चक्रधरपुर। पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर शहर से सटे केंदो पंचायत के देवगांव में ग्रामीणों ने बुधवार को श्रमदान कर गांव की मुख्य सड़क की मरम्मत का कार्य शुरू कर दिया है। ग्रामीण खुद मजदूर बन गए हैं और सड़क पर बने गड्ढों को ईंट के टुकड़े और डस्ट से भरना शुरू किया है। बता दें कि कुछ दिन पहले ग्रामीणों ने बैठक कर यह निर्णय लिया था की जब तक सरकार और प्रशासन उनकी बदहाल सड़क को बनाने का का शुरू नहीं करता तब तक वे अपनी सड़क का खुद से मरम्मत करेंगे. बैठक में सभी ग्रामीणों द्वारा लिए गए फैसले का गांव में असर देखने को मिल रहा है।
ना सिर्फ ग्रामीण श्रमदान कर अपने गाँव की मुख्य सड़क की मरम्मत कर रहे हैं, बल्कि सड़क की मरम्मत के लिए जो भी चीजें लग रही है उसकी खरीददारी के लिए आर्थिक मदद भी ग्रामीण खुद से कर रहे हैं। गाँव के लोग, पंचायत प्रतिनिधि, बुद्धिजीवी वर्ग मिलकर चंदा इकठ्ठा कर सामग्री की खरीदकर सड़क के गड्ढों को भर रहे हैं। ग्रामीणों ने कहा कि गाँव के मुख्य सड़क की स्थिति खराब है, लेकिन इसके मरम्मत और इसके स्थान पर नयी सड़क बनाने के लिए किसी जनप्रतिनिधि ने पहल नहीं की और ना ही कोई उनकी समस्या सुनने गाँव पहुंचा. देवगांव के ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों से नाराज होकर रोड नहीं तो वोट नहीं का संकल्प ले लिया है।
गाँव वालों का कहना है की चुनाव के वक्त नेता आते हैं और ठग कर चले जाते हैं। उनकी सड़क और खरब हो जाती है। पांच साल तक कोई झाँकने तक नहीं आता है। इसलिए इस बार रोड नहीं तो वोट नहीं का संकल्प गाँव वाले ले रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया की शहर से जोड़ने वाली देवगाँव की इस मुख्य सड़क का निर्माण 20 साल पहले हुआ था। बीच में दो बार मरम्मत भी किया गया, लेकिन अब सड़क में इतने गड्ढे हो गए हैं की इसे मरम्मत से ज्यादा इसके स्थान पर नयी सड़क बनाने की जरुरत है।
सड़क की बदहाली के कारण लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बच्चों का स्कूल आना जाना मुश्किल हो गया है. वाहन सड़क से पार होते हैं तो जोरदार हिचकोले खाते हुए वाहन चलती है। वहीं कोई भी टोटो चालक देवगांव की बदहाल सड़क पर जाने को भी तैयार नहीं होता है। कई बार यहाँ कई टोटो सवारी के साथ पलटे हैं और सवारी व चालक को चोट आई है। निजी दो पहिया वाहन से भी लोग गिरे हैं। आये दिन हादसों को आमंत्रण दे रहे है गड्ढों से भरे सड़क से राहत पाने के लिए आखिरकार ग्रामीणों को मजदुर बनना पड़ा और खुद के पैसे खर्चा कर श्रमदान से सड़क को दुरुस्त करने का बीड़ा उठाना पड़ा है।
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