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पर्यावरण व प्रकृति के दुश्मन सारंडा के जंगलों को काटकर बना रहे मैदान, Enemies of environment and nature are creating plains by cutting the forests of Saranda.


गुवा। सारंडा वन प्रमण्डल के मनोहरपुर वन क्षेत्र अन्तर्गत गिंडूंग से लगभग 4 किलोमीटर आगे पूर्व दिशा की तरफ घने जंगलों की अवैध कटाई बडे़ पैमाने पर बाहरी माफिया कर रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार 200-300 की संख्या में बाहर से आये पर्यावरण के दुश्मन दर्जनों एकड़ रिजर्व वन भूमि पर लगे हजारों कीमती साल, बीजा, गम्हार, महुआ, आम आदि के हरे पेड़ों को काट करोड़ों रुपये के अलावे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्रत्येक गांव में वन रक्षा, वन ग्राम समेत अन्य समितियों का गठन वन विभाग ने कर रखा है। 

इसके बावजूद इस घटना की जानकारी वन विभाग को नहीं है। पेड़ों की कटाई में शामिल लोग पारंपरिक हथियारों से लैस होकर राशन पानी के साथ जंगल में हैं। उक्त क्षेत्रों में जाने की इजाजत किसी को नहीं है। हर आने-जाने वाले लोगों पर माफिया के लोग पैनी नजर रख रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जंगलों को काटने के पीछे कटे भू-भाग पर कब्जा जमा वनाधिकार का पट्टा हासिल करना मुख्य वजह बताई जा रही है। सूत्रों ने बताया कि जहां जंगलों को काटा जा रहा है वहां के जंगलों को वर्ष 1980 के दशक में झारखण्ड आन्दोलन के नाम पर सारंडा के बाहर से आये लोगों द्वारा काटा गया था, लेकिन तब वन विभाग की कार्यवाही के बाद बाहरी माफिया कटी लकड़ियों को छोड़ भाग गये थे। 

उनके भागने के बाद से आज पुनः कटे स्थान पर फिर से स्वतः पूर्व की तरह बडे़-बडे़ पेड़ व जंगल हो गये हैं। चार दशक पूर्व वन विभाग की कार्यवाही के भय से भागे लोग पुनः संगठित होकर बाहर से आ रहे हैं। वर्ष 1980 में काटे गये जंगलों पर अपना मालिकाना हक जताते हुये फिर से उग आये पेड़ों को वनाधिकार का पट्टा पाने की लालसा लिये अंधाधुंध काट रहे हैं। दूसरी तरफ सारंडा, कोल्हान व पोड़ाहाट डिविजन के जंगलों में वन विभाग द्वारा बसाये गये या प्रारम्भ से बसे गांव के ग्रामीण नहीं चाहते हैं कि उनकी सीमा क्षेत्र के जंगलों को कोई बाहरी काटकर वहां की जमीन पर कब्जा कर नया गांव बसाये। इसको लेकर पहले से बसे गांव के ग्रामीणों व बाहर से आकर बसने के प्रयास में लगे लोगों के बीच टकराव व खूनी संघर्ष की स्थिति भी उत्पन्न होती रही है। 

पिछले दिनों गुवा थाना क्षेत्र के दुईया गांव में देखने को मिला था जब दर्जनों गाँव के ग्रामीणों ने संगठित होकर कहा था की जान देंगे, लेकिन जमीन पर बाहरी को कब्जा करने नहीं देंगे। एक तरफ सरकार जंगल को बचाने के लिये करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। वन महोत्सव व अन्य कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। वहीं माफिया एक ही रात में जंगल को मैदान बना दे रहे हैं, जिसे वन विभाग रोक नहीं पा रहा है।

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