23 जनवरी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर बिशेष
हाता। भारत की आजादी केवल अहिंसा आंदोलन करके और भीख मांग के नहीं आई है, नहीं चरखा चलाकर और बिना खड़ग और बिना ढाल से आई है। आजादी के लिए काफी खून देना पड़ा है, त्याग और बलिदान देना पड़ा है।आजादी के लिए जिन सुर वीरो ने चुपचाप अपना बहुमूल्य प्राण दे दिया था इतिहास के पन्ने में उन सभी का नाम नहीं है।यह बड़ा ही शर्म और दुःख की बात है। उन सभी शहीदों को बहुत सारे लोग आतंकवादी, देशद्रोही, जापान का दलाल भी बोलते हैं। खुदीराम बोस से लेकर सूर्य सेन, बाघा जतिन, बिनय, बादल, दिनेश, प्रफुल्य चाकी, प्रीतिलता, कानाईलाल, भकत सिंह से लेकर चंद्र शेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव, मंगल पांडेय, उधम सिंह, झांसी रानी लक्ष्मी वाई से लेकर नाना साहब, तांतिया टोपी, बिरसा मुंडा कितने अनगिनत नाम हैं जो लोग भारत की आजादी के लिए प्राण त्याग दिया है। आज हम उन सभी का नाम न सबलोग जानते हैं, न इतिहास में पढ़ाया जाता है।
भारत के स्वाधीनता संग्राम में सबसे प्रभावशाली नाम है नेताजी सुभाषचंद्र बोस। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल, नेहरू, लाल,बाल, पाल, चित्तरंजन दास, रास बिहारी बोस आदि का भी योगदान को हम नकार नहीं सकते। अगर कोई कहे बापूजी और चाचाजी की अहिंसा आंदोलन से भारत की आजादी आई है तो यह गलत है।अंग्रेज अगर किसी से डरता था तो सिर्फ और सिर्फ नेताजी सुभाषचंद्र बोस से। वास्तब में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ही स्वतंत्रता संग्राम का असली हीरो है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 1897 के 23 जनवरी को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिताजी का नाम जानकी नाथ बोस और माताजी का नाम प्रभावती देवी था। बेनी माधव दास उनके शिक्षा गुरु थे। 1913 को प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास,1918 में प्रथम श्रेणी में दर्शन शास्त्र लेकर बीए पास और 1920 में आई सी इस परीक्षा में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया था। सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानंद जीवनी और वाणी से काफी प्रभावित थे। उनको आध्यात्मिक गुरु भी मानते थे। युवा अवस्था में साधु बनने का मन भी बना लिया था, लेकिन रामकृष्ण देव जी के त्यागी शिष्य स्वामी ब्रह्मानंद के समीप में जाकर उनके आदेश अनुसार देश सेवा में जुट गए। स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी पढ़कर देश के प्रति अगाध प्रेम और भक्ति बढ़ गया।
देश की आज़ादी के लिए काम करने का मन बना लिया। सुभाष बाबू का कर्मभूमि कोलकाता रहा। आई सी इस पास करने के बाद उनको अंग्रेज सरकार की नोकरी भी मिली थी, लेकिन सुभाष अंग्रेजों का गुलाम बनने के लिए तैयार नहीं था। इसलिए 1922 को उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उस समय देश में आजादी की लड़ाई शुरू हो चुकी थी।महात्मा गांधी अहिँसा आंदोलन कर रहे थे। सुभाष बाबू गांधीजी से मुलाकात किया। कांग्रेस में योगदान भी किया।हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी चुने गए, लेकिन इससे गाँधीजी खुश नहीं थे। सुभाष का विचार धारा गांधीजी को पसंद नहीं था। गांधीजी का मत और पथ सुभाष को भी पसंद नहीं था इसलिए सुभाष बाबू अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर कहा,,बापूजी,मैं आपके मत और पथ से सहमत नहीं हूं।
आजादी कोई देते नहीं है उसे छीन के लेना पड़ता है। इसके लिए स्वशत्र संग्राम की जरूरत है। त्याग और बलिदान की जरूरत है। उसके बाद सुभाष चित्ररंजन दास से मिले। उनका विचार अच्छा लगा। सुभाष ने चित्तरंजन दास को अपना राजनैतिक गुरु के रूप में स्वीकार किया और उनसे आजादी का मंत्र लेकर विदेशी वस्त्र वर्जन आंदोलन शुरू कर दिया। उसके बाद सुभाष फॉरवर्ड ब्लॉक नामक एक राजनीतिक दल का गठन किया और आंदोलन तेज कर दिया। सुभाष पुकार पुकार के देशवासियो से कहने लगा,,,तुम मुझे खून दो,मैं तुझे आजादी दूंगा,,
सुभाष की बात कोई सुना, कोई नहीं सुना, कोई पागल कहा तो कोई उपहास किया। देश के कोने-कोने में घूम घूमकर देशवासियो को जगाने लगे, लेकिन मन नहीं भरा। उस समय द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। 1941 के 26 जनवरी को पठान भेष धारण करके सुभाष देश छोड़कर बाहर चले गए। उनको देश छोड़ने में मदत किया था उनके दो भतीजे शिशिर बोस और अशोक कुमार बोस। सुभाष पठान भेष में अफगानिस्तान होते हुए सोवियत देश के मास्को पहुंचे। मास्को से रोम होते हुए जर्मनी पहुंचे। जर्मनी में हिटलर से भेंट किया, सहयोग मांगा, लेकिन संतोष प्रद जवाब नहीं मिला।
