत्र में विभिन्न समिति,संगठन और आश्रम के माध्यम से साहित्य,संस्कृति, धर्म,समाजसेवा,जन जागरण और जन कल्याण का काम निरंतर कर रहा है। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक और जन कल्याण का एक काम ग्रामीण छेत्र में रक्तदान का प्रचार प्रसार करना और लोगों को जागरूक करना भी है। सुनील कुमार दे यह अभियान विगत 1997 साल से चला रहा हैं।


 रक्तदान शिविर का आयोजन में  झारखंड में ब्लड बैंक जमशेदपुर और वीबीडीए जमशेदपुर का नाम अग्रणी है।पहले रक्तदान शिविर का आयोजन केवल जमशेदपुर में ही सीमित था। ग्रामीण छेत्र में नहीं होता था। जब सुनील कुमार दे जमशेदपुर के दूरसंचार विभाग में काम करता था सन 1997 के जनवरी महीने में अचानक एकदिन वीबीडीए के साधारण संपादक सुनील मुखर्जी से परिचय हुआ और रक्तदान के बारे में चर्चा हुई। उस समय  नुआग्राम में विवेकानंद युवा समिति काफी सक्रिय था।

इस विषय में उन्होंने समिति से चर्चा की।फिर एकदिन सुनील बाबू टेल्को रिक्रिएशन क्लब गया और रक्तदान के बारे में ट्रेनिंग लिया।वे वीबीडीए का आजीवन सदश्य भी बन गया। फिर एकदिन सुनील मुखर्जी को नुआग्राम में बुलाया गया।उन्होंने आकर समिति के सदस्य को रक्तदान के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। नया काम था इसलिए  समिति के सभी लोग रक्तदान शिविर का आयोजन के लिए प्रचार प्रसार में लग गए। 

सुनील कुमार दे के नेतृत्व से समिति द्वारा साइकिल से रैली निकाली गई।करीब 40 गांव में घूम घूम कर रक्तदान के बारे में जानकारी दी गई और प्रचार किया गया।परिणाम स्वरूप समिति की ओर से नुआग्राम में सर्बप्रथम ग्रामीण अंचल में 8 मई 1997 को रविंद्र जयंती के शुभ अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें कुल 63 लोगों ने स्वेच्छा से रक्तदान किया था जिसमें से नुआग्राम के ही 33 लोगों ने रक्तदान किया था जिसमें 11 महिला भी थी।

शिविर में प्रायः सभी सदस्यों ने रक्तदान किया था उसमें से सुनील कुमार दे के अलावे शंकर चंद्र गोप, सावित्री गोप,तरुण दे,निर्मला दे,प्रशांत दे,शैलेन्द्र प्रामाणिक,नारायण चटर्जी आदि शामिल थे।समिति द्वारा करीब 6/7 बार रक्तदान शिविर का आयोजन हुआ फिर अनिवार्य कारण से नुआग्राम में रक्तदान शिविर बंद हो गया।लेकिन सुनील कुमार दे काम बंद नहीं हुआ।वे रक्तदान का प्रचार प्रसार में लगे रहे।साइकिल से गांव गांव जाकर लोगों को प्रेरित करते रहे। उनका परिश्रम विफल नहीं हुआ।

धीरे धीरे विभिन्न गांव में उनके मार्ग दर्शन में रक्तदान शिविर का आयोजन प्रारंभ हुआ उनमे से हेंसल,हाता, हल्दीपोखर,चाकड़ी,खैरपाल,मानपुर,धिरल,चेलेमा,माताजी आश्रम,पोटका,हेसरा आदि प्रमुख है।दीप से दीप ज्वलते गया।धीरे धीरे और भी गांव में रक्तदान शिविर का आयोजन होने लगा।आज तो ग्रामीण छेत्र में पोटका प्रखंड रक्तदान शिविर का आयोजन में अग्रणी है।सुनील कुमार दे की प्रेरणा और देख रेख में 50 से ऊपर रक्तदान शिविर का आयोजन हो चुका है जो  एक गर्व की बात है।

ग्रामीण अंचल में रक्तदान का प्रचार प्रसार और रक्तदान शिविर का आयोजन के लिए समय समय पर विभिन्न संस्थाओं ने सुनील कुमार दे को सम्मानित भी किया है।इसके अलावे वीबीडीए और ब्लड बैंक जमशेदपुर ने ग्रामीण छेत्र के श्रेष्ठ रक्तदान शिविर का मोटिवेटर के रूप में सन्मानित भी किया है।सुनील कुमार दे को अनेक लोग आज  ग्रामीण छेत्र में रक्तदान का संस्थापक और जनक भी मानते हैं।

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