- कार्यसेवा के लिए जब घर से निकलते थे तो वापस लौट कर आने की उम्मीद नहीं रहती थी: कारसेवक
- 90 और 92 में अयोध्या गए कार्यसेवकों ने बताया धार्मिक संघर्ष का वो कठिन दौर
चक्रझरपुर। पांच सौ साल बाद भगवान राम जन्मभूमि पर प्रभु श्रीराम के मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं तो पूरे देश में सनात समाज में एक नया खुशी मनाया जा रहा है, लेकिन इस बीच उन कार्यसेवकों को भी लोग याद कर रहे हैं जिन्होंने राम मंदिर के लिए 1990 में श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में संघर्ष किया था। पश्चिमी सिंहभूम जिले के साथ-साथ चक्रधरपुर से भी कई लोग गया था। इसमें चार लोगों ने राम मंदिर निर्माण के लिए कार्यसेवक के रूप में अपना योगदान दिया था। चक्रधरपुर से जिन लोगों ने कार्यसेवक बनकर अयोध्या में प्रभु श्रीराम के लिए मंदिर बनवाने का संघर्ष किया था उनमें पूर्व शिक्षक दशरथ प्रधान, शिक्षक प्रमोद महापात्रा, राकेश रंजन और परेश चन्द्र मंडल शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि 1990 और 1992 को हुए कार्यसेवा कार्यक्रम की याद को ताज़ा करते हुए कहा की पूरे देशभर से अयोध्या में श्रीराम भक्त जुटे थे. कईयों ने गोली खाकर अपने प्राण दिए। उन्होंने उस दौर को याद करते हुए भावुक मन से कहा कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था की वे कभी श्रीराम मंदिर को बनता हुआ देख पाएंगे, लेकिन आज यह सुखद अनुभव है की उन्होंने कार्यसेवा के रूप में जो अपना योगदान दिया वह सार्थक हो रहा है। प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर उद्घाटन होने जा रहा है। कार्यसेवा के लिए जब वे लोग घर से निकल रहे थे तो यह तय नहीं था की वे जिन्दा भी घर वापस लौट पाएंगे।
घर परिवार को छोड़कर श्रीराम के चरणों में अपने कर्म को पूरा करने के लिए निकले थे। दशरथ प्रधान ने बताया की वे 1990 में अयोध्या जा रहे थे। एक वाहन में वे छुप कर जा रहे थे, लेकिन उन्हें उत्तर प्रदेश की पुलिस ने सरयू घाट के पहले पकड़ लिया था। इसके बाद उन्हें शिवपुरी यूरिया फैक्ट्री के कैम्प जेल में रखा गया। इसके बाद सभी ने मिलकर चाहरदीवारी को तोड़ कर भागकर बनारस तक गए। 30 अक्टूबर को विवादित ढांचे में झंडा फहराया। 2 नवम्बर को यूपी पुलिस ने बर्बरता से लोगों को घरों से निकालकर गोली मारी गयी थी।
सैकड़ों लोगों की पुलिस ने हत्या की थी। कई लोग पुलिस के लाठीचार्ज में सरयू नदी में भी डूबकर मारे गए थे। प्रमोद महापात्र ने बताया की 1990 को वे रांची से गोरखपुर गए थे। उस समय 1900 कार्यसेवक उनके साथ थे। इस दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर आजमगढ़ कैम्प जेल में रखा गया। वहां से भागे तो फिर पकड़ाए। प्रशासन के साथ काफी झड़प भी हुआ, लेकिन स्थानीय लोगों ने उनकी खूब सेवा की. 1992 में वे ओडिशा से अयोध्या कारसेवा में गए थे।
6 दिसंबर को जब वे अपने कमरे में थे तो उन्हें फायरिंग की आवाज़ सुनाई दी। जाकर देखा तो विवादित दो ढांचा गिर चुका था। इसके बाद वे भी तीसरा ढांचा गिराने में योगदान करने गए। तीसरा ढांचा भी गिरा दिया गया। उन्होंने बताया की विवादित ढांचा मंदिर था। ढांचे के स्तम्भ से लेकर दीवार, लिंटर आदि जगहों में मंदिर के मूर्तियों की पत्थर को काटकर नक्काशी की गयी थी। जो की साफ़ तौर पर देखा जा सकता था। साफ़ तौर पर मंदिर था जिसे बाबर ने तोड़कर दूसरा धार्मिक स्थल बना दिया था। प्रमोद महापात्रा ने बताया की इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को भी धन्यवाद देना चाहिए, जिसके द्वारा एक बड़ा फैसला सुनाया गया। जिसके कारण कारसेवकों का लम्बे समय से चल रहा धार्मिक संघर्ष खत्म हुआ। आज अयोध्या में चल रहे प्रभु श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम और मंदिर उद्घाटन के पूजन अनुष्ठान की। ख़बरें सुनकर उनका मन प्रसन्न है। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था उनके जीवित रहते यह पल आयेगा।
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