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डीबीएमएस कलाकृति सभागार में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की जयन्ती मनी, The birth anniversary of the country's first President Dr. Rajendra Prasad was celebrated in the DBMS Artwork Auditorium.



जमशेदपुर। डी.बी.एम.एस कलाकृति सभागार में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की जयन्ती मनाई गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सह वक्ता के रूप में डॉ.राजेंद्र प्रसाद की परपोती डॉ.सुजाता मित्रा उपस्थित थीं।| परपोती डॉ.सुजाता मित्रा का जन्म राष्ट्रपति भवन में ही हुआ था। राष्ट्रपति ने खादी के कपड़ो में नवजात शिशु डॉ.सुजाता मित्रा को लपेटकर गोद में लिया था। स्वयं एक विनम्रता की मूर्ति है उनका स्वागत डी.बी.एम.एस ट्रस्ट के चेयरमैन बी.चंद्रशेखर ने पौधा देकर किया।


बी चंद्रशेखर ने डॉक्टर सुजाता मित्रा का स्वागत करते हुए कहा की मेहर भाई हॉस्पिटल की डायरेक्टर डॉक्टर सुजाता मित्रा समाज के लिए बहुत बड़ी सेवा कर रही हैं। जयन्ती के अवसर पर मुख्य अतिथि ने उनके जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि वे अपने विद्यालय जीवन में काफी मेधावी छात्र रहे। डॉ.राजेंद्र प्रसाद 12 वर्ष तक राष्ट्रपति पद को सुशोभित किये। भारत छोड़ो आंदोलन में उनको महात्मा गाँधी के साथ जेल भी जाना पड़ा । उनको अपने परिवार के प्रति काफी आत्मिक लगाव था।


राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को देखते हुए उन्हें देश के सबसे बड़े पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया। परपोती डॉ.सुजाता मित्रा उनके जीवनी पर प्रकाश डालते हुए भावुक भी हो जा रहीं थीं। पी पी टी के माध्यम से भी उनके जीवनी को दिखाया गया। डॉक्टर जूही समर्पिता ने कहा कि हम में से किसी ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को नहीं देखा था, लेकिन उनकी परपोती डॉक्टर सुजाता मित्रा जिन्होंने  उनकी अनमोल धरोहर को संभाल कर रखा है वह हमारे साथ हैं। इतिहास के पन्नों में हमने राजेंद्र प्रसाद को पढ़ा है उससे अलग हटकर आज हमने उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के अंश हुए पहलुओं और सिद्धांतों के विषय में जाना है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पारिवारिक चित्रों के माध्यम से डॉक्टर सुजाता मित्रा ने उनकी सादगी और विनम्रता को पेश करते हुए बताया कि आप कहीं भी रहे आप के पहनावे या अन्य ऊपरी श्रृंगार से अधिक महत्वपूर्ण है आपका आपकी निष्ठा ईमानदारी और सच्चाई।

राजेंद्र बाबू उच्च विचार और सादा जीवन जीते थे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में रहकर भी अंग्रेजी संस्कृति का खान-पान और रहन-सहन नहीं अपनाया। राष्ट्रपति भवन में एक हिस्सा बिहारी हिस्सा था जहां उनके घर परिवार के लोग अपने साधारण से खान पान और रहन-सहन में रहते थे और दूसरा हिस्सा वह था जहां ब्रिटिश  संस्कृति चल रही थी | राष्ट्रपति भवन में भी बिहार की खुशबू उन्होंने बचा कर रखी थी आज की युवा पीढ़ी कितनी आसानी से पश्चिमी संस्कृति की ओर आकर्षित हो जाती है उन्हें ऐसे महापुरुषों के जीवन से सीखना चाहिए। वे आज भी हम सबके लिए प्रेरणा स्रोत है। 

कार्यक्रम बी.एड के भावी शिक्षकों के लिए बेहद प्रेरणादायक रहा। इस अवसर पर डी.बी.एम.एस के विभिन्न ईकाई के करीब 400 छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। इस अवसर पर डीबीएमएस ईकाई के सभी गणमान्य एवं सभी प्राचार्या उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती अंजली गणेशन एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ मोनिका उप्पल ने किया।|

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