अंत मे 1943 को जर्मनी छोड़कर जापान पहुंचे। जापान में उस समय रास बिहारी बोस ने इंडियन नेशनल आर्मी नाम से एक सैनिक संगठन का गठन किया था। 1943 के 21 अक्टूबर को रासबिहारी बोस ने सेना बाहिनी का दायित्व सुभाष बाबू के हाथ में सोप दिया। सुभाष बाबू नेता से नेताजी बन गए। आज़ाद हिन्द फ़ौज में कुल 60000 हज़ार सैनिक था। नेताजी आज़ाद हिंद सरकार का गठन किया और वे अविभाजित देश के आजाद हिंद सरकार का पहला प्रधानमंत्री बने। आज़ाद हिंद सरकार का निजी मुद्रा, अदालत, बैंक, कानून, सेनवाहिनी आदि सब कुछ था।आजाद हिंद सरकार को उस समय कुल 9 देशों ने मान्यता दी थी। आज़ाद हिंद फौज ने अन्दावर और निकोवर में पहला आज़ादी की पहली तिरंगा झंडा फहराई थी।
उसके बाद दिल्ली चलो नारा लेकर 1945 में असम में ब्रिटिश के साथ आजाद हिन्द फ़ौज का घमासान लड़ाई हुई।युद्ध में करीब 26000 फ़ौज शहीद हो गए। प्राकृतिक दुर्योग शुरू हो गई। बम ,बारूद,गोली खत्म हो गया, खाना,दवा के बिना सैनिक मरने लगे। जापान भी सहयोग करना बंद कर दिया। 1945 के 15 अगस्त को नेताजी साथियों को संबोधन करते हुए कहा,,,आज हमारे बीच जो संकट आई है मैं कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम आजादी की लड़ाई हार चुके हैं। आज भी देश के करोड़ों जनता आज़ाद हिंद फौज से उम्मीद रखते हैं। इसलिए हमारा अंतिम लक्ष्य दिल्ली है।
दुनिया में ऐसा कोई शक्ति नहीं है अब और ज्यादा दिन भारत को पराधीन करके रख सके। अति शीघ्र अंग्रेज को यह देश छोड़कर जाना ही पड़ेगा। जय हिंद।दिल्ली चलो। जय भारत।1945 के 18 अगस्त को अंतिम शब्द कहा,,,भारत की स्वाधीनता अब और कोई नहीं रोक सकता। मैं जल्दी ही भारत आकर सबसे मिलूंगा। मैं जानता हूँ कि रास्ते में आप सभी का काफी कठिनाई आयेगी, लेकिन जय आप सभी का होगा। जय हिंद।यह कहते हुए नेताजी विमान में जापान से रूस की ओर चले गए। उस दिन प्रचार किया गया नेताजी का विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया है और नेताजी विमान दुर्घटना में मारे गए हैं, लेकिन यह बात कतई सत्य नहीं है। नेताजी की मृत्यु का कोई ठोस प्रमाण नहीं है इसलिए नेताजी का मृत्य आज भी रहस्यमय है।
जो भी हो महापुरुष कभी मरते नहीं है। युग युग तक हज़ारों दिलों में भक्ति, श्रद्धा और पूजा लेकर जीवित रहते हैं।नेताजी उसी तरह हमारे बीच आज जीवित है। उनकी महान जीवनी और वाणी हम सभी भारतीय की प्रेरणा और आदर्श है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वाधीनता आंदोलन के समय अनेक बार जमशेदपुर तथा आस पास इलाके में आये थे और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए प्रेरित किये थे। इस सिलसिले में नेताजी दो बार पोटका प्रखंड के कालिका पुर और हल्दीपोखर में भी आये थे। सन 1939 में नेताजी कालिकापुर आये थे और सभा को संबोधित किये थे।
नेताजी की स्मृति आज भी कालिकापुर भकत परिवार में रखा हुआ है जो लोगो को आज भी प्रेरित करते हैं। सन 1940 में नेताजी ओडिशा जाने के क्रम में हल्दीपोखर में रोके थे और हांडी हाट में सभा को संबोधित किये थे। नेताजी के लिए हम सभी आज भी गर्व मौसूस करते हैं। अंत में कहेंगे नेताजी ही वास्तब में स्वाधीनता आंदोलन का असली हीरो और अविभाजित आजाद हिंद सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री है इसलिए देश में नेताजी का उचित सम्मान होना चाहिए।खुशी की बात यह है कि जब से मोदी सरकार आई है कुछ करें या नहीं करें नेताजी को याद जरूर करते हैं, नेताजी का नाम भी लेते हैं।
23 जनवरी नेताजी के जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय भी लिया गया है और इंडिया गेट में नेताजी की मूर्ति भी स्थापित की गई है।इसके अलावे 23 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित हो तथा आजादी का असली हीरो नेताजी की जीवनी देश के हर पाठ्य पुस्तकों में शामिल हो उसके लिए हम सभी नेताजी प्रेमीओ वर्तमान भारत सरकार से निवेदन करना चाहेंगे। आज 23 जनवरी नेताजी के शुभ जन्म जयंती के पावन अबसर पर मैं उनके चरणों में कोटि कोटि नमन करता हूं और सभी भारतीयों को शुभकामनाएं देता हूँ।
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