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खाली बोतलों में नकली शराब भर बेच रहे माफिया, Mafia selling fake liquor in empty bottles


गुवा। आज का बच्चा कल का नागरिक और भविष्य का निर्माता है। फिर मामूली स्वार्थ की खातिर गरीब व मासूम बच्चों को उनके अधिकारों से क्यों वंचित रखा जा रहा है! क्यों न उनमें प्रेम व स्नेह का संचार किया जा रहा है! क्यों न उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का साधन प्रदान किया जा रहा है! क्यों नहीं उनके संरक्षण की समस्याओं को सुलझाया जा रहा है! किरीबुरु-मेघाहातुबुरु, नोवामुंडी शहर के दर्जनों गरीब, उपेक्षित व असहाय बच्चों का भविष्य आज की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। कुछ अवैध शराब माफिया छोटे-छोटे इन गरीब बच्चों को शहर के विभिन्न क्षेत्रों में भेज जहां-तहां पड़ी अंग्रेजी शराब की खाली बोतलों को चुनवा रहे हैं। 

प्रत्येक खाली बोतल के एवज में इन बच्चों को 5 से लेकर 20 रूपये तक देते हैं। ये शराब माफिया अंग्रेजी शराब की खाली बोतलों की साफ कर उसमें नकली शराब भरकर आम लोगों को महंगे दामों पर बेचकर अवैध मोटी कमाई कर रहे हैं। माफियाओं द्वारा शहर में बेची जा रही नकली व जहरीली शराब पीकर कभी भी किसी की जान जा सकती है। यह धंधा महीनों से खुलेआम चल रहा है। शराब की प्रत्येक खाली बोतल के एवज में अगर कोई व्यक्ति 5 से 20 रूपये दे रहा हो तो यह साफ है कि इसमें नकली शराब भरकर बाजार में बेचा जा रहा है। 

अगर इन बच्चों को प्यार से पुलिस पूछे तो यह नादान बच्चे वैसे लोगों का नाम स्वतः बता देंगे की शराब की खाली बोतल कौन-कौन खरीद रहा है। शहर के शराब के शौकीन पहले से हीं किरीबुरु-मेघाहातुबुरु, नोवामुंडी क्षेत्र में नकली शराब की बिक्री बडे़ पैमाने पर किये जाने का आरोप लगाते आ रहे हैं। आज किरीबुरु ही नहीं बल्कि सारंडा के अन्य हिस्सों में देखा जा सकता है कि कचरों की ढेर में अपनी जिंदगी को तलाशने को विवस है गरीब और असहाय बच्चें। 

जेठ की तपती धरती हो या कड़ाके की पड़ रही सर्दी अथवा सावन-भादों की मुसलाधार वर्षा, ऐसे तमाम मौसमों में एक तरफ लोग एयर कंडीशन एवं अन्य सुविधाओं से युक्त अपने अपने आलीशान घरों में रहकर चाय की चुस्कियां लेते हैं तो दूसरी तरफ इससे बेखबर गरीब व अनाथ असहाय बच्चे किसी अनिष्ट की परवाह किए बगैर दो जून की रोटी की जुगाड़ में मल-मूत्र एवं विषैले कीड़े-मकोड़े से लबरेज दुर्गंधयुक्त नालियों एवं गलियों में जाकर शराब की खाली बोतलें, प्लास्टिक व अन्य समान चुनते नजर आते हैं, ताकि इसे बेचकर वह अपना पेट भर सके। इतना ही नहीं ऐसे गरीब बच्चों को होटल, मोटर गैराज आदि में काम करते या बस स्टैंड, सार्वजनिक जगहों पर भीख मांगते भी आसानी से देखा जा सकता है। 

इनकी यह उम्र शिक्षा एवं तालीम पाने की होती है। केंद्र व राज्य सरकार इन बच्चों के उत्थान के लिए कुछ प्रयास अवश्य किए हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी विद्यालयों, आंगनबाड़ी केंद्रों व अन्य विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा एंव मध्यान भोजन की व्यवस्था आदि का प्रावधान किया गया है। लेकिन सवाल यह है की सैकड़ों गरीब व अनाथ बच्चों के पास अपना रहने की व्यवस्था तक नहीं है ऐसे में वह अपना पेट भरने की दिशा में कदम बढ़ाए या फिर स्कूल की तरफ।

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