रांची। झारखंड के गोड्डा संसदीय सीट पर 2024 का दंगल दिलचस्प होने के आसार नजर आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कई संभावित समीकरण जन्म ले रहे हैं। निशिकांत दुबे भाजपा के टिकट से लगातार तीन चुनाव जीत कर इस बार गोड्डा सीट के लिए मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं, लेकिन इस बार चर्चा कुछ और ही है। सियासी गलियारे में यह चर्चा जोरों पर है कि विधायक प्रदीप यादव जल्द ही भाजपा में वापसी कर सकते हैं। इसके बाद भाजपा उन्हें गोड्डा से लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है और निशिकांत दुबे को भागलपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़वाया जा सकता है।
भागलपुर लोकसभा सीट को जदयू से छीनने के लिए भाजपा यह प्रयोग कर सकती है। दरअसल भागलपुर सीट के लिए भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। वह दूसरे जिलों से नेताओं को लाकर यहां चुनाव लड़वाती रही है। 2004 में सुशील मोदी और फिर 6 के उपुनाव और 2009 के चुनाव में शाहनवाज हुसैन यहां से जीते, लेकिन इसके बाद 2014 और 2019 में यह सीट राजद और जदयू के पास चली गई। इसलिए भाजपा इस बार यहां किसी माटी पुत्र को उतार कर इस सीट पर कब्जा जमाना चाहेगी। ऐसे में सबसे पहला नाम निशिकांत दुबे का आता है।
निशिकांत का पैतृक गांव भागलपुर में है। वहीं जन्मे और पढ़े-लिखे भी हैं। अभी भी उनका अधिकांश समय भागलपुर में ही बीतता है. कार्पोरेट जगत से सीधा राजनीति में आकर गोड्डा में जीत की हैट्रिक लगाकर उन्होंने पार्टी नेतृत्व को यह संदेश दिया है कि वे भागलपुर सीट भी निकाल पाने में सक्षम हैं।
विधायक प्रदीप यादव के भाजपा में जाने के चर्चे जोरों पर है। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के पुराने साथी हैं. 2006 में जब झाविमो बनी तब से लेकर जब 2020 में पार्टी टूटी तब तक बाबूलाल और प्रदीप यादव साथ थे. 2019 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच दरार पड़ी और रास्ते अलग हो गये। राजनीति में संभावनाओं का द्वार हमेशा खुला रहता है। जैसे बाबूलाल मरांडी भाजपा में वापस आये वैसे ही प्रदीप यादव भी आ सकते हैं। आखिर प्रदीप भाजपा वापस क्यों जाएंगे. इस सवाल पर जाएं तो जवाब खुद मिल जाएगा।
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद प्रदीप यादव और बंधु तिर्की दोनों कांग्रेस में शामिल हुए थे, लेकिन कांग्रेस के कार्यक्रमों और बयानों में सिर्फ बंधु तिर्की ही नजर आते हैं। पिछले साढ़े 4 साल में कांग्रेस के अंदर प्रदीप यादव की सक्रियता बहुत ज्यादा नहीं दिखी। पार्टी उनकी उपेक्षा कर रही है या फिर प्रदीप यादव खुद पार्टी के कार्यक्रमों में ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं यह अंदर की बात है, लेकिन इतना तय है कि 2024 में लंबी छलांग मारने के लिए प्रदीप यादव बेहतर संभावनाओं के द्वार जरूर तलाशेंगे।
गोड्डा लोकसभा सीट पर भाजपा के पास निशिकांत दुबे को छोड़ कर फिलहाल कोई दूसरा चेहरा नहीं है, जबकि कांग्रेस में यहां से चुनाव लड़ने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। गोड्डा के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी हर बार की तरह इस बार भी यहां से ताल ठोकेंगे। हो सकता है अपने पुत्र विधायक इरफान अंसारी को टिकट देने के लिए दवाब भी बनाएं। उधर महगामा की विधायक दीपिका पांडेय सिंह भी लोकसभा सीट के लिए मजबूत दावेदार हैं। ऐसे में प्रदीप यादव का मामला फंस सकता है और प्रदीप यादव गोड्डा से लोकसभा चुनाव लड़े बिना रह भी नहीं सकते हैं।
चाहे निर्दलीय ही क्यों न लड़ना पड़े। इससे बेहतर वे भाजपा से चुनाव लड़ना चाहेंगे। वैसे भी प्रदीप यादव को गोड्डा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का पुराना अनुभव है। वे 2002 में हुए उपचुनाव में गोड्डा से जीत कर सांसद बने थे। इसके बाद 2004 में भाजपा की टिकट से भी उन्होंने चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस के फुरकान अंसारी से हार गये थे। फिर 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वे झाविमो की टिकट से गोड्डा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हर बार वे हार गये।
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